मेरे विचार -- प्रतिक्रिया आपकी जीवन की एक सलाह
आज के परिवेश में किसी अन्य की बैसाखियों पर जीवन का निर्वाह करने की बजाय स्वयं के विवेक से जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। यह बैसाखियां संपूर्ण जीवन आपका साथ नहीं दे पाएगी। जिंदगी के अहम मोड़ पर इसने साथ छोड़ दिया तो जीवन के कोई मायने नहीं रह जाएंगे। आदमी स्वयं के जीवन के दीपक को हमेशा प्रज्वलित रखने का प्रयास करें। मन के भीतर का दीपक जब तक अपनी लौ बिखेरता रहेगा तब तक जिंदगी में भले ही कितने ही तूफान आ जाए, यह दीपक नहीं बुझेगा। हां यह बात अलग है कि दूसरों ने यदि मार्ग में प्रकाश के लिए आपके हाथ में दीपक दिया है तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि यह किसी आंधी अथवा तूफान का बचाव कर लें। इस तरह के दीपक का बुझना तो अवश्यभावी है।हमें इस बात का आत्मचिंतन करने की जरूरत है कि हम किस दौर में जी रहे है। दूसरों के सहारे कब तक जीएंगे। हम प्रकृति के अनुरूप जीवन निर्वाह करने का प्रयास करें। इस दुनियां में हम आए है तो पूर्णत: निवस्त्र होकर और जाएंगे भी तो इसी परिवेश में। व्यक्ति के जीवन में तीन प्रकार की विशेषताओं का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। पहला वह जो संस्कृति के अनुकूल जीवन को जीता है, दूसरा वह जो विकृति में जीवन का निर्वाह करता है और तीसरा वह है जो दोनों के समावेश की जिंदगी का निर्वाह करता है।अब विषय को जीवन की तरफ लेकर जा रहा हु की जीवन में संगती साधू की हो या श्रावक की संगती कहते हैं कि व्यक्ति योगियों के साथ योगी और भोगियों के साथ भोगी बन जाता है। व्यक्ति को जीवन के अंतिम क्षणों में गति भी उसकी संगति के अनुसार ही मिलती है। संगति का जीवन में बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है। संगति से मनुष्य जहां महान बनता है, वहीं बुरी संगति उसका पतन भी करती है। छत्रपति शिवाजी बहादुर बने। ऐसा इसलिए, क्योंकि उनकी मां ने उन्हें वैसा वातावरण दिया। नेपोलियन जीवन भर बिल्ली से डरते रहे, क्योंकि बचपन में बिल्ली ने उन्हें डरा दिया था। माता-पिता के साथ-साथ बच्चे पर स्कूली शिक्षा का गहरा प्रभाव पड़ता है। कई बार व्यक्ति पढ़ाई-लिखाई करके उच्च पदों पर पहुंच तो जाता है, लेकिन संस्कारों के अभाव में, सही संगति न मिलने के कारण वह हिटलर जैसा तानाशाह बन जाता है। हमे गुरु का चयन भी सोच समझ कर करना चाहिए की हमारा गुरु सदाचारी हो भोगी नही , प्रशंसक नही क्यों की प्रशंसक गुरु सिर्फ अपने स्वार्थ का हितेषी होगा आपका मार्गदर्शक नही यह एक कटु सत्य है ! स्वार्थी गुरु सदाचरण के पालन से चाहे तो व्यक्ति ऐसा बहुत कुछ कर सकता है, जिससे उसका जीवन सार्थक हो सके, परंतु सदाचरण का पालन न करने से वह अंतत: खोखला हो जाता है। हो सकता है कि चोरी-बेईमानी आदि करके वह धन कमा ले, कुछ समय के लिए पद-प्रतिष्ठा अर्जित कर ले, लेकिन उसका अंत बुरा ही होता है। सत्संगति का, अच्छे विचारों का बीज बच्चे के मन में बचपन में ही बो देना चाहिए। व्यक्ति की अच्छी संगति से उसके स्वयं का परिवार तो अच्छा होता ही है, साथ ही उसका प्रभाव समाज व राष्ट्र पर भी गहरा पड़ता है। जहां अच्छी संगति व्यक्ति को कुछ नया करते रहने की समय-समय पर प्रेरणा देती है, वहीं बुरी संगति से व्यक्ति गहरे अंधकूप में गिर जाता है।भावार्थ गुरु शिक्षक व् मित्रो का चयन करते समय विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए ! ............
उत्तम विद्रोही
८४६०७८३४०१
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