गुरुवार, 18 अगस्त 2016

अनुशासनहीनता आज की मुख्य समस्या

गुरुदेव आचार्य तुलसी से ने एक नारा दिया था ..
निज पर शासन , फिर अनुशासन
 
 
आज हार व्यक्ति अनुशासन की अपेक्षा तो करता है मगर खुद अनुशासन में नही रहता ! गुरुदेव की यह पंक्तिया हमे एक सन्देश देती है और वर्तमान की जरुरत भी है … आज इस विषय मेरे विचार आप सभी मित्रो , पाठको को ….
अनुशासन को समाज और राष्ट्र की नींव कहा जा सकता है। अनुशासन संस्कृति का मेरूदंड है। सड़क हो या सदन, व्यवसाय हो या खेती, खेल का मैदान हो या युद्ध भूमि अनुशासन के बिना संभव ही नहीं है इस दुनिया की संरचना। अनुशासन विकास-पथ है तो अनुशासनहीनता विनाश को आमंत्रण। ये तमाम बातें सभी जानते हैं लेकिन अपनी नई पीढ़ी में अनुशासन के प्रति भाव जगाने की बात करने वाले लगातार कम हो रहे हैं जबकि युवाओं का व्यवहार अनुशासन से लगातार दूर होता जा रहा है। क्या यह सत्य नहीं कि एक आयु के बाद अनुशासन सीखना कठिन हो जाता है। अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है। विद्यालय जाकर अनुशासन की भावना का विकास होता है। अच्छी शिक्षा विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना सिखाती है। सच्चा अनुशासन ही मनुष्य को पशु से ऊपर उठाकर वास्तव में मानव बनाता है। अनुशासन आज की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक तथा राष्ट्रीय आवश्यकता है क्योंकि यह लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है। अनुशासन की वर्तमान स्थिति पर पिछले सप्ताह के स्वयं के कुछ अनुभवों की चर्चा करना चाहता हूँ।गत कुछ दिनों पहले मुंबई से सूरत आते हुए अपने साथ यात्रा कर रहे 20 से 35 वर्ष तक आयु के युवाओ के समूह की हरकतें देखकर शर्मिंदा था । अश्लील, असभ्य, अमर्यादित टिप्पणियां, हरकते इन युवाओ का अनुशासन से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था क्योंकि जब उन्हें टोका गया तो वे असभ्यता की पराकाष्ठा तक पहुँच गए। दो दिन पूर्व ... आगे पढ़े

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