शनिवार, 13 अगस्त 2016

विश्वास की डगर ..

विश्वास की डगर ..
क़ाबिल लोग न तो किसी को दबाते हैं और न ही किसी से दबते हैं।सच्चा चाहने वाला आपसे प्रत्येक तरह की बात करेगा. आपसे हर मसले पर बात करेगा. लेकिन धोखा देने वाला सिर्फ प्यार भरी बात करेगा।
तुमने मेरा ट्रस्ट(विश्वास, भरोसा ) तोड़ दिया, उसने मेरा ट्रस्ट तोड़ दिया, मैं अब तुम पर कभी ट्रस्ट नहीं कर सकता/सकती. इस दुनिया में तो किसी पर ट्रस्ट करना ही बेकार है. आये दिन ट्रस्ट के बारे में हमे अपने दोस्तों और अपने आस-पास के लोगो से ऐंसे न जाने क्या-क्या सुनने को मिलता है मगर वास्तव में भरोसा है क्या? भरोसा ही तो सबकुछ है जिसके जुड़ने पर हम किसी को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करते हैं और जिसके टूटने पर हम खुद टूटकर उस भरोसा तोड़ने वाले को ही अपनी ज़िन्दगी से बाहर निकाल फेंकते हैं या सोचते है यह हमारे काबिल नही वेसे भरोसा तोड़ने वाला आपके लिए काबिल मित्र हो भी नही सकता ! वह होगा तो स्वार्थ परस्त व् स्वयम हित के लिए आपकी भावनाओ के साथ खिलवाड़ करने वाला क्यों की कुछ लोग होते ही ऐसे
भगवत गीता में लिखा है कि “भरोसा (विश्वास ) इन्सान का सबसे अच्छा मित्र है तो भरोसा ही इंसान का सबसे बुरा शत्रु भी है”. एकदम सही तो लिखा है भगवत गीता में, भरोसा अगर सही इन्सान पर हो जाये तो आपकी ज़िन्दगी सुकून से बीत जाती है और भरोसा अगर गलत इन्सान पर हो जाये तो आपकी बनी-बुनी ज़िन्दगी का सुकून भी जड़ से उखड जाता है.भरोसा सबसे अच्छा मित्र भी है तो भरोसा सबसे बुरा शत्रु भी है. भरोसा आपकी ज़िन्दगी संवार सकता है तो ट्रस्ट ही आपकी संवर चुकी ज़िन्दगी उजाड़ सकता है.! आजकल की दुनिया में किसी पर भी हद से ज्यादा भरोसा करना बहुत ही मुश्किल होता है क्यूंकि आजकल हमारा भरोसा तोडना और हमारे भरोसा(विश्वास ) से खेलना लोगो के लिए आम बात हो गई है. हम जिस पर हद से ज्यादा भरोसा कर देते हैं, वही हमारे हद से ज्यादा भरोसा को हमारी बेवकूफी समझता है और आये दिन अपने स्वार्थ के लिए हमारे भरोसा का फायदा हमसे ही उठाता है. अब एक तरफ जहाँ आजकल किसी पर भी भरोसा करना मुश्किल से होता है तो वहीँ दूसरी तरफ भरोसा के बिना जीना भी हमारे लिए नामुमकिन सा होता है क्यूंकि भरोसा एक तरफ जहाँ हमारी कमजोरी है तो वहीँ दूसरी तरफ हमारी ताकत भी है. भरोसा हमारी कमजोरी भी है और ताकत भी और ऐंसे में अगर हमारा किसी पर भरोसा करना बहुत जरुरी है तो मैं ये नहीं कहता कि उस पर भरोसा मत करो. मैं तो ये कहता हूँ कि उस पर भरोसा करो मगर अपने को तब तक सिर्फ एक उम्मीद बनाकर रखो कि जब तक वो आपकी उस उम्मीद पर खरा न उतर जाये. जब वो आपकी उम्मीद पर खरा उतर जाता है तो तब वो आपके ट्रस्ट करने के लायक हो जाता है मगर उसके बाद भी उस पर इतना भरोसा मत करो कि बाद में उसके आपके भरोसा को तोड़ने के बाद आप बुरी तरह से टूट ही जाओ या आप किसि की नजर से गिर जाओ . जब वो आपकी उम्मीद पर खरा उतर जायेगा तो तब आप एक या दो बार उसे किसी न किसी तरह से परखो और जब वो आपकी परख में भी खरा उतर जाये तो तभी उस पर ऐंसा भरोसा करो कि वो कभी किसी भी मज़बूरी में भी आपका भरोसा तोड़ ही न पाये.अगर कोई इन्सान आप पर हद से ज्यादा भरोसा करता है तो आप उस इंसान के लिये उसकी कामयाबी और नाकामयाबी की वजह बन जाते हो, ये तो कुछ नहीं बल्कि आप उस इन्सान के लिए उसके जीने और मरने की वजह भी बन सकते हो. इसलिए आप किसी भी बड़ी से बड़ी मज़बूरी में भी भले ही उस इन्सान का दिल तोड़ दो मगर उसका आप पर किया भरोसा कभी भूल से भी मत तोडना. अब यहाँ पर दिल टूटने और विश्वास के टूटने में फर्क क्या है जो कि मैंने कहा कि भले ही आप उस इंसान का दिल तोड़ दो मगर उसका विश्वास कभी मत तोडना. दिल तोड़ने का मतलब है कि उस इन्सान को तोड़ने के बाद भी उसे ज़िन्दगी में आगे जीने के लिए एक वजह देना ताकि वो अपनी ज़िन्दगी उस वजह के साथ नए सिरे से शुरू कर सके और भरोशा तोड़ने का मतलब है कि उस इंसान को तोड़ने के बाद उस इन्सान से उसकी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू करने की और जीने की सारी वजह ही ख़तम कर देना. खैर दिल तोड़ने और ट्रस्ट तोड़ने के बीच के फर्क को आप में किसी का भी समझ पाना संभव नहीं है और मेरा यहाँ लिखकर समझाना भी संभव नहीं है इसलिए जितना हो सके आप ये कोशिश करो कि आप कभी भूल से भी किसी के दिल और ट्रस्ट टूटने की वजह न बन जाओ.ट्रस्ट..! एक ट्रस्ट ही तो है जो न दिखाई देने वाले उस भगवान के होने का अहसास कराता है. अगर ट्रस्ट ही न हो तो दिखाई न देने वाला भगवान भी अगर हमारे सामने आ जाये तो हमे उसका अहसास तक न हो पाए. इसलिए आप बहुत ही भाग्यवान हो कि अगर कोई आप पर हद से ज्यादा ट्रस्ट करता है और वेंसे भी आप इसलिए भी बहुत भाग्यवान हो क्यूंकि इन्सान हद से ज्यादा ट्रस्ट सिर्फ अपने माँ-बाप और भगवान पर ही कर सकता है. जरा सोचो कि अगर उसका ऐंसा ट्रस्ट आपको मिला है तो आप उसके लिए क्या कुछ नहीं हो.लोग कहते हैं कि अगर ट्रस्ट एक बार टूट जाये तो फिर कभी जुड़ता नहीं है मगर हकीकत में देखा जाये तो ऐंसा बिलकुल भी नहीं है. आप अगर किसी इन्सान का एक बार ट्रस्ट तोड़ोगे और उसे तोड़ते ही या कुछ दिनों बाद आपको अगर अपनी भूल का अहसास हो जाये तो आप उस इंसान को आप पर फिर से ट्रस्ट करने के लिए बड़े ही आराम से मना सकते हो क्यूंकि उस इंसान ने आप पर ट्रस्ट किया है और इसी वजह से वो आपके एक-दो बार मनाने पर आपसे फिर से ट्रस्ट करने के लिए आसानी से मान जाता है मगर अगर आप बार-बार आप पर ट्रस्ट करने वाले इन्सान का ट्रस्ट बार-बार तोड़ोगे और बार-बार उससे ये उम्मीद रखोगे कि वो मान जाये तो ऐंसे में एक दिन ऐंसा आ जायेगा कि वो इंसान मर जाना पसंद करेगा मगर आप पर भूल से भी विश्वास करना नहीं करेगा !किसी का ट्रस्ट पाना आपकी एक उपलब्धि है और किसी का ट्रस्ट खोना आपका उसकी नज़र में आपका और खुद अपना ही वजूद तक खोने जैंसा है.आप कितने भी ज्ञानी हो मगर उसकी नजर में आप अज्ञानी व् स्वार्थ परस्त ही रहोगे बाकि हकीकत में देखा जाये तो आज की दुनिया में ट्रस्ट बहुत ही कम देखने को मिलता है और जो ट्रस्ट के नाम पर देखने को मिलता है वो सिर्फ उम्मीद होती है. इसलिए मेरा मानना है कि अगर ट्रस्ट करो तो खुद पर करो और किसी दुसरे पर करो तो ऐंसा करो कि वो दूसरा भूल से भी आपका ट्रस्ट तोड़ने तक के बारे में सोच तक सके.“आप किसी पर ट्रस्ट करते हो और वो आपका ट्रस्ट तोड़ दे तो आपकी खुशहाल ज़िन्दगी बर्बाद हो सकती है और अगर वो आपका ट्रस्ट न तोड़े तो आपके ट्रस्ट ही आपकी बर्बाद ज़िन्दगी भी आबाद हो सकती है इसलिए भगवत गीता एक श्लोक में कहा गया है कि विश्वाश ही आपका सबसे अच्छा मित्र है और विश्वाश ही आपका सबसे बड़ा शत्रु.”

उत्तम जैन (विद्रोही )

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