गुरुवार, 25 अगस्त 2016

ये भटकता मन


मन एक ऐसी शक्ति है जो आपको एक सेंकंड में कहा से कहा तक हजारो मील की यात्रा करा देता है !हम अपने घर पर बेठे देहली , अमेरिका तक की यात्रा मन से क्षणों में कर के आ जाते है ! इसे हम कह सकते भटकता मन ! मनुष्य का मन कितनी जल्दी भटकता है । ये नही तो वो सही वो नही तो ओर सही । यहाँ से मिला तो ठीक नही तो कोई दूसरा दरबार देखते है । शिव पे जल चडाया , कोई काम नही बना , तो चलो हनुमान जी की उपासना करते ही। उधर कुछ नही मिला तो साईबाबा को पकडतेे है । बस चक्र व्यूह मे भटकते ही रह जातेहै ।जीवन में मैने बहुत बार अनुभव किया जब में किसी भी व्यक्ति से मिलता हुँ तो वह अपने दुःखो का वर्णन करता है बार बार एक ही बात दोहराता है कि “मै बडा दुःखी हुँ” , या फिर कहेगा कि “ठीक हुँ पर आप जैसा सुखी नही हुँ” यह एक आदमी की सोच नही है यह सब लोगो की सोच हो गई है, सब कुछ है फिर भी कुछ भी नही है! महात्मा लोग कहते है कि यह सब मन का भटकाव है मन मे ही तरह तरह के सुख और दुख की तरंगे निकलती रहती है आधुनिक विज्ञान भी इस बात का समर्थन करता है कि ये सब मन मे उठने वाली तरंगे है इन को शांत करने से सुख दुख का अहसास नही होता !चिकित्सा करते समय कई बार ऐसी दवा का प्रयोग किया जाता है जो दर्द का अहसास नही होने देती, अब देखो दर्द तो है लेकिन दर्द का अहसास नही हो रहा क्योकि नर्वस सिस्टम को बंद कर दिया गया मस्तिष्क तक सुचनाये नही पहुँच रही इस लिये दर्द नही हो रहा है, इसी प्रकार मन का भी यह ही हाल है हम जब मन की परिवेदनाये मस्तिष्क को पहुँचाहते है तो फिर सुख और दुख उत्पन्न होते है !”यह सब कहने की बाते है कोई भी इस जगत मे नही है जिसका मन भटकता नही हो”मेरे एक मित्र ने मुझसे तत्काल ही पुछ लिया -“क्या आप जानते है ऐसे किसी भी व्यक्ति को जो सुख दुख से दूर हो ?” मै सोचने लगा कि मेरी जान पहचान मे तो कोई भी ऐसे व्यक्ति का सामना नही हुआ फिर लोग क्यो हजारो उदाहरण देते है कि फलाँ आदमी ऐसा था, इसकी क्या वजह है , मै भी बैठा बैठा सोचता रहता हुँ कि कौन होगा ऐसा जो सुख दुख से दूर हो !क्या परमात्मा के नाम पर दुकान चलाने वाले ऐसे होते है,या फिर जो पागल हो गये वे लोग ऐसे है, पागल हो सकते है क्योकि उनका मस्तिष्क काम नही करता होगा शायद, क्योकि दिमाग की क्रिया खराब हो जाती है तभी तो वह पागल कहलाता है और महात्मा जो दुकान चलाते है वे भी ज्यादातर भांग या गांजा के नशे मे धुत्त रहते है इसलिये उनका दिमाग भी कम ही काम करता है ,इस लिये दिमाग तक परिवेदनाये जाती नही है और सुख दुख का अहसास होता ही नही है चाहे ये घटना कुछ देर तक ही क्यो ना, होती जरूर है , तब तो सभी नशेडी आगे पढ़े

सफलता की कुंजी है – व्यक्तित्व विकास

सपनों की पूर्णता
अभिलाषा की पहचान है !
व्यथा की आहट
संघर्ष का परिणाम है !
जीवन के अनेक रंग और रूप
कभी छाव तो कभी धूप
कही सूखा तो कही कूप
कही उजाला तो कही अँधेरा घुप !
मिट्टी भी हम और कुम्हार भी—— हम अपने व्यक्तित्व के रचयिता स्वयं है, कोई और हमारे व्यक्तित्व और चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता। इंसान के भीतर असीमित संभावना होती है किसी भी रूप में ढल जाने की, आवश्यकता केवल इस बात की है कि” हम स्वयं को सुसंस्कृत बनाने की हरसंभव कोशिश करें, उच्च आदर्शों को अपनाएं एवम् विशिष्ट बनने का ध्येय रखें। मानसिक, वैचारिक, और चारित्रिक रूप से उत्कृष्टता का आकार ग्रहण करना हमारा उद्देश्य होना चाहिए।यदि हम विवेकवान, कर्तव्यपरायण, सहिष्णु, सुस्पष्ट , और चरित्रवान बनना चाहते हैं तो इसके लिए सबसे पहले हमें इन गुणों को लक्ष्य के रूप में निर्धारित करना होगा, फिर इनकी प्राप्ति के लिए एकाग्रचित होकर प्रयास करना होगा।एकाग्रता और परिश्रम ऐसा विकल्प है जिसे अपनाकर हम नित्य नई ऊचाइयों को छूते चले जाते हैं।इन प्रयासों में हुई छोटी सी चूक भी हमें इन मिटटी के बर्तनों की भाँति विकृत कर सकती है। तो आज से ही अपने व्यक्तित्व और चरित्रका निर्माण करना आरम्भ करें, इन्हें सवारना आरम्भ करें , क्यों कि हम अपने जीवन के सृजनकर्ता स्वयं हैं। हमारा व्यक्तित्व
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मंगलवार, 23 अगस्त 2016

आधुनिक युग का तेरापंथ धर्म संघ —एक परिचय

तेरापंथ धर्मसंघ जैनधर्म के श्वेताम्बर परम्परा के अनुरूप चलने वाला धर्मसंघ है !तेरापंथ धर्मसंघ आचार्य भिक्षु द्वारा स्थापित अध्यात्म प्रधान धर्मसंघ है ! यह जैन धर्म की शाश्वत प्रवहमान धारा का युग-धर्म के रूप में स्थापित एक अर्वाचीन संगठन है, जिसका इतिहास लगभग 250 वर्ष पुराना है। वर्तमान के आधुनिक युग में जहा अनुशासन एक महत्वपूर्ण चुनोती है वहा तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशासन के रूप में एक मिशाल है ! जिसमे 173 साधू , 550 साध्वीजी , 1समण व् 74 समणी जी कुल 798 एक आचार्य के निर्देशानुसार विहार व् चातुर्मास करते है ! तेरापंथ जैन धर्म का एक अत्यंत तेजस्वी और सक्षम संप्रदाय है। आचार्य भिक्षु इसके प्रथम आचार्य थे। इसके बाद क्रमश: दस आचार्य हुए। इसे अनन्य ओजस्विता प्रदान की चतुर्थ आचार्य जयाचार्य ने और नए-नए आयामों से उन्नति के शिखर पर ले जाने का कार्य किया नौवें आचार्य श्री तुलसी ने। उन्होंने अनेक क्रांतिकारी कदम उठाकर इसे सभी जैन संप्रदायों में एक वर्चस्वी संप्रदाय बना दिया। दशवें आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने इस धर्मसंघ को विश्व क्षितिज पर प्रतिष्ठित किया और ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण इसे व्यापक फलक प्रदान कर जन-मानस पर प्रतिष्ठित कर रहे हैं। तेरापंथ का अपना संगठन है, अपना अनुशासन है, अपनी मर्यादा है। इसके प्रति संघ के सभी सदस्य सर्वात्मना समर्पित हैं। साधु–साध्वियों की व्यवस्था का संपूर्ण प्रभार आचार्य के हाथ में होता है। आचार्य भिक्षु से लेकर आज तक सभी आचार्यों ने साधु–साध्वियों के लिए विविधमुखी मर्यादाओं का निर्माण किया है। चतुर्विध धर्मसंघ अर्थात साधु-साध्वियों व श्रावक-श्राविकाओं की चर्या ही इसकी प्राणवत्ता है। आधुनिक युग की सबसे बड़ी समस्या को आचार्य श्री तुलसी ने अपनी दूरद्रष्टि से देखते हुए अणुव्रत .....आगे पढ़े

सोमवार, 22 अगस्त 2016

तप की साधना और शरीर को फायदा

तप की साधना का वैज्ञानिक व् धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्व है । तप का अर्थ है स्वयं का अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण कर कर्म की निर्जरा करना सिर्फ जैन ही नही सभी धर्मों में तप का उल्लेख मिलता है फर्क है सिर्फ तप करने तरीका अलगअ्लग मगर उदेश्य सिर्फ एक ही है । विज्ञानं में भी तप को महत्व दिया गया है । शरीर को निरोगी बनाये रखने के लिए भी तप बहुत जरुरी है । तप किसी भी रूप में हो सकता है उपवास , एकासन , खाद्य संयम , रात्रि भोजन न् करना , प्रतिदिन नियत द्रव्य से ज्यादा सेवन न् करना जैसे हम नियम ले की आज में 10 द्रव्य से ज्यादा का सेवन नही करूँगा , मोन की साधना , अपने आवेश पर नियंत्रण करना आदि आदि भी एक तरह के तपस्या है । जैन धर्म में तप को एक महत्वपूर्ण साधना माना गया है । जैन धर्म में साधु , संत , आचार्य , श्रावक , श्राविका वर्ष भर में तो तप करते ही है मगर तप विशेष रूप से चातुर्मासिक काल में विशेष रूप से करते है इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि इस चार माह के काल में तपस्या की साधना मौसम की अनुकूलता भी है और दूसरा कारण इस काल में साधु संत वर्षावास हेतु स्थायी हो जाते है और सभी धर्म प्रेमी श्रावक श्राविकाओं को विशेष रूप से साधु संतों से तप की आराधना करने हेतु प्रेरणा मिलती है । तप के चमत्कार की चर्चा करु तो काफी बहुत बाते है मगर संक्षिप्त में की शरीर को स्वस्थ रखने व् असाध्य बीमारी से मुक्त होने के लिए तप.....
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रविवार, 21 अगस्त 2016

महावीर इंटरनेशनल द्वारा रोग निवारण केम्प का आयोजन

महावीर इंटरनेशनल द्वारा आयोजित नैत्र, डायबिटीज व ब्लडप्रेशर रोग निवारण केम्प में 430 मरीज लाभांविन्त, 310 मरीजों को प्रदान किए नजर के चश्मे
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सूरत 21 अगस्त
'सब को प्यार' 'सब की सेवा' व 'जीओ और जीने दो' के परम् मानवता वादी सिद्धांत के साथ महावीर इंटरनेशनल की सूरत शाखा द्वारा रविवार 21 अगस्त को मजदूर बाहुल्य विस्तार पांडेसरा स्थित नव निर्मित तेरापंथ भवन में मेडिकल केम्प का आयोजन किया गया, न्यू सिविल हॉस्पिटल के सहयोग से आयोजित इस  नेत्र रोग -ब्लड प्रेशर, डायबिटीज जाँच एंव उपचार शिविर में डायबिटीज एंव नेत्र रोग से ग्रसित 430 मरीजों का पंजीकरण किया गया, जिसमें 310 मरीजों को नजर के चश्मे प्रदान किए गए एंव 162 रोगियों की डायबिटीज एंव ब्लड प्रेशर रोग की जांच कर उन्हें दवाईयां प्रदान की गई, इस अवसर पर महावीर इंटरनेशनल के अध्यक्ष वीर आनंदीलाल हिंगड़, उपाध्यक्ष वीर यशवन्त सुराणा, सचिव वीर दिनेश सामर, वीर अनिल बरडिया, तथा गुजरात के झोन चेयरमेन वीर गणपत भंसाली, गवरनिंग काउन्सिल के आमन्त्रित सदस्य वीर सुरेन्द्र मरोठी, व पूर्व झोन चेयरमेन वीर डॉ रोशन बाफना, वीर एस एल डांगी, पूर्व अध्यक्ष डॉ एम् के वाडेल, वीर मुकेश जैन, वीर गणेशन, वीर नरपत शेखानी आदि पदाधिकारियों के अलावा तेरापंथ समाज पांडेसरा के अध्यक्ष  श्री भंवरलाल बाबेल, मंत्री श्री उत्तम सोनी, तेरापंथ युवक परिषद उधना के श्री मुकेश बाबेल तथा श्री विनोद सिसोदिया तथा डॉक्टर वानखेड़े आदि महानुभाव उपस्थित थे, मेडिकल केम्प का शुभारम्भ संगठन की प्रार्थना एंव दीप प्रज्वल्लन कर किया गया।  स्त्रोत .. गणपत जी भंसाली

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

बेटियो पर नाज

बेटियो पर नाज
आज एक बार फिर से भारत की बेटियों ने साबित कर दिया है कि वो किसी भी मामले में, किसी से कम नहीं है। अगर उन्हें मौका मिले तो वो एक नया इतिहास फलक पर लिखने का दम रखती हैं। रियो ओलंपिक में, भारत से हजारों किमी दूर जब इन बेटियों ने जीत के परचम के साथ तिरंगे को फहराया तो शायद ही कोई भारतीय ऐसा होगा जिसकी आंखें खुशी से ना छलकी होंगी।इन सबकी सफलता भले ही आज लोगों को दिख रही है लेकिन इस सफलता के पीछे ,वो तपस्या है, जो इन्होंने और इनके मां-बाप ने की है।वरना रोहतक हरियाणा की 23 साल की बेटी साक्षी कभी भी रेसलर नहीं बनती। वो हरियाणा, जहां खाप पंचायत जैसी व्यवस्था है, जो कि लड़कियों के लिए कभी जींस पहनने और कभी मोबाइल ना रखने जैसे तुगलकी फरमान जारी करती है। जहां केवल ‘दंगल’ मर्दों की बपौती समझी जाती है लेकिन साक्षी ने हर दीवार को तोड़ा, विरोध सहा, समाज की सोच बदली और आज तिरंगे को वो सम्मान दिलाया जिसको शब्दों में बयांन ही नहीं जा सकता है।यही बात ललिता बाबर और जिमनास्ट दीपा करमाकर.....

गुरुवार, 18 अगस्त 2016

समस्या बहुत है नजर तो डालो पल में समाधान

यों तो देश में समस्याओं की कमी नहीं। जहां नजर डालो, वहां समस्या। कुछ समस्याएं तो ऐसी, जिनका कोई भी, कैसा भी समाधान खोज लीजिए फिर भी समस्या का दंश बना ही रहता है। हमारी राजनीति में तो अनेक प्रकार की समस्याएं हैं, अगर हर एक का निदान करने बैठे तो सालों लग जाएंगे। पर इसकी भी कोई गारंटी नहीं कि समस्या सुलझ ही जाए।तमाम छोटी मोटी समस्याओं के बीच इधर दो-तीन प्रकार की समस्याओं को मैं बहुत शिद्दत से महसूस कर रहा है। ऐसी लगता है, उन समस्याओं के समाधान के बगैर हमारी जिंदगी बेगानी-सी है। मतलब, हम अब पारिवारिक रिश्तों से कहीं ज्यादा उन समस्याओं के विषय में सोचने लगे हैं।ये समस्याएं अनेक प्रकार की हैं और हम उन समस्या से परेशान रहते है !मगर उसके समाधान के लिए काफी कम्पनिया जागरूक है जेसे आपका स्वास्थ्य से सम्बन्धित कोई समस्या है घबराने की जरुरत नही 5 -7 समाचार पत्र खरीद लीजिये टीवी चेनल देख लीजिये सारा अखबार व् टीवी चेनल तरह-तरह के तेलों और कैप्सूलों के विज्ञापनों से भरा पड़ा रहता है। विज्ञापनों में छपने वाले फोटू व् विज्ञापन इस तरह ‘उत्साहित’ कर देते हैं कि वो फलां तेल या कैप्सूल लेने से आप के साथ जादू सा असर करेगा और दो दिन में समस्या गायब । ऐसा लगता है, इंसान की समस्त शारीरिक कमजोरी का समाधान तेल और कैप्सूल में छिपा पड़ा है। एक कुछ दिनों पूर्व एक केश तेल का विज्ञापन पर मेरी नजर पड़ी उसमे चेतावनी दी हुई आपके झड चुके बाल 7 दिन में उगाये और साथ में चेतावनी बालो में तेल डालकर हाथ अच्छे से धोये हथेली पर बाल उग सकते है ! गजब के भ्रामक विज्ञापन समझ में नही आता जन सामान्य को मुर्ख बनाने का क्या तरीका आजमाया जाता है ! बालों के झड़ने की समस्या.... आगे पढ़े 

अनुशासनहीनता आज की मुख्य समस्या

गुरुदेव आचार्य तुलसी से ने एक नारा दिया था ..
निज पर शासन , फिर अनुशासन
 
 
आज हार व्यक्ति अनुशासन की अपेक्षा तो करता है मगर खुद अनुशासन में नही रहता ! गुरुदेव की यह पंक्तिया हमे एक सन्देश देती है और वर्तमान की जरुरत भी है … आज इस विषय मेरे विचार आप सभी मित्रो , पाठको को ….
अनुशासन को समाज और राष्ट्र की नींव कहा जा सकता है। अनुशासन संस्कृति का मेरूदंड है। सड़क हो या सदन, व्यवसाय हो या खेती, खेल का मैदान हो या युद्ध भूमि अनुशासन के बिना संभव ही नहीं है इस दुनिया की संरचना। अनुशासन विकास-पथ है तो अनुशासनहीनता विनाश को आमंत्रण। ये तमाम बातें सभी जानते हैं लेकिन अपनी नई पीढ़ी में अनुशासन के प्रति भाव जगाने की बात करने वाले लगातार कम हो रहे हैं जबकि युवाओं का व्यवहार अनुशासन से लगातार दूर होता जा रहा है। क्या यह सत्य नहीं कि एक आयु के बाद अनुशासन सीखना कठिन हो जाता है। अनुशासन का पाठ बचपन से परिवार में रहकर सीखा जाता है। विद्यालय जाकर अनुशासन की भावना का विकास होता है। अच्छी शिक्षा विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना सिखाती है। सच्चा अनुशासन ही मनुष्य को पशु से ऊपर उठाकर वास्तव में मानव बनाता है। अनुशासन आज की सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक तथा राष्ट्रीय आवश्यकता है क्योंकि यह लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है। अनुशासन की वर्तमान स्थिति पर पिछले सप्ताह के स्वयं के कुछ अनुभवों की चर्चा करना चाहता हूँ।गत कुछ दिनों पहले मुंबई से सूरत आते हुए अपने साथ यात्रा कर रहे 20 से 35 वर्ष तक आयु के युवाओ के समूह की हरकतें देखकर शर्मिंदा था । अश्लील, असभ्य, अमर्यादित टिप्पणियां, हरकते इन युवाओ का अनुशासन से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं था क्योंकि जब उन्हें टोका गया तो वे असभ्यता की पराकाष्ठा तक पहुँच गए। दो दिन पूर्व ... आगे पढ़े

बुधवार, 17 अगस्त 2016

भाई बहन का रिश्ता – रक्षाबंधन

                                                                  बहना बांधे
                                                                  भाई की कलाई पे
                                                                 प्रेम का धागा ।
                                                                 तोड़े न टूटे
                                                                 ऐसा है ये बंधन
                                                                 कच्चे धागे का ।
भाई बहन का रिश्ता प्यार भरा होता है इसको शब्दों में बयांन करना नामुमकिन है भाई और बहन का रिश्ता मिश्री की तरह मीठा और मखमल की तरह मुलायम होता है। भाई-बहन की लड़ाई के बीच भी प्यार छिपा होता है बड़ी बहन को तो दूसरी माँ भी कहा जाता है ! इस रिश्ते की मोहक अनुभूति को सघनता से अभिव्यक्त किया जाता है। भारत में यदि आज भी संवेदना, अनुभूति, आत्मीयता, आस्था और अनुराग बरकरार है तो इसकी पृष्ठभूमि में इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान है। जो लंबी डगर पर चिलचिलाती प्रचंड धूप में हरे-भरे वृक्ष के समान खड़े हैं। रक्षाबंधन के शुभ पर्व पर बहनें अपने भाई से यह वचन चाहती हैं कि आने वाले‍ दिनों में किसी बहन के तन से वस्त्र न खींचा जाए फिर कोई बहन दहेज के लिए मारी ना जाए, फिर किसी बहन का अपहरण ना हो, फिर किसी बहन के चेहरे पर तेजाब न फेंका जाए। और फिर कोई बहन खाप के फैसले से सगे भाई के हाथों मौत के घाट उतारी ना जाए।यह त्योहार तभी सही मायनों में खूबसूरत होगा जब बहन का सम्मान और भाई का चरित्र दोनों कायम रहे। यह रेशमी धागा... 

शब्द एक अर्थ अनेक

शब्द एक अर्थ अनेक
अपने शब्दों में ताकत डालें आवाज में नहीं !
बारिश से फूल उगते हैं, तूफ़ान से नहीं !!
हम ऐसे लोगों से बचें जो हमेशा निगेटिव सोचते और बोलते हों, और उनका साथ करें जिनका सकारात्मक नजरिया हो। और सबसे अहम बात , हम खुद से क्या बात करते हैं , स्वयं बोलने में हम कौन से शब्दों का प्रयोग करते हैं इसका सबसे ज्यादा ध्यान रखें , क्योंकि ये “शब्द” बहुत ताकतवर होते हैं , क्योंकि ये “शब्द” ही हमारे विचार बन जाते हैं , और ये विचार ही हमारी ज़िन्दगी की हकीकत बन कर सामने आते हैं , इसलिए दोस्तों , शब्दों की ताकत को पहचानिये, जहाँ तक हो सके सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करिये , इस बात को समझिए कि ये आपकी ज़िन्दगी बदल सकते हैं। आपको एक कहानी के माध्यम से शब्द की ताकत बताना चाहूँगा – एक नौजवान चीता पहली बार शिकार करने निकला। अभी वो कुछ ही आगे बढ़ा था कि एक लकड़बग्घा उसे रोकते हुए बोला, ” अरे छोटू , कहाँ जा रहे हो तुम ?”“मैं तो आज पहली बार खुद से शिकार करने निकला हूँ !”, चीता रोमांचित होते हुए बोला।“हा-हा-हा-“, लकड़बग्घा हंसा ,” अभी तो तुम्हारे खेलने-कूदने के दिन हैं , तुम इतने छोटे हो , तुम्हे शिकार करने का कोई अनुभव भी नहीं है , तुम क्या शिकार करोगे !!”लकड़बग्घे की बात सुनकर चीता उदास हो गया , दिन भर शिकार के लिए वो बेमन इधर-उधर घूमता रहा , कुछ एक प्रयास भी किये पर सफलता नहीं मिली और उसे भूखे पेट ही घर लौटना पड़ा। अगली सुबह वो एक बार फिर शिकार के लिए निकला। कुछ दूर जाने पर उसे एक बूढ़े बन्दर ने देखा और पुछा  
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