मंगलवार, 23 अगस्त 2016

आधुनिक युग का तेरापंथ धर्म संघ —एक परिचय

तेरापंथ धर्मसंघ जैनधर्म के श्वेताम्बर परम्परा के अनुरूप चलने वाला धर्मसंघ है !तेरापंथ धर्मसंघ आचार्य भिक्षु द्वारा स्थापित अध्यात्म प्रधान धर्मसंघ है ! यह जैन धर्म की शाश्वत प्रवहमान धारा का युग-धर्म के रूप में स्थापित एक अर्वाचीन संगठन है, जिसका इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है। वर्तमान के आधुनिक युग में जहा अनुशासन एक महत्वपूर्ण चुनोती है वहा तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशासन के रूप में एक मिशाल है ! जिसमे 173 साधू , 550 साध्वीजी , 1समण व् 74 समणी जी कुल 798 एक आचार्य के निर्देशानुसार विहार व् चातुर्मास करते है ! तेरापंथ जैन धर्म का एक अत्यंत तेजस्वी और सक्षम संप्रदाय है। आचार्य भिक्षु इसके प्रथम आचार्य थे। इसके बाद क्रमश: दस आचार्य हुए। इसे अनन्य ओजस्विता प्रदान की चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने और नए-नए आयामों से उन्नति के शिखर पर ले जाने का कार्य किया नौवें आचार्य श्री तुलसी ने। उन्होंने अनेक क्रांतिकारी कदम उठाकर इसे सभी जैन संप्रदायों में एक वर्चस्वी संप्रदाय बना दिया। दशवें आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने इस धर्मसंघ को विश्व क्षितिज पर प्रतिष्ठित किया और ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण इसे व्यापक फलक प्रदान कर जन-मानस पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। तेरापंथ का अपना संगठन है, अपना अनुशासन है, अपनी मर्यादा है। इसके प्रति संघ के सभी सदस्य सर्वात्मना समर्पित हैं। साधु–साध्वियों की व्यवस्था का संपूर्ण प्रभार आचार्य के हाथ में होता है। आचार्य भिक्षु से लेकर आज तक सभी आचार्यों ने साधु–साध्वियों के लिए विविधमुखी मर्यादाओं का निर्माण किया है। चतुर्विध धर्मसंघ अर्थात साधु-साध्वियों व श्रावक-श्राविकाओं की चर्या ही इसकी प्राणवत्ता है। आधुनिक युग की सबसे बड़ी समस्या को आचार्य श्री तुलसी ने अपनी दूरद्रष्टि से देखते हुए अणुव्रत .....आगे पढ़े

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