बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

भुवनेश्वर की हृदयविदारक घटना

एक हृदयविदारक ख़बर कल जब सुनी जिसने सिर्फ मुझे ही नही पूरी देश को झकझोर दिया. इस ख़बर ने सत्ता और शासन को सोचने पर मज़बूर किया या नही मे नही जानता पर मुझे लिखने को जरूर साहस दिया ! कल भुवनेश्वर में जो हृदयविदारक घटना हुई। इलाज कराने आए मरीजों को निजी अस्पताल में मौत मिली। एक दिन पहले सोमवार शाम इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड एसयूएम हॉस्पिटल के आईसीयू वार्ड में भयंकर आग लगी। लगभग दो दर्जन लोग इसकी भेंट चढ़े। उससे कई गुना ज्यादा घायल हुए। ज्यादातर मौतें दम घुटने के कारण हुई। आरंभिक जानकारियों के मुताबिक आग ऑक्सीजन चैंबर में शॉर्ट सर्किट के चलते लगी। शुरुआत डायलिसिस वार्ड से हुई। क्या ये सूचनाएं इसका संकेत नहीं हैं कि अस्पताल में सबसे संवेदनशील जगहों पर भी सुरक्षा इंतजामों की पर्याप्त निगरानी नहीं होती थी? शॉर्ट सर्किट भी अक्सर निरंतर निगरानी के अभाव का ही सूचक माना जाता है। उस अस्पताल में 1200 बेड हैं। जब हादसा हुआ, तब तकरीबन 500 मरीज वहां भर्ती थे। जाहिर है, यह एक बड़ा अस्पताल है। मगर अग्निकांड जैसे हादसे के वक्त लोगों को सुरक्षित निकालने का इंतजाम वहां कितना लचर था, यह मरीजों के अनुभव से साफ है। आग लगने के बाद अस्पताल में अफरातफरी मच गई। इसी बीच घबराहट में मरीजों और उनके तीमारदारों ने खिड़कियां, दरवाजे तोड़ दिए। चादरों में लपेटकर लोगों को नीचे उतारा गया। कई तीमारदार तो मरीजों को अपने कंधों पर बेड समेत लेकर बाहर की ओर भागे। यानी आग लगने पर बचाव के इंतजाम वहां या तो थे नहीं, या वे फेल हो गए।
क्या इसकी जिम्मेदारी अस्पताल प्रशासन पर नहीं आती? इसीलिए इस घटना को महज हादसा समझकर नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए। बल्कि अस्पताल प्रशासन से संबंधित और अग्नि-सुरक्षा के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान कर उनकी व्यक्तिगत जवाबदेही तय की जानी चाहिए। 2011 में कोलकाता के एएमआरआई अस्पताल में आग लगी थी। तब अस्पताल संचालक मंडल के छह सदस्य गिरफ्तार किए गए थे। लेकिन बात धीरे-धीरे चर्चा से बाहर हो गई। जिम्मेदार लोगों को कोई ऐसी सजा मिली जो भविष्य के लिए मिसाल बनती, इस बारे में आम तौर पर कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। इससे पहले 1997 में दिल्ली में हुए उपहार सिनेमाघर अग्निकांड के बाद सार्वजनिक उपयोग वाले भवनों में सुरक्षा उपायों को लेकर काफी चर्चा हुई थी। ऐसी घटनाओं की जवाबदेही तय करने के मुद्दे पर न्यायपालिका ने भी विचार किया। लेकिन उससे भी कोई बड़ा संदेश सारे देश में गया, यह नहीं लगता। इसीलिए भुवनेश्वर कांड में नेताओं का शोक जताना और मुआवजे का एलान करना काफी नहीं है। असली सवाल उत्तरदायित्व का है। ऐसे मामलों में भवन मालिकों की आपराधिक जिम्मेदारी तय होने के वैधानिक प्रावधान होने चाहिए। साथ ही मुआवजे की देनदारी भी उन पर ही आनी चाहिए। इस दिशा में अविलंब पहल होनी चाहिए। भुवनेश्वर में जिन निर्दोष लोगों की जान गई, उनके परिजनों को तात्कालिक राहत पहुंचाना अनिवार्य है। मगर बात वहीं तक सीमित रही, तो यह मृत या जख्मी लोगों को संपूर्ण न्याय से वंचित रखना होगा।
लेखक -उत्तम जैन (विद्रोही )

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