शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

सुख ओर दुख के दिन

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
कटते हैं दुख में ये दिन, पहलू बदल बदल के
रहते हैं दिल के दिल में, अरमाँ मचल मचल के
कटते हैं ...!
तड़पाएगा कहाँ तक, ऐ ददर्\-ए\-दिल बता
रुसवा कहीं न कर दें, आँसू निकल निकल के
कटते हैं ...!
ये ख्वाब पर जो चमके, ?
फेंका गया है दिल का, गुँचा कुचल कुचल के
कटते हैं ...!
उल्फ़त की ठोकरों से, आखिर न बच सका दिल
आखिर न बच सका दिल
जितने कदम उठाए, हमने सम्भल सम्भल के
कटते हैं ...!
 आचार्य चाणक्य कहते हैं कि वही व्यक्ति समझदार और सफल है, जिसे इस प्रश्न का उत्तर हमेशा मालूम रहता है। समझदार व्यक्ति जानता है कि वर्तमान समय कैसा चल रहा है। अभी सुख के दिन हैं या दुख के। इसी के आधार पर वह कार्य करता हैं। यदि सुख के दिन हैं तो अच्छे कार्य करते रहना चाहिए और यदि दुख के दिन हैं तो अच्छे कामों के साथ धैर्य बनाए रखना चाहिए। दुख के दिनों में धैर्य नही खोना चाहिए ! दुख के बाद सुख आना ही है अगर आपने दुख के दिनो मे धेर्य बनाए रखा ! एक कहानी के माध्यम से आपको कहना चाहूँगा ..
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यह कहानी है दो पानी के दो पात्र "घडे" की, एक घड़े का नाम सुखिया और दूसरे घड़े का नाम दुखिया था, दोनों घड़े एक ऋषि के आश्रम मे पानी भरने के काम आते थे, और आश्रम के ऋषि दोनों घड़ो को रोज़ साफ करते और नदी पे जा कर उसमे पानी भर के लाते, भगवान की आराधना करने वाले महात्मा ऋषि मुनि ओ के काम आने से दोनों ही घड़े काफी गर्व महेसूस करते थे, और अपना कर्तव्य यानि के पानी को अपने मे समा कर रखना, बड़े लगन से करते थे, कुछ समय बीतने के बाद सुखिया और दुखिया मे से दुखिया नाम का घड़ा थोड़ा टूटफूट जाता है, और उसमे से थोड़ा थोड़ा पानी टपक ने लगता है, अपनी इस हालत से दुखिया काफी दुखी हो जाता है, पर फिर भी अपना काम पूरी ईमानदारी से जारी रखता है, रोज़ नदी पे दोनों घड़े ले जाए जाते एक घड़ा पूरा भरा हुआ आश्रम मे लौटता जबकि दूसरा घड़ा दुखिया आधा टपक जाता, और आधा ही भरा हुआ आश्रम लौट पाता, ऋषि ने दुखिया नाम के घड़े का उपचार भी किया पर एक दो दिनो मे फिर से वो टपकने लगता, अपनी इस हालत से उदास हो कर दुखिया घड़ा रोने लग जाता है, और खुद को बेकार और कमजोर महेसूस करने लगता है, पास मे बैठा सुखिया घड़ा भी दुखिये घड़े को सांत्वना देता है, पर फिर भी दुखिया घड़ा विलाप करता रहेता है, एक दिन रात को आश्रम के ऋषि पानी पीने को उठते है, तो देखते है के दुखिया घड़ा फुट फुट के रो रहा होता है, यह देख कर ऋषि उस घड़े को दुखी होने का कारण पूछते है, तब दुखिया घड़ा अपने मन की पूरी व्यथा सुना देता है, और खुद को तोड़ कर फेक देने के लिये ऋषि को कहेता है, ऋषि दुखिये घड़े की पूरी बात सुन कर मुस्कुरा देते है, और उसे अपने साथ आश्रम के बाहर ले आते है, और गुरु ज्ञान देते है, ऋषि कहेते है, के तुम अपने अंदर पूरा पानी नहीं समा पाते इस लिए दुखी नहीं हो, पर तुम्हारा साथी घड़ा सुखिया अब भी पूरा घड़ा पानी ला सकता है और तुम नहीं ये दुख तुम्हें ज़्यादा सता रहा है शायद, इस लिए दूसरों की बराबरी कर के खुद को कोसना छोड़ देना चाहिये तुम्हें, दूसरी बात यह के तुम ने अपनी नाकामियाबी और कमी तो देख ली, पर कामयाबी और खासियत नहीं देखि, जेसे के नदी से आते वक्त जहा जहा तुम मे से पानी गिरा वहा वहा छोटे छोटे पौधे उग आये है, और ये पोधे कल पैड बन कर पर्यावरण को सुद्ध रखेगे, और एक पौधे या पैड से लाखो करोड़ो नन्हें जीव जन्तु अपना भोजन पाते है, और उसमे अपना घरौंदा बनाते है, और तुम्हारा गिरा हुआ पानी ज़मीन पर या ज़मीन के अंदर रेंग ने वाले जीवो को भी तो ठंडक दे गया, या उसकी प्यास बुजाने के काम आ गया, इस लिए हे दुखिये घड़े शोक का त्याग करो और अपनी शक्ति अनसार कर्म अच्छा कर्म कर के अपना जीवन-काल बिताओ,
उत्तम जैन (विद्रोही )

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