रविवार, 25 सितंबर 2016

परिवार की खुशिया – समर्पण


परिवार की खुशिया – समर्पण-------
अहंकार है सर्वनाश का द्वारा -----
आज तक मेरे मुताबिक परिवार हर ख़ुशी और गम बाँटने , अच्छे और बुरे की पहचान कराने वाला होता था ! लेकिन अब विचार पूरी तरह बदल चुके है । कहते थे परिवार सुशिक्षित हो ओर परिवार पढ़ा लिखा हो तो हर परेशानी से मुक्त हुआ जा सकता है ! लेकिन अब समय बदल गया है अब तो परिवार ही परेशानी बन जाता है । ओर उसमे सबसे अहम रोल अदा करता अहंकार ! जब अहंकार परवाने चढता है! तब सोचने की शक्ति क्षीण हो जाती है ! जब सब सिर्फ अपने बारे में सोचते है किसी को मुझसे कोई लेना देना नहीं है बस सबको अपनी पड़ी है । जब स्वयं अपने खुशियो के लिए जीना चाहता है लेकिन परिवार की खुशियो को नही चाहते है कहते है क्या मेरी यही ज़िंदगी है ? असली वजह तो कुछ और ही है वो है उनकी सामंतवादी मानसिकता है , मै सोचता हु हर काम घरवालो की मर्जी से सबके सन्मान के साथ और ईमानदारी से करना चाहिए ! लेकिन उनकी सामंतवादी मानसिकता और स्वार्थ की वजह से लेकिन पत्थर तो पत्थर ही होता ! आज परिवार के सदस्यो को ख़ुशी और भविष्य से कोई लेना देना नहीं है उन्हें तो बस अपनी पड़ी है !अपने घमंड व अहंकार रूपी चादर को कोई हटाना नही चाहता ! स्वयं के अहंकार को कम करना जेसे खुद को बोना समझते है ! स्वयं की खुशिया सर्वोपरि समझने लगते है लगता है की कैसे भी मुझे इनसे आजादी मिल जाए ताकि मै जिन्दगी में कुछ कर सकूं आगे बढ़ सकूं जितना आगे बढ़ने के प्रयास करता/ करती हूँ उतना ही मेरा परिवार मुझे पीछे की और धकेलता जाता है । अब तो परिवार से और इस शब्द से ही नफरत हो गई है। पता नहीं कब मुझे आजादी मिलेगी या फिर इनकी कैद में मेरा भविष्य यूँ ही बर्बाद हो जाएगा। यही संकीर्ण मानसिकता आज हर व्यक्ति के जेहन मे बस चुकी है ! यही है पारिवारिक विनाश का मुख्य कारण ! लेकिन किस्मत भी मेरा साथ नहीं देती ओर कटु सत्य है परिवार दूर होकर जीवन मे न खुशी मिल सकती है ओर न ही उन्नति ओर न ही सपने साकार हो सकते है किस्मत का साथ तो दूर की बात है ! चंद वर्षो की ज़िंदगी यूंही बिखर जाती है मिलता है सिर्फ अफसोस जब समय निकल जाता है ! अपने भीतर मौजूद सीमाओं को समझने के लिए परिवार एक अच्छी जगह है। परिवार में रहकर आप अपनी ट्रेनिंग कर सकते हैं। परिवार के साथ रह कर आप कुछ लोगों के साथ हमेशा जुड़े रहते हैं, जिसका मतलब है, आप जो कुछ भी करते हैं, उसका एक दूसरे पर असर जरुर पड़ता है। ऐसा हो सकता है कि उनके कुछ काम या आदतें आपको पसंद न हो, फिर भी आपको उनके साथ रहना पड़ता है। यह आपके फेसबुक परिवार की तरह नहीं है जिसमें आपने 10,000 लोगों को जोड़ तो रखा है, लेकिन अगर आप किसी को पसंद नहीं करते, तो आप एक क्लिक से उसे बाहर कर सकते हैं। या व्हट्स अप नही की जब चाहा आपको आचरण अच्छा नही लगा ब्लॉक कर दिया अपनी पसंद-नापसंद से ऊपर उठने के लिए परिवार बहुत ही कारगार साबित हो सकता है। परिवार के सामंजस्य के लिए त्याग करना बहुत जरूरी है ! अपने विचारो को परिवार के साथ तालमेल बैठने के लिए महात्वाकांशा बलिदान करने की जरूरत है ! हो सकता है अपनी कुछ खुशियो , अपने कुछ सपनों का त्याग करना पड़े वही त्याग आपके सुंदर भविष्य का निर्माण करेगा ! सिद्घि समर्पण से सहज ही मिल सकती है ! मगर समर्पण आपको करना ही पड़ेगा आपको स्वय हित को त्याग परिवार के बारे मे गहन चिंतन करना होगा वह दिन दूर नही जब आपके सामने खुशिया झोली फेलाकर खड़ी होगी ! हमें अपनी मानसिकता को बदलने की आवश्यकता है ! तभी हमारी ओर परिवार की खुशिया है ! तो आज ही हम प्रण ले परिवार के लिए जीना है ओर परिवार रूपी वटवृक्ष को हमे सींचना है तभी हमे अच्छी व शीतल छाँव मिलेगी !
उत्तम जैन ( विद्रोही )http://www.vidrohiawaz.com/
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