गुरुवार, 25 अगस्त 2016

सफलता की कुंजी है – व्यक्तित्व विकास

सपनों की पूर्णता
अभिलाषा की पहचान है !
व्यथा की आहट
संघर्ष का परिणाम है !
जीवन के अनेक रंग और रूप
कभी छाव तो कभी धूप
कही सूखा तो कही कूप
कही उजाला तो कही अँधेरा घुप !
मिट्टी भी हम और कुम्हार भी—— हम अपने व्यक्तित्व के रचयिता स्वयं है, कोई और हमारे व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता। इंसान के भीतर असीमित संभावना होती है किसी भी रूप में ढल जाने की, आवश्यकता केवल इस बात की है कि” हम स्वयं को सुसंस्कृत बनाने की हरसंभव कोशिश करें, उच्च आदर्शों को अपनाएं एवम् विशिष्ट बनने का ध्येय रखें। मानसिक, वैचारिक, और चारित्रिक रूप से उत्कृष्टता का आकार ग्रहण करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए।यदि हम विवेकवान, कर्तव्यपरायण, सहिष्णु, सुस्पष्ट , और चरित्रवान बनना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले हमें इन गुणों को लक्ष्य के रूप में निर्धारित करना होगा, फिर इनकी प्राप्ति के लिए एकाग्रचित होकर प्रयास करना होगा।एकाग्रता और परिश्रम ऐसा विकल्प है जिसे अपनाकर हम नित्य नई ऊचाइयों को छूते चले जाते हैं।इन प्रयासों में हुई छोटी सी चूक भी हमें इन मिटटी के बर्तनों की भाँति विकृत कर सकती है। तो आज से ही अपने व्यक्तित्व और चरित्रका निर्माण करना आरम्भ करें, इन्हें सवारना आरम्भ करें , क्यों कि हम अपने जीवन के सृजनकर्ता स्वयं हैं। हमारा व्यक्तित्व
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