जीवन में दिशा व् दशा
मनुष्य
का जीवन उसके निर्णयों पर आधारित है। हर व्यक्ति को दो या अधिक विकल्पों
में से किसी एक को चुनता है और बाद में उसका वही चुनाव उसके आगे के जीवन की
दिशा और दशा को निर्धारित करता है।एक
सही व सामयिक निर्णय जीवन को समृद्धि के शिखर पर पहुँचा सकता है तो गलत
निर्णय बर्बादी के कगार पर ले जा सकता है। कुशलता का अर्थ ही सही काम, सही
ढंग से, सही व्यक्तियों द्वारा, सही स्थान व सही समय पर होना है। निर्णय
लेना अनिवार्य है किन्तु सही समय पर सही निर्णय लेना सक्षम व कुशल प्रबंधक
का ही कार्य है। आज युवा शक्ति का लोहा दुनिया भर में माना जाता है लेकिन
युवा शक्ति को सकारात्मकता दिशा की ओर मोड़ना बहुत बड़ी चुनौती होती है और
जहाँ इस शक्ति को सही दिशा में मोड़ा जा सका है वहीं नई ऊँचाइयाँ नापी जा
सकी हैं। मेरी सोच के मुताबिक युवा शक्ति की उर्जा का सकारात्मक कार्यों
में उपयोग करना समाज और सरकार व् आध्यात्म गुरु की सामूहिक जिम्मेदारी है
और इसे निभा कर ही युवाओं को सृजनात्मक कार्यो में लगाया जा सकता है। ये
बात सर्वव्यापी है कि भारत में युवाओं की जितनी संख्या है, उतनी और कहीं
नहीं है। भारत के साथ एक सकारात्मक पहलू यहाँ के युवाओं का संस्कारी होना
है। पश्चिमी देशों में युवाओं के पथभ्रष्ट होने की काफी आशंका रहती है,
उसकी तुलना में भारत में ऐसे होने की आशंका बहुत कम है। इतने सारे
सकारात्मक पहलुओं के बावजूद अगर युवाओं में नकारात्मकता पैदा हो रही है, तो
इसे दूर करने के लिए समाज में हर स्तर पर प्रयास की जरूरत है। ‘समाज का
युवा वर्ग आज विभाजित सा है, एक तरफ महानगरों की युवा शक्ति है, जो निजी
क्षेत्रों में लगातार सफलता के नए आयाम छू रही है, वहीं दूसरा पहलू हम
हिंसक घटनाओं के रूप में रोज टीवी मिडिया पर देख रहे हैं। युवाओं की इस
नकारात्मक शक्ति को सकारात्मकता की ओर मोड़ना समाज और सरकार व् आध्यात्म
गुरु का सामुदायिक दायित्व होना चाहिए।’रोज के अनुभवों के आधार पर मैं कह
सकता हूँ कि सही दिशा देने पर गांवों के युवा भी विदेशों में झंडे गाड़
सकते हैं। पर अगर उन्हें कोई आशा नहीं मिलेगी, तो वे कब हथियार उठा लेंगे,
आप इसका अंदाजा नहीं लगा सकते।’ आतंकवाद और अन्य हिस्सों में नक्सलवाद के
घेरे में आ रहे युवाओं के बारे में तो सच्चाई सबके सामने है। लंबे समय से
शिक्षा और रोजगार से कोसों दूर रह रहे इन युवाओं को बरगलाना सबसे आसान है।
हिंसा की घटनाओं में इजाफा सरकार के लिए व् देश के लिए चिंता का नया सबब
बन सकता है।’ज्यादातर युवाओ से अगर पढ़ाई पूरी करने के बाद आप प्रश्न
करेंगे वे क्या करने वाले है ? तो ज्यादातर यही इच्छा जताएंगे कि हम
विदेश जाकर पैसा कमाना चाहते है। इस प्रकार की सोच केवल इस पढ़ी लिखी पीढ़ी
की है ऐसा नही हैं, सामाजिक रचना मे ही यह सोच घर कर गयी है। माता-पिता का
भी यही सोचना होता है, मेरा बेटा पढ़ लिख गया है उसे अब कहीं विदेश मे
‘‘सैटल’’ हो जाना चाहिए। यह सोच समाज मे अचानक से आ गयी ऐसा नहीं है। इस
सोच का जन्म हमारी एक हजार वर्ष की गुलामी है। जिसका प्रभाव आज भी हमारे
जीवन मे उपरोक्त उदाहरण के साथ ऐसे अनेको उदाहरणो से मिलता है। हमारा
आत्मविश्वास ही जीवन की दिशा व् दशा निर्धारित करता है ! हमारे देश में
प्राचीन काल से ही सामाजिक समानता की कोई अवधारणा नहीं रही। गरीब अमीर सभी
समाजों में रहे हैं। राजा प्रजा भी रही, शिक्षित-अशिक्षित भी रहे। छोटे
बड़े व्यवसाय भी होते हैं। लेकिन जिस तरह की असमानता, घोर आत्मघाती
अमानुषिक विभाजन हमारे समाज में रहा है, वह दुनिया के किसी अन्य समाज में
नहीं रहा। सभी वर्ग अपनी अपनी जाति में आगे पीछे, ऊँचे नीचे, शक्त-अशक्त हो
कर ही दैनिक जीवन के क्रूर नियमों और सत्ता के भय के घेरे में जीवन जीते
थे। गौरवशाली कहने के लिए उपलब्धियाँ थी भी, तो इन अन्धेरों में उनकी रोशनी
का प्रकाश सिर्फ़ उनके लिए था जिनके हाथों में समाज की मशालें थीं। यह सब
कुछ आज हम तरह तरह से सामने लाने और दूर करने में लगे हुए हैं। लेकिन हमारे
प्राचीन सामाजिक विभाजन की जड़ें शायद इतनी गहरी हैं कि समानता का विचार
मन और आत्मा से अभी स्वीकृत नहीं है। हमारी सारी राजनीतिक प्रक्रिया आज भी
उन्हीं अनगिनत जातीय, वर्गीय और यौनीय विभाजक अवरोधों का शिकार है। सहमति
आज भी केवल बहिष्कार की है। हर प्रकार के विभाजन का घोर कलुष हमें सही रूप
में लोकतांत्रिक होने ही नहीं देता। राजनीति ने इसी मूल विभाजन का खूब लाभ
उठाया है, इसे और भी उग्र बनाया है। सारा अभियान खुले तौर पर एक दूसरे का
बहिष्कार करने में अपनी शक्ति ढूंढता है। राजनीति में विचारों की भिन्नता
मात्र एक ओढ़नी की तरह है जो व्यावहारिक होते ही उतर जाती है। आज हमारे
समाज में राजनीतिक संस्कृति (Political Culture) का कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं
है। प्रत्येक व्यक्ति के निजी जीवन में हर विषय पर अपने विचार होते हैं और
वह उन्हें अपने आस पास प्रकट भी करता रहता है लेकिन लोक बुद्धि के इस गहन
स्त्रोत को हमारे समाज में कोई उपयोगी दिशा नहीं मिल पाती। जरुरत है इस दशा
को बदलने के लिए समाज , सरकार व् देश के आध्यात्म गुरु , साधू संतो व्
उपदेशको को युवाओ को सही दिशा देनी पड़ेगी !
उत्तम जैन (विद्रोही )
मो - 8460783401
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