शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

बेटियो पर नाज

बेटियो पर नाज
आज एक बार फिर से भारत की बेटियों ने साबित कर दिया है कि वो किसी भी मामले में, किसी से कम नहीं है। अगर उन्हें मौका मिले तो वो एक नया इतिहास फलक पर लिखने का दम रखती हैं। रियो ओलंपिक में, भारत से हजारों किमी दूर जब इन बेटियों ने जीत के परचम के साथ तिरंगे को फहराया तो शायद ही कोई भारतीय ऐसा होगा जिसकी आंखें खुशी से ना छलकी होंगी।इन सबकी सफलता भले ही आज लोगों को दिख रही है लेकिन इस सफलता के पीछे ,वो तपस्या है, जो इन्होंने और इनके मां-बाप ने की है।वरना रोहतक हरियाणा की 23 साल की बेटी साक्षी कभी भी रेसलर नहीं बनती। वो हरियाणा, जहां खाप पंचायत जैसी व्यवस्था है, जो कि लड़कियों के लिए कभी जींस पहनने और कभी मोबाइल ना रखने जैसे तुगलकी फरमान जारी करती है। जहां केवल ‘दंगल’ मर्दों की बपौती समझी जाती है लेकिन साक्षी ने हर दीवार को तोड़ा, विरोध सहा, समाज की सोच बदली और आज तिरंगे को वो सम्मान दिलाया जिसको शब्दों में बयांन ही नहीं जा सकता है।यही बात ललिता बाबर और जिमनास्ट दीपा करमाकर.....

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