रविवार, 14 अगस्त 2016

क्या में आजाद हु ?

क्या में आजाद हु ?

में आजाद हु....फिर भी रोटी को मोहताज़ हूँ , वैसे मैं आज़ाद हूँ, मेरा हिस्सा लूट के खा गये क्या सत्ता और क्या विपक्ष मैं दोनों से नाराज हूँ वैसे मैं आज़ाद हूँ, मेरा भविष्य कहाँ सो गया बचपन मेरा कहाँ खो गया देखा है सरकारी दामाद को घर बैठे अरबों का हो गया, और यहाँ एक मैं हूँ जो कदम कदम प़र बर्बाद हूँ, वैसे मैं आज़ाद हूँ,..!!!!!!यह सिर्फ मेरी व् आपकी नही हिंदुस्तान के 60 प्रतिशत लोगो की सही स्थिति है ! इस लेख को पढने से पहले कुछ समय के लिए अपने मष्तिष्क को आजाद करे उन बेडियो से जो हमें आत्मचिंतन करने से रोकती है। एक तो यह खुशफहमी की हम सही है, सर्वज्ञानी है, और दूसरी यह कमजोरी की अब हम बदल नहीं सकते। इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है की मैं सर्वज्ञानी हु..मेरे विचार है मुझे तो लगता में आजाद होने के बाद भी गुलामी की जंजीरों में केद हु ! मित्रो ! मेरा भारत महान कहने और सुनने में कितना अच्छा लगता है, और साथ ही हमें आंतरिक गौरव की अनुभूति होती है ! मंगल पाण्डेय , भगत सिंह , सुखदेव, और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि कई महान लोग स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे ! हमें आजादी इन्ही लोगो की कुर्बानी से मिली हालाँकि गांधीजी अहिंसा के पुजारी थे, उनकी अनुपम कोशिस और अगाध प्रयासों से भारत आजाद हुआ और हमें स्वत्रंत रूप से जीने का वरदान मिला लेकिन किसी ने सही ही लिखा है कि मै बचाता रहा दीमक से घर अपना और चंद कुर्सी के कीड़े पूरा मुल्क खा गए ! यह कटु सत्य है, और सब जानते भी है वर्षो लग चुके है लेकिन इस दीमक के कीड़े की मौत नहीं होती या कह ले कि इसका वंशज बहुत मजबूत है एक असाध्य बीमारी जो अपनी इस खूबी को बढ़ा रहा है ! जमीरो को बेच बैठे नेता, व्यापारी भारत में हर व्यक्ति को इसकी महक लग गयी है ! आप शायद सोचे मै तो ऐसा नहीं लेकिन जनाब जरा अपने अंदर की आत्मा को टटोलिये और खुद से सवाल करिये की क्या आप सच में आजादी की गोद में बैठे हुए है ? आप सच में आजाद है ? क्या आप जागरूक है ? केवल देश को आजादी मिली है लेकिन क्या हमने अपने आप को आजाद किया है, अपने अंदर समायी हुई तमाम बुराइयो से ? यदि आप ईमानदारी से जवाब ढूंढेंगे तो पाएंगे नहीं ! हमारी और आपकी स्थिति में कोई अंतर नहीं है बस हम तो सरकार पर आरोप, नेता पर व्यंग कर सकते है लेकिन क्या हमने कभी जागरूक होकर समाज में व्याप्त बुराइयो को दूर करने का प्रयास किया??? मेरे गुरुदेव ने एक नारा दिया था "सुधरे व्यक्ति सुधरे समाज से "आपने कभी कोशिश की ही नही क्यों बिलकुल कोशिश नहीं की और कभी आपने की भी होगी तो में जानता हु चंद समाज के ठेकेदारों ने आपकी आवाज दबा दी होगी ! क्योंकि हम भारतीय बड़े सभ्य होते है न जी ! तो हम किसी के पचड़े में नहीं पड़ते लेकिन हम भूल जाते है की भारत तो हमारा है न भारत माता के सपूत तो हम भी है या कह ले की हम कपूत है तो शायद गलत न होगा माफ़ करियेगा लेकिन ये हमारी विवशता है कि आज भी हमारा भारत कई बुराइयो से ग्रस्त है परेशानियों से त्रस्त है महान लोग अपना कार्य कर गए लेकिन हम केवल उनका गुण - गान करते है, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते है ! उनके रस्ते पर नहीं चलते या उनका आचरण धारण नहीं करते इस तरह के कई प्रश्न मेरे जहन में धधकते हुए आंग के गोले की तरह उठते है और फिर शांत हो जाते है यह सोचकर की पूरी व्यवस्था ही अस्त - व्यस्त हो गयी है ! तो इसे क्या मै अकेले बदल सकता हु ? नहीं लेकिन हम सब मिलकर प्रयास करे तो शायद शम्भव हो ! आजादी के इतने वर्षो के बाद भी क्या सच में हमें आजादी मिल पायी है क्या हम सच में स्वंतंत्र है ? यही प्रश्न मेरे मन मष्तिष्क पर हावी हो जाता है कई बार मन बेचैनी से भारी हो उठता है आज के भारत की तश्वीर आँखों के समक्ष खुले हुए गगन की तरह स्पष्ट है ! इन्ही उथल पुथल के साथ मेरा मन करुणा से भरा हुआ रहता है , मैं एक अदभुत सपना देखता हु कभी कभी क्या सपना कभी वो सच होगा ? में सपने में देखता हु सूरज की किरणो की तरह, चमचमाता हुआ भारत ! भाईचारा और प्रेम, नव युवको की आँखों में उमंग और उत्साह की लालिमा ! भारत बना फिर विश्व गुरु , न कोई भूखा है न कोई नंगा, न कोई बेघर है , न कोई बेरोजगार ! प्रदुषण से मुक्त भारत , ,हर जगह पर्यावरण के प्रति जागरूक लोग है नन्ही आँखों में खुशियो का मेला नन्हे हाथो में प्यारा तिरंगा, न कोई आतंक है ,न कोई नक्सलवाद , एक प्यारा संवाद वन्दे मातरम का हार कोई गा रहा है ! हरियाली चारो और , भारत बुलंदी की ओर ! भारत माता की जय हो हवाओ में यही गूँज फैली हुई है , ! हर बेटा श्रवण कुमार ,ढूढने से न मिले वृधाश्रम, हर बेटी लक्ष्मी का रूप, हर घर में एक राम , ओर हर घर में बसा प्यार, हर बेटी सुरक्षित , बहु को मिलता प्यार ! हर नारी ममता की मूरत , हर पुरुष की लक्ष्मण सी सीरत ! मेरा भारत प्यारा भारत खुशियो से भरा भारत ! उस सपने में मैं खोया जब हकीकत देखूंगा तब मानूंगा में आजाद हु ! लेकिन फिर भी एक आशा के साथ मन में एक विश्वास है, कि होगा आजाद मेरा भारत मेरा इन बुराइयो से आज नहीं तो कल होगा आखिर कब तक बुराई ? अंतिम जीत सच की होगी और वो दिन दूर नहीं मेरे द्वारा देखा गया सपना सच और साकार होगा !.इस लेख में युवाओ की व्यक्तिगत आजादी के एक खास पहलू पर बात करनी है, इसलिए इस जटिल विषय पर अधिक नहीं लिखूंगा। लेकिन हमारे देश में आज भी समानता नहीं है, चाहे वह अवसरों की बात हो, सामाजिक सम्मान की या अधिकारों की। हम वास्तव में आजाद तब होंगे जब इस देश का हर नागरिक आजादी को महसूस कर सकेगा – जिन्दा रहने की आजादी, बोलने की आजादी, लिखने की आजादी, पढ़ने की आजादी, अपना जीवन अपनी मनमर्जी से जीने की आजादी। जब इस देश में आदमी और औरत में फर्क नहीं किया जायेगा, हिन्दू – मुसलमान में फर्क नहीं होगा, ब्राह्मण व् दलित में फर्क नहीं होगा तब हम आजाद समझेंगे .... मित्रो जन- गण- मन राष्ट्रीय गान गाते समय करोडो भारतीयों का स्वर एक सा होता है, ताल एक सी होती है, मधुरमय वातावरण होता है, उस समय किसी संगीत को सीखने की आवश्यकता नहीं पड़ती संगीत तो स्वयं बजता है, सबकी रूह से, आत्मा से, विश्वास से, और अपने भारत माता से जुड़े हुए प्यार और लगाव से ! माँ भारती के साथ माँ सरस्वती वीणा की तान छेड़ती है, और मधुर भारत के सुर को अपनी ताल से जोड़ती है तब कितना अच्छा लगता है न भाइयो फिर कदम बढाओ सच्ची आजादी की और नही चाहिए हमे वैचारिक आजादी दृढ सकल्प करो हम सच्ची आजादी के लिए लड़ेंगे .... आजादी पाकर रहेंगे !
वन्दे मातरम, जय हिन्द, भारत माता की जय हो !
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज
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