शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

आध्यात्म, हम और संत


                                   आध्यात्म, हम और संत
कर्मकांड, आरती, पूजा, घंटी घड़ियाल… मेरे आध्यात्म का अंग नहीं थे | न ही कभी रहेंगे फिर आध्यात्म क्या है? यह सबसे बड़ा प्रश्न है | आध्यात्म की सरल परिभाषा यह सुपर साइंस है। जीवन का सरलीकरण है। इसके हर सिद्धांत वैज्ञानिक हैं। आध्यात्म का काफी सारा हिस्सा विज्ञान सिद्ध कर चुका है। मेरे लिए आध्यात्म का अर्थ किसी चीज का त्याग करना नहीं है। मैं जब ऑफिस में होता हूं तब भी आध्यात्म मेरे साथ होता है, जब परिवार के साथ होता हूं तब भी आध्यात्म मेरे साथ होता है। दरअसल यही परेशानी है हमारे यहां, आध्यात्म को जटिल और दुर्लभ बना दिया है जबकि सिर्फ इसे समझने और सहजता से जीवन शैली में अपनाने की जरूरत है।में यहाँ स्पष्ट कर दू आध्यात्म के लिए गुरु हो तो यह सर्वोत्तम है, ना हो तो प्रेरणा के लिए गुरुत्व किसी में भी प्राप्त किया जा सकता है। मुख्य बात है काम के प्रति समर्पण और एकाग्रता। हमारे देश की संस्कृति , संत समाज हमे सर्वर्था आध्यात्म का मार्ग की और प्रसस्त करते है ! आज पुरे विश्व से जिसने आध्यात्म के लिए अपने देश को छोड़कर भारत आना पसंद करते है ! क्युकी हिंदुस्तान ही एकमात्र इकलोता देश है जंहा आध्यात्म की और लगाव है ! हमारे देश में ऋषि व् संत परम्परा आज भी जिवंत है ! संत शब्द भारतीय आध्यात्मक गुरु के रूप में जाना जाता हैं. संत, ज्ञानी, महात्मा, ऋषि, धर्मात्मा, मुनि, धर्मात्मा मनुष्य, एकांतवासी, तपस्वी, संन्यासी, मुनि, , स्वामी. अर्थात आज का आध्यात्मक मनोविज्ञानी मेरा मानना हैं.व्यक्ति एक सामुदायिक प्राणी हैं, व्यक्ति एक सामुदायिकता का हिस्सा हैं. समाज में जीने के लिए परिवार का विस्तार और उस विस्तार में अर्थ की आवश्यकताओं की पूर्तिकर्ता के साथ पर्यावरण को संतुलन में कभी कभी मानसिक असंतुलन आ ही जाता हैं. जिससे व्यक्ति के कृति में विकृति का समावेश होता हैं. तब किसी संत महात्मा से सुझाव या सलाह की आवश्यकता होती हैं, मनुष्य की प्रकृति व प्रवृति और उसका अंतःकरण किसी परा-लौकिक शक्ति से उसके मानसिक, भावनात्मक एवं व्यावहारिक संबंध की मांग करता है। उसी शक्ति को इन्सान चेतन व ज्ञान के स्तर पर ईश्वर, अल्लाह, ख़ुदा, गॉड आदि कहता है। ‘ईश्वर में विश्वास’ अर्थात् ’ईश्वरवाद’ शाश्वत सत्य धर्म का मूलाधार रहा है।इन्सान की मूल प्रवृति उसे अशुद्ध, भ्रमित, मिलावटी, खोटी और प्रदूषित वस्तुओं के बजाए, विशुद्ध (Pure) और खरी चीज़ें हासिल करने तथा इसके लिए प्रयासरत होने का इच्छुक व प्रयत्नशील बनाती है। मनुष्य जब अपनी भौतिक व शारीरिक जीवन-सामग्री के प्रति इस दिशा में भरसक प्रयत्न करता है तो उसे आत्मिक व आध्यात्मिक जीवन-क्षेत्र में ‘विशुद्ध’ की प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयत्नशील होना चाहिए, क्योंकि यही वह आयाम है जो मनुष्य को सृष्टि के अन्य जीवों से श्रेष्ठ व महान बनाता है। जिन सौभाग्यशाली लोगों को भौतिकता-ग्रस्त जीवन प्रणाली की चकाचौंध, हंगामों, भाग-दौड़ और आपाधापी से कुछ अलग होकर इस दिशा में प्रयासरत होने की फिक्र होती है, अक्सर ऐसा हुआ है कि वे अनेक व विभिन्न दर्शनों में उलझ कर, एक मानसिक व बौद्धिक चक्रव्यूह में खोकर, भटक कर रह जाते हैं। अगर यह तथ्य और शाश्वत सत्य सामने रहे कि अत्यंत दयावान ईश्वर अपने बन्दों को दिशाहीनता व भटकाव की ऐसी परिस्थिति में बेसहारा व बेबस नहीं छोड़ सकता यह मात्र एक कोरी कल्पना नहीं है हकीकतों से वास्ता देखा जाए तो आप को ज्ञात होगा की इनके शिष्यों को क्या फायदा या नुकसान हुआ से ज्यादा महत्वपूर्ण ये हैं की "लोग मनोदशा से, मनो दैहिक, मनो सामाजिक या मनो पारिवारिक समस्याओ से कितने पीड़ित है"
कुछ लोग आवेश से व्यक्ति की परेशानियों को समझे बिना अंध भक्त का नारा लगाते ! भक्त अंधे हो सकते परन्तु सभी नहीं, प्राय ठगा जाना जीवन में हर किसी से होता, फिर भी मनुष्य जीवन की अपनी समस्याओ के निवारणार्थ तो किसी से परामर्श लेना जरूरी होता और उस परामर्श से किसी विकृति में सुकृति या समस्या का समाधान होता तो सार्थक हैं. हकीकत तो आज के युग में मानसिक परेशानिया व्यक्ति को बहुत सता रही, आज का व्यक्ति मनोदशा से परेशान बहुत हैं, जब ये परेशानिया जो दूर कर देता तो इन्सान को जब अधेरा दिखाई देता और संत प्रकाश बता देता तो उस आराम मिल जाता.! गुरु की कृपा और मार्गदर्शन से आध्यात्मिक उन्नति संभव है। इसके बिना जीव 84 लक्ष्य योनियों में ही भटकता रहता है। संसार में मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है। वह अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए आध्यात्मिक प्रगति कर सकता है। इसके लिए गुरु का सानिध्य बेहद जरूरी होता है। मानव तन मात्र पेट भरने के लिए नहीं मिलता है। इसका उद्देश्य आत्म कल्याण हाेता है, लेकिन माया मोह के फंदे में उलझा मनुष्य पूरी उम्र भर यह मर्म नहीं समझ पाता है। ऐसी स्थिति में गुरु का सत्संग बडा सहायक होता हैं। आध्यात्म में कहा है आपका भोजन शुद्ध और
सात्विक होना चाहिए। आपका भोजन शाकाहार होना चाहिए, आपका भोजन
प्राणियों पर दया, करूणा करता हुआ होना चाहिए। अगर आप अपने मन की पवित्रता, जीवन की शुद्धता चाहते है तो मांसाहार से तौबा कर लीजिये और संकल्प करिए हम शाकाहारी बनकर रहेंगे। जिंदा रहने के लिए भोजन जरुरी है पर मांसाहार करना जरुरी नहीं है। हम मनुष्य है।हमारे दिल में करुणा है। हम
प्राणियों में सिरमौर है। इसलिए हमारा फ़र्ज़ है हम अपने से छोटे जीवों पर रहम करे हम उनके प्रति करुणा का परिचय दे, हम उनके दुःख को दूर करे। केवल अपने पेट को भरने के लिए किसी जानवर का पेट काटना ये ना इंसानियत है ना कोई धर्म इसकी अनुमति देता है। मेरा यह लेख (विचार ) लिखने पूरा लक्ष्य आध्यात्म को और गहराई से समझ कर अपने जीवन में उतारना है। आध्यात्म का लिखित शास्त्र है जो मानव मन, बुद्धि, शरीर , चित्त, अहंकार के बारे में बात करता है। मैं चाहता हूं कि आध्यात्म को समझ कर हर कोई सहज जीवन जीएं, हम जितने सरल होंगे जीवन के रास्ते भी उतने ही आसान होंगे।
उत्तम जैन विद्रोही

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