शनिवार, 13 अगस्त 2016

विश्वास की डगर ..

विश्वास की डगर ..
क़ाबिल लोग न तो किसी को दबाते हैं और न ही किसी से दबते हैं।सच्चा चाहने वाला आपसे प्रत्येक तरह की बात करेगा. आपसे हर मसले पर बात करेगा. लेकिन धोखा देने वाला सिर्फ प्यार भरी बात करेगा।
तुमने मेरा ट्रस्ट(विश्वास, भरोसा ) तोड़ दिया, उसने मेरा ट्रस्ट तोड़ दिया, मैं अब तुम पर कभी ट्रस्ट नहीं कर सकता/सकती. इस दुनिया में तो किसी पर ट्रस्ट करना ही बेकार है. आये दिन ट्रस्ट के बारे में हमे अपने दोस्तों और अपने आस-पास के लोगो से ऐंसे न जाने क्या-क्या सुनने को मिलता है मगर वास्तव में भरोसा है क्या? भरोसा ही तो सबकुछ है जिसके जुड़ने पर हम किसी को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करते हैं और जिसके टूटने पर हम खुद टूटकर उस भरोसा तोड़ने वाले को ही अपनी ज़िन्दगी से बाहर निकाल फेंकते हैं या सोचते है यह हमारे काबिल नही वेसे भरोसा तोड़ने वाला आपके लिए काबिल मित्र हो भी नही सकता ! वह होगा तो स्वार्थ परस्त व् स्वयम हित के लिए आपकी भावनाओ के साथ खिलवाड़ करने वाला क्यों की कुछ लोग होते ही ऐसे
भगवत गीता में लिखा है कि “भरोसा (विश्वास ) इन्सान का सबसे अच्छा मित्र है तो भरोसा ही इंसान का सबसे बुरा शत्रु भी है”. एकदम सही तो लिखा है भगवत गीता में, भरोसा अगर सही इन्सान पर हो जाये तो आपकी ज़िन्दगी सुकून से बीत जाती है और भरोसा अगर गलत इन्सान पर हो जाये तो आपकी बनी-बुनी ज़िन्दगी का सुकून भी जड़ से उखड जाता है.भरोसा सबसे अच्छा मित्र भी है तो भरोसा सबसे बुरा शत्रु भी है. भरोसा आपकी ज़िन्दगी संवार सकता है तो ट्रस्ट ही आपकी संवर चुकी ज़िन्दगी उजाड़ सकता है.! आजकल की दुनिया में किसी पर भी हद से ज्यादा भरोसा करना बहुत ही मुश्किल होता है क्यूंकि आजकल हमारा भरोसा तोडना और हमारे भरोसा(विश्वास ) से खेलना लोगो के लिए आम बात हो गई है. हम जिस पर हद से ज्यादा भरोसा कर देते हैं, वही हमारे हद से ज्यादा भरोसा को हमारी बेवकूफी समझता है और आये दिन अपने स्वार्थ के लिए हमारे भरोसा का फायदा हमसे ही उठाता है. अब एक तरफ जहाँ आजकल किसी पर भी भरोसा करना मुश्किल से होता है तो वहीँ दूसरी तरफ भरोसा के बिना जीना भी हमारे लिए नामुमकिन सा होता है क्यूंकि भरोसा एक तरफ जहाँ हमारी कमजोरी है तो वहीँ दूसरी तरफ हमारी ताकत भी है. भरोसा हमारी कमजोरी भी है और ताकत भी और ऐंसे में अगर हमारा किसी पर भरोसा करना बहुत जरुरी है तो मैं ये नहीं कहता कि उस पर भरोसा मत करो. मैं तो ये कहता हूँ कि उस पर भरोसा करो मगर अपने को तब तक सिर्फ एक उम्मीद बनाकर रखो कि जब तक वो आपकी उस उम्मीद पर खरा न उतर जाये. जब वो आपकी उम्मीद पर खरा उतर जाता है तो तब वो आपके ट्रस्ट करने के लायक हो जाता है मगर उसके बाद भी उस पर इतना भरोसा मत करो कि बाद में उसके आपके भरोसा को तोड़ने के बाद आप बुरी तरह से टूट ही जाओ या आप किसि की नजर से गिर जाओ . जब वो आपकी उम्मीद पर खरा उतर जायेगा तो तब आप एक या दो बार उसे किसी न किसी तरह से परखो और जब वो आपकी परख में भी खरा उतर जाये तो तभी उस पर ऐंसा भरोसा करो कि वो कभी किसी भी मज़बूरी में भी आपका भरोसा तोड़ ही न पाये.अगर कोई इन्सान आप पर हद से ज्यादा भरोसा करता है तो आप उस इंसान के लिये उसकी कामयाबी और नाकामयाबी की वजह बन जाते हो, ये तो कुछ नहीं बल्कि आप उस इन्सान के लिए उसके जीने और मरने की वजह भी बन सकते हो. इसलिए आप किसी भी बड़ी से बड़ी मज़बूरी में भी भले ही उस इन्सान का दिल तोड़ दो मगर उसका आप पर किया भरोसा कभी भूल से भी मत तोडना. अब यहाँ पर दिल टूटने और विश्वास के टूटने में फर्क क्या है जो कि मैंने कहा कि भले ही आप उस इंसान का दिल तोड़ दो मगर उसका विश्वास कभी मत तोडना. दिल तोड़ने का मतलब है कि उस इन्सान को तोड़ने के बाद भी उसे ज़िन्दगी में आगे जीने के लिए एक वजह देना ताकि वो अपनी ज़िन्दगी उस वजह के साथ नए सिरे से शुरू कर सके और भरोशा तोड़ने का मतलब है कि उस इंसान को तोड़ने के बाद उस इन्सान से उसकी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू करने की और जीने की सारी वजह ही ख़तम कर देना. खैर दिल तोड़ने और ट्रस्ट तोड़ने के बीच के फर्क को आप में किसी का भी समझ पाना संभव नहीं है और मेरा यहाँ लिखकर समझाना भी संभव नहीं है इसलिए जितना हो सके आप ये कोशिश करो कि आप कभी भूल से भी किसी के दिल और ट्रस्ट टूटने की वजह न बन जाओ.ट्रस्ट..! एक ट्रस्ट ही तो है जो न दिखाई देने वाले उस भगवान के होने का अहसास कराता है. अगर ट्रस्ट ही न हो तो दिखाई न देने वाला भगवान भी अगर हमारे सामने आ जाये तो हमे उसका अहसास तक न हो पाए. इसलिए आप बहुत ही भाग्यवान हो कि अगर कोई आप पर हद से ज्यादा ट्रस्ट करता है और वेंसे भी आप इसलिए भी बहुत भाग्यवान हो क्यूंकि इन्सान हद से ज्यादा ट्रस्ट सिर्फ अपने माँ-बाप और भगवान पर ही कर सकता है. जरा सोचो कि अगर उसका ऐंसा ट्रस्ट आपको मिला है तो आप उसके लिए क्या कुछ नहीं हो.लोग कहते हैं कि अगर ट्रस्ट एक बार टूट जाये तो फिर कभी जुड़ता नहीं है मगर हकीकत में देखा जाये तो ऐंसा बिलकुल भी नहीं है. आप अगर किसी इन्सान का एक बार ट्रस्ट तोड़ोगे और उसे तोड़ते ही या कुछ दिनों बाद आपको अगर अपनी भूल का अहसास हो जाये तो आप उस इंसान को आप पर फिर से ट्रस्ट करने के लिए बड़े ही आराम से मना सकते हो क्यूंकि उस इंसान ने आप पर ट्रस्ट किया है और इसी वजह से वो आपके एक-दो बार मनाने पर आपसे फिर से ट्रस्ट करने के लिए आसानी से मान जाता है मगर अगर आप बार-बार आप पर ट्रस्ट करने वाले इन्सान का ट्रस्ट बार-बार तोड़ोगे और बार-बार उससे ये उम्मीद रखोगे कि वो मान जाये तो ऐंसे में एक दिन ऐंसा आ जायेगा कि वो इंसान मर जाना पसंद करेगा मगर आप पर भूल से भी विश्वास करना नहीं करेगा !किसी का ट्रस्ट पाना आपकी एक उपलब्धि है और किसी का ट्रस्ट खोना आपका उसकी नज़र में आपका और खुद अपना ही वजूद तक खोने जैंसा है.आप कितने भी ज्ञानी हो मगर उसकी नजर में आप अज्ञानी व् स्वार्थ परस्त ही रहोगे बाकि हकीकत में देखा जाये तो आज की दुनिया में ट्रस्ट बहुत ही कम देखने को मिलता है और जो ट्रस्ट के नाम पर देखने को मिलता है वो सिर्फ उम्मीद होती है. इसलिए मेरा मानना है कि अगर ट्रस्ट करो तो खुद पर करो और किसी दुसरे पर करो तो ऐंसा करो कि वो दूसरा भूल से भी आपका ट्रस्ट तोड़ने तक के बारे में सोच तक सके.“आप किसी पर ट्रस्ट करते हो और वो आपका ट्रस्ट तोड़ दे तो आपकी खुशहाल ज़िन्दगी बर्बाद हो सकती है और अगर वो आपका ट्रस्ट न तोड़े तो आपके ट्रस्ट ही आपकी बर्बाद ज़िन्दगी भी आबाद हो सकती है इसलिए भगवत गीता एक श्लोक में कहा गया है कि विश्वाश ही आपका सबसे अच्छा मित्र है और विश्वाश ही आपका सबसे बड़ा शत्रु.”

उत्तम जैन (विद्रोही )

स्वतंत्रता दिवस

मित्रो 70 वा स्वतंत्रता दिवस नाने को उत्सुक है ! हमे जो स्वतंत्रता विरासत में मिली है ! उस स्वतंत्रता के लिए हमारे पुरखो ने पूर्वजो ने बलिदान किया है आज वह एक इतिहास बन गया है ! अंग्रेजो के शासन से मुक्ति दिलाने में कितने वीर शहीद हुए हमने शायद पुस्तको में ही पढ़ा ! मगर पुस्तको में कुछ चंद शहीदों के नाम ही अंकित हुए ! हजारो हजारो स्वतंत्रता सेनानी ने जन्मभूमि भारत माँ के लिए कुर्बानी दी ! तब जाकर हमें आंशिक ( आंशिक क्यों इसका जबाव आगे की पक्तियों में करूँगा ) स्वतंत्रता प्राप्त हुई ! स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले महान सेनानियों के प्रति शुभकामना प्रेषित करना और हर्ष व् उल्लास है साथ हमे इसे मना लेना ही हमारे कर्तव्य की इति श्री समझ लेना काफी नही है ! किसी अज्ञात कवि की पंक्तिया -
लोकतंत्र है आ गया , अब छोड़ो निराशा के विचार को !
बस अधिकार की बात न सोचो , समझो कर्तव्य के भार को !!
भुला न पायेगा काल , प्रचंड एकता की आग को !
शान से फहराकर तिरंगा , बढ़ाएंगे देश की शान को !!
बित जायेगा वक्त भले , पर मिटा न पायेगा देश के मान को !
ऐसी उडान भरेंगे , दुश्मन भी होगा मजबूर , ताली बजाने को !!
एकता ही संबल है , तोड़े झूठे अभिमान को !
कंधे से कन्धा मिलाकर , मजबूत करे आधार को !!
इंसानियत ही धर्म है बस ,याद रखे भारत माता के त्याग को !
चंद पाखंडी को छोड़कर , प्रेम करे हर इन्सान को !!
देश है हम सब का , बस समझे कर्तव्य के भार को !
नव युग आ गया है , अब छोड़ो निराशा के विचार को !!

15 अगस्त को भारत 70वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने जा रहा है। इस साल, स्वतंत्रता दिवस समारोह अलग भी होगा और बहुत खास भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयोजित अपनी पार्टी की संसदीय दल की बैठक में अपने पार्टी सहयोगियों से स्वतंत्रता दिवस समारोह को खास बनाने की इच्छा बताई यह हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी की जागरूकता है उनकी जागरूकता को में नमन करता हु ! पूरा देश इस दिन देश प्रेम में डूब जाएगा। जगह-जगह अपना तिरंगा झंडा लहराता हुआ नज़र आएगा। लोगों के कपड़ों, घरों, सामानों, गाड़ियों आदि सब जगह अपना तिरंगा झंडा छाया रहेगा। स्वतंत्रता दिवस का यह दिन हर साल लोगों में एक अलग और नया उत्साह लेकर आता है। बच्चों की उत्सुकता तो देखती ही बनती है। इस बार का 15 अगस्त भी हर तरह की तरह अलग और खास होगा और इस बार के 15 अगस्त की अलग बात यह है कि यह वीकेंड की छुट्टी के बाद ही मतलब इस बार के वीकेंड की छुट्टियाँ ज़्यादा हैं। है ना यह खुशी की बात! तो इस स्वतंत्रता दिवस अपने परिवार के साथ तैयार हो जाइए इन खास जगहों की यात्रा के लिए, जहाँ पहुँच आप देशभक्ति के रंग में सराबोर हो जाएँगे। आख़िर देशप्रेम होता ही ऐसा है जो हर एक इंसान के चेहरे पर अलग ही झलकता है। आज़ादी की वह खुशी लोगों के चेहरे पर साफ दिखाई पड़ती है। मगर ये स्वतंत्रता मेरी समझ में कुछ कम आ रही है क्यों की समाचार पत्रों व् शोशल मिडिया पर जगह जगह सुन रहा हु देख रहा हु पढ़ रहा हु ... स्‍वतंत्रता दिवस पर वाघा बॉर्डर पर हमले कर सकता है ..हमारे pm पर हमले हो सकते है ...वहा यहाँ कही भी हमले हो सकते है .... एक दशहत के साथ हम स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे यह भी कटु सत्य है इस लिए मेने पहले आंशिक स्वतंत्रता का उलेख किया ! भारत का स्वतंत्रता दिवस ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि इस दिन हम राजनीतिक तौर पर आजाद हुए और हमने लोगों के दिल और दिमाग में राष्ट्रीयता का विचार पैदा करना शुरु किया। अगर ऐसा न होता तो लोग अपनी जाति, समुदाय व धर्म आदि के आधार पर ही सोचते रह जाते। हालांकि भारतीय होने का यह गौरव केवल एक भौगोलिक सीमा के ऊपर खड़ा था। भारत का असली व पूरा गौरव, इसकी सीमाओं में नहीं बल्कि इसकी संस्कृति, आध्यात्मिक मूल्यों तथा सार्वभौमिकता में समाया है। भारत दुनिया की आध्यात्मिक राजधानी है। तीन ओर से सागर तथा एक ओर से हिमालय पर्वत श्रृंखला से घिरा भारत, स्थिर जीवन का केन्द्र बन कर सामने आया है। यहां के निवासी एक हजारों सालों से बिना किसी बड़े संघर्ष के रहते आ रहे हैं, जबकि बाकी संसार में ऐसा नहीं रहा। जब आप संघर्ष की सी स्थिति में जीते हैं तो आपके लिए प्राणों की रक्षा ही जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य बना रहता है। जब लोग स्थिर समाज में जीते हैं, तो जीवन-रक्षा से परे जाने की इच्छा पैदा होती है। इस तरह भारत ही ऐसा स्थान है, जहां लंबे अरसे से, स्थिर समाजों का उदय हुआ और नतीजन आध्यात्मिक प्रक्रियाएं विकसित हुईं। आज आप अमेरिका में लोगों के बीच आध्यात्मिकता को जानने की तड़प को देख रहे हैं, उसका कारण यह है कि उनकी आर्थिक दशा पिछली तीन-चार पीढ़ियों से काफी स्थिर रही है। उसके बाद उनके भीतर कुछ और अधिक जानने की इच्छा बलवती हो रही है। इंसान बुनियादी रूप से क्या है, इस मुद्दे पर इस धरती के किसी भी दूसरी संस्कृति ने उतनी गहराई से विचार नहीं किया जैसा हमारे देश में किया गया। यही इस देश का मुख्य आकर्षण है कि हमे पता है कि मानव-तंत्र कैसे काम करता है, हम जानते हैं कि इसके साथ हम क्या कर सकते हैं या इसे इसकी चरम संभावना तक कैसे ले जा सकते हैं। हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि महान मनुष्यों के निर्माण से ही तो महान देश और महान विश्व की रचना हो सकती है।परंतु अब, लोगों को भौगोलिक सीमाओं में ही गौरव का अनुभव होने लगा है। अंग्रेज़ों के आने से पूर्व, यह सारी धरती अनेक राज्यों में बंटी थी। फिर हमने इसे एक देश बनाया, लेकिन कुछ दुर्भाग्यपूर्ण कारणों से यह तीन टुकड़ों में विभाजित हो गया है। संसार में कुछ ताकतें हमेशा विभाजन के लिए काम करती रहती हैं क्योंकि इसी में उनका लाभ छिपा होता है। परंतु यदि मानवता परिपक्व हो जाएगी तो सीमाओं के बावजूद उनका इतना अधिक प्रभाव नहीं होगा। सच्ची स्वतंत्रता तभी मिल सकेगी जब हम किसी देश से अपनी पहचान जोड़ने की जरुरत से भी स्वतंत्र हो जाएंगे। अगर कुछ सौ सालों में, हम एक ऐसा दिन मना सकें कि संसार सारी सीमाओं और भेदों से स्वतंत्र हो जाए, तो वह सही मायनों में एक भव्य स्वतंत्रता होगी। अन्यथा, अगर कोई एक देश स्वतंत्र होता है और दूसरा देश गुलाम, तो यह सच्ची स्वतंत्रता नहीं है। जब आप किसी को नीचे दबाते हैं तो आप उसके साथ-साथ अपनी स्वतंत्रता भी गंवा देते हैं। जैसे कोई पुलिस वाला हथकड़ी के एक हिस्से को अपने हाथ में और दूसरे हिस्से को मुजरिम के हाथों मे पहना दे। दोनों ही तो बंधन में बंधे हैं, बस अंतर इतना है कि पुलिसवाले के हाथ में हथकड़ी की चाबी है। परंतु जीवन के साथ ऐसा नहीं है। चाबी तो बहुत पहले कहीं खो गई है। अगर आप किसी को बांधते हैं, तो आप स्वयं भी बंधते हैं और इसे खोलने के लिए कोई चाबी नहीं है। स्वतंत्रता दिवस की असली चाबी सीमाओं को तोड़ने में है, ये सीमाएं केवल राजनीतिक ही नहीं हैं, हमें उन बाधाओं को भी तोड़ना है, जो हमने अपने भीतर बना रखी हैं। जब तक हम अपने गुस्से, भेदभाव, जलन या ऐसी दूसरी सीमाओं से मुक्त नहीं होते, तब तक हमारे लिए स्वतंत्रता कोई मायने नहीं रखती। इस देश की सांस्कृतिक विरासत में, इन बंधनों को तोड़ने की आंतरिक विधियां और तकनीकें हमेशा से मौजूद रही हैं। अब समय आ गया है कि स्वतंत्रता के इन साधनों को संसार के सामने पेश किया जाए।सच्ची स्वतंत्रता तभी मिल सकेगी जब हम किसी देश से अपनी पहचान जोड़ने की जरुरत से भी स्वतंत्र हो जाएंगे। अगर कुछ सौ सालों में, हम एक ऐसा दिन मना सकें कि संसार सारी सीमाओं और भेदों से स्वतंत्र हो जाए, तो वह सही मायनों में एक भव्य स्वतंत्रता होगी अंत में सभी शहीदों को मेरा नमन ... श्रदांजली, पुष्पांजली
उत्तम जैन (विद्रोही )

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

सफलता की और कदम

                                                              सफलता की और कदम



चलते रहे चलते रहे ...
ग़मों के कांटे चुभते रहे,
फिर भी हम चलते रहे|
मिलते रहा सभी से मगर,
अपने दायरों में सिमटता रहा
फिर भी में चलता रहा !
गिरना तो फितरत ही थी,
गिर गिर के संभालता रहा |
फिर भी में चलता रहा …
क्या है तेरा वजूद ‘विद्रोही ’,
मौसम से तुम बदलते रहे |
फिर भी हम चलते रहे …
मित्रो ये पंक्तिया मेरे जीवन में बहुत बड़ा सन्देश देती है क्यों की सफलता और असफलता का मेरे जीवन चोली दामन का साथ रहा है --- समय के साथ खुद ही ढलते गये हम । चलते रहे बहुत सम्भलकर फिर भी फिसल ही गये हम ।किसी ने विश्वास तोड़ा , किसी ने दिल। किसी ने हाथ छोड़ा तो किसी ने मुह मोड़ा । फिर भी लोगों ने यही कहा बदल गये हम ! सँभलकर कर चलते रहे उम्र भर अनजानी राहों पर पैर लड़खड़ाए वहीं जहाँ राहें जानी पहचानी थी ! एक अनचाहा सा खाली पन , जब भी कुछ लम्हे ज़िन्दगी के सुकून से बिताने को मन करता है जो कुछ पाने कुछ खोने ,किसी को अपना बनाने ,किसी के होने का मन करता है बस एक साथी है जो मेरा हर समय मेरे सुख मेरे दुःख में रंग भरने का काम करता है वो है मेरी डायरी और उस का प्रेमी 'कलम " जब दोनों एक दुसरे से मिल जाते है तो बिछड़ने का नाम ही नहीं लेते है ! बचपन से शोख कहू या सपना जब कोई समाचार पत्र पढता था ! हमेशा सोचता था में भी एक ऐसा समाचार पत्र का प्रकाशन करूँगा ! एक बार कोशिस भी मगर सफल नही हो पाया ! मात्र 2 अंक के बाद कुछ कारण से प्रकाशन बंद हो गया ! मगर होंसला था जज्बा बुलंद था की एक दिन प्रकाशन फिर से करूँगा और फिर शुरू हुआ .... हुआ तो बढ़ता ही गया बढ़ता ही गया और बढ़ता ही जा रहा है ... महापुरुषों की , लेखको की लिखित साहित्य पढने का शोख ने कुछ लिखने को प्रेरित किया अब कुछ वर्षो से लिखने भी लगा हु ! अच्छा लिखू या नही में नही जानता मगर जो लिखता हु आप सभी मित्रो से जरुर साझा करता हु आप सबकी प्रतिक्रिया मुझे हमेशा नया लिखने का साहस प्रदान करती है ! अब कुछ विषय के मुख्य बिंदु की और मित्रो जब हम किसी सफल व्यक्ति को देखते हैं तो केवल उसकी सफलता को देखते हैं। इस सफलता को पाने की कोशिश में वह कितनी बार असफल हुआ है, यह कोई जानना नहीं चाहता। जबकि असफलता का सामना करे बिना शायद ही कोई सफल होता है। असफलता, सफलता के साथ-साथ चलती है। आप इसे किस तरह से लेते हैं, यह आप पर निर्भर करता है, क्योंकि हर असफलता आपको कुछ सिखाती है। असफलता में राह में मिलने वाली सीख को समझकर जो आगे बढ़ता जाता है वह सफलता को पा लेता है। सफलता के लिए जितना जरूरी लक्ष्य और योजना है, उतना ही जरूरी असफलता का सामना करने की ताकत भी।
जिस दिन आप तय करते हैं कि आपको सफलता पाना है, उसी दिन से अपने आपको असफलता का सामना करने के लिए तैयार कर लेना चाहिए, क्योंकि असफलता वह कसौटी है जिस पर आपको परखा जाता है कि आप सफलता के योग्य हैं या नहीं। यदि आप में दृढ़ इच्छाशक्ति है और आप हर असफलता की चुनौती का सामना कर आगे बढ़ने में सक्षम हैं तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। तो हो जाइए तैयार सफलता की राह में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के लिए, क्योंकि हर सफल व्यक्ति के पीछे उसकी असफलताओं की भी कहानी होती है।
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में ।
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले ।।
अंग्रेज़ी की एक प्रेरक कहावत है- 'स्ट्रगल एंड शाइन।' यह वाक्य हमें बड़ी शक्ति देता है, जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। जीवन में कठिनाईयां तो आती ही हैं और कभी-कभी तो इतने अप्रत्याशित कि संभलने का भी पूरा समय नहीं मिलता। यही तो जीवन की ठोकरें हैं जिन्हें खाकर ही हम संभलना सीख सकते हैं। उनसे बचने की कोशिश तो करना है, पर ठोकर कहते ही उसे हैं जो सावधानी के बाद भी लगती है और आखिर एक नई सीख भी दे जाती है। रसायन शास्त्र का एक नियम है, जो जिंदगी पर भी लागू होता है। जब कोई अणु टूटकर पुन: अपनी पूर्व अवस्था में आता है तो वह पहले से अधिक मज़बूत होता है। इसी तरह हम जब किसी परेशानी का सामना करने के बाद पहले से अधिक मज़बूत हो जाते हैं और जीवन में और भी तरक्की करते हैं।
मंजिल मिल ही जायेगी भटकते ही सही,
गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं........
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
नोट - इन विचारो को तोेड मरोडकर या नाम हटाकर ..कही पोस्ट न करे


जीवन का नफा नुकसान

          
जीवन का नफा नुकसान
चार लाइन आज याद आ गयी ....उसी पर मेरे विचार
नुकसान देखले या अपना नफा देखले .
दिलसे तू मुहब्बत का फलसफा देखले .
बड़े बड़े धनकुबेर पल में कंगाल हो गए ,
मुस्कुराके जिसको तू एक दफा देखले .......
मित्रो! अध्यात्म जीवन जीने की प्रणाली है, जीवन जीने की प्रक्रिया है। मरने के बाद स्वर्ग मिलता है कि नहीं, यह मैं नहीं जानता,और में स्वर्ग नर्क में विश्वास भी नही करता लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आध्यात्मिकता के सिद्धांतों को यदि हम जीवन में समाविष्ट कर सकते हों, तब हमारे चारों ओर स्वर्ग बिखरा हुआ दिखाई पड़ेगा। तस्वीर खींचने का यदि हमको सही ढंग मालूम हो, तो हम इस दुनिया की बेहतरीन तस्वीरें खींच सकते हैं और अपने आप की भी। हमारी भी तस्वीर बेहतरीन है, लेकिन यदि हमने दुनिया की खराब वाली तस्वीर देखना शुरू किया, अपना कैमरा कहीं गलत जगह पर फोकस कर दिया, तब हमको क्या चीजें मिलने वाली हैं? तब सबसे ऊपर की शक्ल या सिर आएगा या फिर पैर आएगा और यदि उसी आदमी को बैठाकर फोटो खींचेंगे, तो मालूम पड़ेगा कि कोई लम्बा-लम्बा भूत खड़ा हुआ है। कैमरे का लेन्स वही है, जिससे आपने व्यक्ति को सामने खड़ा करके फोटो लिया था। कैमरे का लेन्स वही है, जो आपने पीठ पीछे से लिया है, खड़ा करके। आपको दुनिया का नहीं, अपने अंतरंग जीवन का फोटो लेना है और उसके आधार पर अपनी शांति, सुख, समृद्धि का मूल्यांकन करना है। अध्यात्म को अपने जीवन का अंग बनाना है। साथियो! आध्यात्मिकता एक फिलॉसफी है- एक दर्शन है, सोचने- समझने की प्रणाली है, जीवन जीने की कला है। हमें अपनी समस्याओं के बारे में, कुटुम्ब के बारे में, अपनी महत्त्वाकाँक्षा के बारे में, अपने पुरुषार्थ के बारे में सोचना है। यदि हमारा विचार करने का क्रम ठीक हो, तो हम आपको आशीर्वाद दे सकते हैं कि आपका जीवन सुखों से भरा हुआ हो, आप प्रसन्न रहें, उन्नति करें। आपका जीवन उल्लास से भरा हुआ हो सकता है, यदि आपको सही ढंग से देखना आता हो तब। मान लीजिये किसी के कुटुम्बी की मौत होने वाली है। ठीक है आपको अपना भाई-भतीजा चाचा-ताऊ दादा-दादी प्यारे थे, लेकिन दूसरों को भी आवश्यकता हैं- अपने भाई-भतीजों को गोद में खिलाने की। यदि हम उनको चिपकाकर रखेंगे, तो किसी के घर ढोलक कैसे बजेगी? मिठाई कैसे बाँटी जाएगी? कोई माता अपने लाल को कैसे निहारेगी? अपने लाल को पाकर कैसे धन्य होगी? एक का आनंद-दूसरे का शोक, एक का नफा-दूसरे का नुकसान-यही दुनिया का क्रम है। भाइयों कई बार बड़े-बड़ों से गलती हो जाती है। लोग नफे को नुकसान समझ लेते हैं नुकसान को नफा समझ लेते हैं। बीज बोया जाता है जमीन में तो यह मालूम पड़ता है कि नुकसान हो गया। बीज चला गया। बीज कितने दाम का आता है महँगा आता है आजकल लेकिन बीज नुकसान हो गया लेकिन जब उसकी फसल तैयार होकर आती है कोठे और कुठीले भर जाते हैं तब मालूम पड़ता है कि नहीं गलती नहीं हुई थी यह ठीक सलाह दी गई थी हमको। हमको बीज बोने की सलाह देकर हमारा बीज छीना नहीं गया था नुकसान की तरफ ढकेल नहीं दिया गया था। इसी तरह जीवन में सुख से जीने के लिए कष्ट व् दुःख व् समर्पंण रूपी बीज आपको समाज , परिवार , मित्रो , व्यापार , गुरु भक्ति के लिए बोने होंगे फिर देखिये कुछ दिनों बाद ख़ुशी व् सफलता रूपी फसल लहलहाने को तेयार हो जाएगी ! जीवन में खुशिया ही खुशिया प्राप्त होगी !
उत्तम जैन (विद्रोही )

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

एक नारी की पीड़ा - मेरी जुबानी

           



        
           एक नारी की पीड़ा - मेरी जुबानी


मित्रो में आज एक ऐसे विषय पर अपने विचार प्रेषित कर रहा हु जो आज की सबसे बड़ी समस्या है कुछ दिनों पूर्व मेरे एक पत्रकार मित्र के साथ बेठा था उसने उसे प्राप्त एक किशोरी के खत की चर्चा की मेरे मानस पटल पर यही बात बात बार बार आ रही थी ... मेने सोचा अपने विचारो को ब्लॉग, फेसबुक , व्हट्स अप के सभी पाठको को अपने विचार संप्रेषित करू उसने मेरे पत्रकार मित्र को लिखा था, 'मेरे साथ जबर्दस्ती हुई थी। तब से लेकर आज तक मैं हर पल तनाव में रहती हूँ। मैं बहुत हीन भावना महसूस करती हूँ क्योंकि मैं किसी से आँख मिलाने के लायक नहीं रही...।"पता नहीं मनोचिकित्सक महोदय को बताउंगी तो क्या उत्तर देंगे। शायद कोई समझाइश या दिलासा दें । इस किस्म की कि तुम्हारी इसमें कोई गलती नहीं, भूल जाओ वगैरह। मगर क्या स्त्री के लिए 'घोर यौन शुचिता' का सामाजिक आग्रह उसे यह भूलने देगा? समाज शिकारी को नहीं, शिकार को घूरे पर फेंकेगा। ताज्य मानेगा। मान लो कि लड़की ने किसी से यह बात शेयर न की हो, तब भी समाज तो मानसिक रूप से उसके पीछे लगा ही है। स्त्रियों के दिमाग में कूट-कूटकर यह बात भरी हुई है कि जबर्दस्ती वाले यौन समागम से भी वे अपवित्र हो जाती हैं। दूषित हो जाती हैं! शायद इसी मानसिकता के चलते बलात्कार के पर्यायवाची शब्दों में इज्जत, अस्मत जैसे शब्द आते हैं। बलात्कार होने पर इज्जत लुट गई, अस्मत लुट गई, सब कुछ चला गया, किसी को मुँह दिखाने काबिल नहीं रही, आँख मिलाने लायक नहीं रही, मुँह पर कालिख पुत गई वगैरह वगेरह । समझ नहीं आता कि जिसने कुछ गलत नहीं किया उसकी 'इज्जत' क्यों गई? उसे शर्म क्यों आई? ठीक है, एक हादसा था। जैसे दुनिया में अन्य हादसे होते हैं और समय के साथ चोट भरती है वैसी ही यह बात होनी चाहिए। मगर नहीं होती। सिर्फ और सिर्फ औरत के लिए ही यौन शुचिता के आग्रह के चलते हम घटना को कलंक बनाकर शिकार के माथे पर सदा-सर्वदा के लिए थोप देते हैं। स्त्री को जिन्दगी भर के लिए कलंकित कर घुटने को मजबूर कर देते है जब उसकी कोई गलती नही होती ! हार समाज उसे घृणा की द्रष्टि से देखने लगता है ! लोग अगुली बता कर कर उसे इंगित करते है ! स्त्री का तथाकथित दंभ तोड़ने के लिए भी बलात्कार किया जाता है। प्रताड़ना करने हेतु आज भी गाँवों में स्त्री को निर्वस्त्र करके घुमाया जाता है। क्षेत्रीय अखबारों में इस तरह की आँचलिक खबरें अक्सर आती हैं। क्योंकि कहीं न कहीं हम स्त्री के अस्तित्व को देह के इर्द-गिर्द ही देखते हैं। गाँवों में महिला सरपंचों तक के साथ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जहाँ पुरुषों की अकड़ के आगे स्त्री को पदावनत करने का और कोई उपाय नजर नहीं आया तो यह किया।इसी तरह सती की अवधारणा है। जिसका ताल्लुक स्त्री की यौनिक पवित्रता से है। एक पुरुष के सिवा किसी की न होना तो उसकी एक अभिव्यक्ति भर है। यह ठीक है कि इस अभिव्यक्ति के लिए अब स्त्रियाँ पति की चिता के साथ नहीं जलाई जातीं (कभी-कभी जला भी दी जाती हैं) परंतु भारतीय समाज में सती की अवधारणा अब भी बेहद महिमा मंडित है। सदियों से भारतीय समाज में नारी की अक्षत पर बहुत अत्याचार होते आए हैं. इसे चरित्र से जोड़ना किसी भी रूप में उचित नहीं है. इसके विपरीत पुरुष समाज में सिर उठा कर चलता है जबकि नारी द्वारा किए गए नही उसके साथ किया गयाजबरन छोटे से अपराध के लिए भी उस से उस का जीने का अधिकार तक छीन लिया जाता है! .नारी जीवन में बहुत से समझौते सामाजिक, धार्मिक आर्थिक परिस्थितियों के कारण भी कर लेती है, जिस का खमियाजा उसे ताउम्र आंसू बहाते हुए करना पड़ता है.सारी नैतिकता की जिम्मेदारी केवल नारी की ही तो नहीं, पुरुष का भी दायित्व बनता है कि वह नारी को तन मन और धन से संतुष्ट रखे. केवल नारी से ही सतीसावित्री होने की आशा रखना उचित नहीं है. लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि जितना दुरुपयोग नारी का धर्म के कारण होता है उतना किसी और कारण से नहीं....
उत्तम जैन (विद्रोही )

 

बुधवार, 10 अगस्त 2016

बेटी है तो कल है


बेटी है तो कल है ...
बोये जाते हैं बेटे ,पर उग जाती हैं बेटियाँ,
खाद पानी बेटों को ,पर लहराती हैं बेटियां,
स्कूल जाते हैं बेटे ,पर पढ़ जाती हैं बेटियां,
मेहनत करते हैं बेटे ,पर अव्वल आती हैं बेटियां,
                                                     रुलाते हैं जब खूब बेटे, तब हंसाती हैं बेटियां,
                                                    नाम करें न करें बेटे ,पर नाम कमाती हैं बेटियां,.
क्यों की में अपने बेटो को प्यार करता हु मगर उससे ज्यादा बेटियों को अगर बेटे मेरी जान है तो बेटिया मेरा धड्कता ह्रदय ...यह मेरा ही नही आपका भी होगा कोई संदेह नही ..... बेटे बाप की जमीन बाँटते है और बेटिया हमेशा बाप का दु:ख क्यों करता है भारतीय समाज बेटियों की इतनी परवाह…कहानी के माध्यम से आज में अपने विचार आप तक प्रेषित कर रहा हु ---जिस समस्या से मुख्यतया हर परिवार की पीड़ित बेटी की शिकायत हमेशा अपने माँ व् पिता से रहती है !-----एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई।चेहरे पर झलकता आक्रोश…संत ने पूछा – बोलो बेटी क्या बात है? बालिका ने कहा- महाराज हमारे समाज में लड़कों को हर प्रकार की आजादी होती है।वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है।यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ आदि।संत मुस्कुराए और कहा…बेटी तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं?ये गार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहते हैं।इसके बावजूद इनका कुछ नहीं बिगड़ता और इनकी कीमत पर भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों के लिए कुछ इसी प्रकार की सोच है समाज में।अब तुम चलो एक ज्वेलरी शॉप में।एक बड़ी तिजोरी, उसमें एक छोटी तिजोरी।उसमें रखी छोटी सुन्दर सी डिब्बी में रेशम पर नज़ाकत से रखा चमचमाता हीरा।क्योंकि जौहरी जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी।समाज में बेटियों की अहमियत भी कुछ इसी प्रकार की है।पूरे घर को रोशन करती झिलमिलाते हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं बचता।बस यही अन्तर है लड़कियों और लड़कों में।पूरी सभा में चुप्पी छा गई।उस बेटी के साथ पूरी सभा की आँखों में छाई नमी साफ-साफ बता रही थी लोहे और हीरे में फर्क। बालिका स्तब्ध थी खुद को सबसे कमजोर समझने वाली बालिका गर्व से फूली नही समां रही थी क्यों की जिसके दिल में माँ व् पिता के लिए एक शंका जेहन में बसी हुई थी आज शंका का पूर्ण समाधान प्राप्त हो गया ! बेटी उछलती कूदती मुस्कान बिखेरती संत के चरणों में नतमस्तक हो गयी ! पास में खड़ा पिता के मुह से ये शब्द निकले ......
बेटी! तेरी इस मुस्कान ने मेरी सारी पीड़ा हर ली
देखता हु तुझे मैं अब तक कल्पनाओं में
हँसती-इठलाती नन्हें कदमों से चलती, गिर जाती
किन्तु आज तूने पाया है आकार, मेरी कल्पनायें हुयी साकार
बेटी! तेरी इस मुस्कान ने मेरी सारी पीड़ा हर ली
दिया मुझे नया जीवन मेरी दुनिया रोशन कर दी
आ छुपा लूँ तुझे अपनी बाँहों में चलना सिखलाऊँ जीवन की राहों में !
मित्रो अब में आपको एक बेटी के नाम सन्देश देना चाहुगा हर माँ बाप की तरह.... हमारी भी यही ख्वाहिश रही है कि तुम लोग अच्छे से अच्छा करो.....कभी गलत रास्तों पर मत चलो...कभी ऐसा कार्य मत करना की माँ व् पिता को सर झुके और माँ पिता जन्म देने से पहले विदा (कन्या भ्रूण हत्या ) कर दे ! .माँ व् पिता के सपने को साकार करो ! और साथ में माँ पिता से एक अनुरोध करूँगा ... कभी कन्या भ्रूण हत्या न करे ! में जानता हु आज दहेज रुपी कुप्रथा वैसे तों समाज के सभी तबकों में अपना पैर पसार चुकी है ! एक कुरीति के लिए आप अपने अनमोल हीरे को गर्भ में म़त मारिये ! बेटी को वरदान समझे ना की अभिशाप ! वही बेटी तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा बनेगी ! आज से प्रण ले हम कन्या भ्रूण हत्या नही करेंगे मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा !हाथ जोडकर निवेदन हैं कि ये मैसेज अपनी बेटी-बहन को अवश्य पढायें और दोस्तों में , रिश्तेदारों के साथ, सभी शेयर करें में आपका ऋणी रहूँगा
उत्तम जैन (विद्रोही )


सोमवार, 8 अगस्त 2016

गोमाता पर बयान---


                                                                  गोमाता पर बयान
गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों पर पाबंदी लगाई जाए। प्रधानमंत्री ने ठीक बोला है, सरकार को गाय बचाने का आयोग चलाना चाहिए। पूरे देश मे सड़कों पर गाय पॉलिथीन खा रही है और सबसे ज्यादा गाय की हत्या इस कारण से हो रही है तो गोरक्षक इसकी चिंता करें, जनता कानून को अपने हाथ में न ले मोका मिल गया लालू जी ने मोदी पर तीखा तंज कसते हुए अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि लगता है मेरे द्वारा दो दिन पहले कही गई बात मोदी जी को अच्छे से समझ आ गई कि गाय दूध देती है, वोट नहीं। और समझ भी क्यों ना आए? गोमाता इनकी सरकार बनवाना तो दूर, बनी बनाई सरकारों को हिला रही है। लो मोका मिला की राजनीती शुरू अब मोदी जी बोले तो कुछ सोच समझकर ही बोले होंगे हम द्वारा चुनकर भेजे गए महत्वपूर्ण व् जिम्मेदार पद पर आसीन है !अब कोई सोच रहा है बीजेपी की जमीन खिसक चुकी है खिसके तो तब गोभक्त अपने पर आयेंगे तब न कोई कहता है मोदीजी घबरा गए हैं इसलिए ही अपनी बात रख रहे हैं। इतने सारे राज्यों में उनकी सरकारें हैं, देखना यह है की उन्होंने क्या कार्यवाही की है वहीं विपक्ष के हमलों पर बीजेपी और सरकार का कहना है कि पीएम मोदी को जो संदेश देना था, वो स्पष्ट और साफ शब्दों में दिया है। में मानता हु की उनके सन्देश का एक ही अर्थ है की देश में शांति और सौहार्द रहे। देश जिस रस्ते पर चल रहा है उसमे रोड़ा पैदा करने वाले को नहीं बक्शा जाएगा। संघ ने मोदी के सुर में सुर मिलाया प्रधानमंत्री के इस बयान को संघ का भी साथ मिल गया है। प्रधानमंत्री के इस बयान को संघ का भी साथ मिल गया है संघ के सर सहकार्यवाह भैय्याजी जोशी ने कहा कि गोरक्षा के नाम पर कुछ लोग कानून हाथ में लेकर सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का काम कर रहे हैं। ऐसे लोगों को बेनकाब किए जाने की जरूरत है।अब तह तक जाने का काम हम लोगो का है क्यों की नेताओ की बयानबाजी तो हमे समझ में आने वाली नही यह कम पढ़े लिखो का काम नही !कुछ नेता पीएम के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों पर पाबंदी लगाई जाए। प्रधानमंत्री ने ठीक बोला है, सरकार को गाय बचाने का आयोग चलाना चाहिए। पूरे देश मे सड़कों पर गाय पॉलिथीन खा रही है और सबसे ज्यादा गाय की हत्या इस कारण से हो रही है तो गोरक्षक इसकी चिंता करें, जनता कानून को अपने हाथ में न ले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरक्षा के नाम पर उपद्रव करने वालों पर निशाना साधा था। नकली गोरक्षकों से सावधान रहें, अब हमे पहले असली व् नकली गो रक्षको को पहचानने से पहले आरोप प्रत्यारोप भी नही लगाने है ! साथ ही गोरक्षा के नाम पर उपद्रव करने वालों पर राज्यों से सख्त कार्रवाई करने को कहा है। प्रधानमंत्री ने असली गोरक्षकों से अपील की कि वो उन्हें एक्सपोज करें। अब असली का प्रमाण पत्र भी आधार कार्ड जेसा अगर बन जाता तो ठीक ही था ! देश में गोहत्या पर पाबंदी है जबकि रिपोर्ट के मुताबिक Meat Industry में जिंदा जानवरों के साथ-साथ भैंस, भेड़, बकरों, सुअर, बैल और गायों तक के मांस का व्यापार होता है।शायद लाइसेंस देने में सरकार बूचड़खानों की तुलना में दूध उत्पादन इकाइयों में कम दिलचस्पी लेती है। सरकार द्वारा ने जितनी संख्या बताई जाती है वो तो रजिस्टर्ड बूचड़खानों की संख्या है, मीट का बहुत बड़ा कारोबार बिना रजिस्टर्ड बूचड़खानों में होता है और छोटे-छोटे बूचड़खानों की संख्या इससे दोगुने से भी ज्यादा हो सकती है। अब आपको आपको ये भी बता दू कि देश में पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और केरल में गोहत्या पर पाबंदी नहीं है। केरल के 55, बंगाल के 11, सिक्किम के 4 और मिजोरम के 2 बूचड़खानों में कानूनी रूप से भी गोहत्या होती है।हैरानी की बात ये है कि ये सब तब भी हो रहा है जब केंद्र में बीजेपी की सरकार है और बीजेपी के लिए गाय हमेशा से आस्था और श्रद्धा का मुद्दा रहा है। गोरक्षा के लेकर तमाम संगठन आजकल सक्रिय हुए हैं और गोमांस पकड़ने के शक में चलती ट्रेनों व् हाइवे तक में वो लोगों की पिटाई कर रहे हैं तो इसके पीछे यही सोच मानी जाती है कि गोभक्त बीजेपी उन पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी ऐसा नहीं है मेने ऐसे गो भक्तो को देखा है जिन्होंने जान जोखिम में डाल कर भी गोमाता की जान बचायी है ! मगर अब उन्हें असली गो सेवक का प्रमाण पत्र रखना ही होगा ! खेर कोनसा नेता कब क्या बोल जाये बड़े आदमी है हम क्या कर सकते है ! दिल के दर्द को कुछ मिनिट में लिखकर आप तक विचार प्रेषित कर दिए आप समझदार हो लेकिन एक बात जानवरों की हत्या और दूध उत्पादन के केंद्रों की संख्या में भारी अंतर इस विडंबना पर सोचने के लिए मजबूर करता है। आप भी सोचे ..गोमाता आज भी पूज्यनीय है रहेगी गोसेवक प्रमाण पत्र की चिंता न करे ... गोसेवा का धर्म निभाए सरकारे तो आती है जाती है और जाती रहेगी ..
उत्तम जैन (विद्रोही )

रविवार, 7 अगस्त 2016

बचपन की यादे और आज

                 बचपन के दिन भी क्या  
               क्या वो बचपन ..वो नादानिया
               वो शरारते ..वो मनमानिया !
              दादी की फटकार , दादा जी मार !
              पापा का चांटा और माँ की पुचकार!
 
 
 
बचपन के दिन भी क्या वो बचपन ..वो नादानिया
वो शरारते ..वो मनमानिया !
दादी की फटकार , दादा जी मार !
पापा का चांटा और माँ की पुचकार
दादाजी से 10 पेसे मिल जाते अनंत खुशिया मिलती खुद की जेब को बार बार टंटोलते कही गिर न जाये ! रोज दादाजी खर्ची के 5 पेसे और ज्यादा जिद्द करने पर 10 पेसे देते ! भाटा की कुल्फी 5 पेसे में मिलती थी ! हवाबाण हरडे , नारंगी गोली की किम्मत सिर्फ 5 पेसे ! अगर 2 रूपये की चिल्लर कभी जमा हो जाती खुद को लखपति समझते ! वो बाजार में लगा नीम का झाड़ के निचे बेठ जाते आजका एयर कंडीशन फेल ....... अब सिर्फ यादे ही यादे
क्या दिन थे वो बचपन के , चाहत चाँद को पाने की करते थे और दोपहर से शाम तक कभी कभी तितली को पकड़ा करते . न दिन का होश न शाम की खबर न ही सुध – बुध कपड़ो की और न ही अपनी . कभी मिट्टी पे हम तो कभी मिट्टी हमारे चेहरों को छूती ,कभी हाथो पे तो कभी कपड़ो पे याद है न कैसे लग जाया करती थी . सुबह की वो प्यारी मीठी नींद से जब हमे जबरदस्ती जगाया जाता .. वो भी स्कूल जाने के लिए. कितना गुस्सा आता था न …….थक – हार के स्कूल से आते पर तुरंत ही खेलने के लिए तैयार भी हो जाते . वो बचपन के सारे खेल हमे कितना कुछ सिखाते थे , कभी आपस में लड़ाते तो कभी साथ मिलके मुस्कुराते . अपनी बचकानी हरकतों से हम दुसरो को कितना सताते थे न . वो …..बहती नाक , खिसकती निक्कर तो याद ही होगी बात है बहुत सालों पहले, बचपन के समय की उन दिनों रोजाना स्कुल से आने के बाद शाम को (जेसा की हर स्कुली बच्चा करता है) हम लोग खेलने जाते थे पास के ही स्कुल ग्राउंड में । लेटेस्ट खेलों से लेकर पारम्परिक देसी खेल जेसे की क्रिकेट, बेडमिन्टन, गुल्ली डंडा, कांच की अंटिया, दड़ी आदि सब बडे मजे से खेले जाते थे, आज के जेसे नहीं कि हर बच्चा टी. वी. से चिपका हो । आलम ये था की उस दौरान शाम सुबह तो जगह नहीं मिलती थी, खेलने के लिये तो फिर जल्दी किसी गुरगे को बिठा कर जबरन कब्जा जमाया जाता, कि पहले हम आएं हैं तो हमारी टीम यहां खेलेगी, और इस ही क्रम में कभी कभी पंगे भी हो जाते थे
पहली टीम दुसरी टीम को कहती कि आ जाना कल शाम को चार बजे देख लेते हैं कि किसने असली मां का दुध पिया है, तो दुसरी टीम में से कोई पहलवान टाइप का लडका कहता कि कल क्या है आज ही देख लेते हैं, चल बता क्या करेगा हम सबके साथ । कोई बहुत बहसे होती व कभी कभी लडाई भी । पर अक्सर कल कल के चक्कर में कई लडाईयां टल जाया करती थी, क्यों कि दुसरे दिन दोनों ही टीमें नदारत होती थी फिर अक्सर बडा कोई सीनीयर मोस्ट व्यक्ती समझौता करा ही देता था, व फिर से वही खेल खेले जाते सदभावना के साथ ।…“आइये फिर डूबते हैं इन कुछ बचपन के खेलो और शरारत भरी यादो में .....वक्त्त के इस आइने में हमारे कल की तस्वीर चाहे कितनी ही पुरानी हो गई हो पर जब भी सामने आती है ढेर सारी यादे ताज़ा हो जाती हैं और वो भी यादे अगर बचपन की हो तो और ही मज़ा आता है …….जैसे -“अक्कड़ -बक्कड़ बम्बे बो, अस्सी नब्बे पुरे सौ , सौ में लगा धागा, चोर निकल के भागा” ये लाइने तो याद ही होगी ! उस टाइम हमे कितना उधमी कहा जाता था वो साहसी वाला नहीं ……….जी! “उधम ” (शोरशराबा / हलचल ) मचाने वाला . पर हमको इस बात की कहा फ़िक्र रहती थी आखिर मनमौजी जो थे .जब हमारी गेंद पड़ोसियों के घरो में चली जाती और हम ” चाची/ काकी /दादी ……….आखिरी बार अब नहीं जाएगी गेंद आपके घर में प्लीज़ ” हमारा मासूम चेहरा देख हमे वापस कर दी जाती.कितनी बार अपने सपनो का घर बनाते तो कभी गुड्डे – गुडियों की शादी करते ,कभी लडकियों की चोटी खींचते और उन्हें परेशान करते उस पर पापा की वो डांटे और वो गलती पर मम्मी को मनाना होता था , कभी बारिश में कागज़ की नाव बहाए तो कभी राह चलते पानी में बेमतलब पैर छप-छपाए .जब याद करते है उन पलो को तो ये गाना याद आता है “कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन “ पर सच कहूँ तो मुश्किल ही लगता है उन दिनों का लौट पाना ….“काश ! कही बैंक होता अपने बचपन का तो……. वो पुरानी यादे वो लम्हे निकाल लाते बचपन में न जाने कैसे – कैसे खेल खेला करते थे और अब समय की व्यस्थता के चलते जिन्दगी हमारे साथ बड़े अजीब -अजीब खेल खेलती है कल तक गुड्डे – गुडियों को हम अपने इशारो पे नाचते थे और आज जिन्दगी हमे .जब हम “उच-नीच” का खेल खेलते थे तब हमे किसी ने बताया नहीं था की ये है क्या हैं? अपने हिसाब से हमने आपने मानक तय कर लिए थे और आज इस के मायने ही बदल गये है अब न ही गलियों में वो शोर सुनाई देता है और ही गिल्ली डंडे के खेल का शोर ……क्योकि अब इन्हें हम में से किसी समझदार ने status simble में बांध दिया है अब कहा जाता है की ये सब खेल शरीफ घर के बच्चे नहीं खेला करते जादातर तो अब बच्चे घर में कैद हो जाते है या तो टी.वी के सामने , विडियो गेम में या कंप्यूटर और या फिर इन्टरनेट पे ….उनकी मासूमियत किसी और ने नहीं हमने ही छीनी है जिसकी वजह से हमारे ये बचपन के खेल अब जल्द ही सिर्फ कुछ इतिहासों के पन्ने बन जायेगे …सच कहूँ तो आज का बचपन कही खोता हुआ नज़र आ रहा है समय से पहले ही बच्चे बड़े हो जाते है एक तरह से तो अच्छा है की उनका विकास हो रहा है पर शायद वो अपने जीवन के उन सुनहरे पलो को नहीं जी पा रहे है जो अपने और हमने जिए है इसी वजह से वो अकेलेपन का शिकार हो रहे है …..स्कूल के बैग का बोझ दिन पर दिन बढता जा रहा है और बच्चे धीरे – धीरे दबते जा रहे है . जरूरत है हमे उन्हें हकीकत की दुनिया से रूबरू करने की .जिससे वो अपने आज को खुल के जी सके और आने वाले कल में हमारे जेसे ये भी कह सके की ………
“बचपन का भी क्या ज़माना था
हँसता मुस्कुराता खुशियो का खज़ाना था
खबर न थी सुबह की न शाम का ठिकाना था
दादा दादी की कहानी थी परियो का फ़साना था
उतम जैन (विद्रोही )

शनिवार, 6 अगस्त 2016

मित्रता दिवस मेरी सोच


    
                         मित्रता दिवस
मेरी सोच
 
मित्रो आज मेरे बचपन में भी मित्र थे !आज भी है हा यह जरुर है पहले मित्रो की संख्या कम थी मगर अच्छी व् सच्ची थी ! आज फेसबुक पर 5000 मित्र व् व्हट्स अप पर असख्य मित्र है मगर क्या सच्चे मित्र कितने यह बताना मुमकिन नही क्यों की बहुत कम संख्या ही होगी ! वेसे सुदामा और कृष्ण जेसी मित्रता की तो आज अपेक्षा भी नही क्यों की न तो में वेसा हु न मेरे मित्र वेसे ! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और साथ ही उसमे विचारो को व्यक्त करने व् भावनाओ को महसूस करने की शक्ति होती है इसी कारण मनुष्य अकेला नही रह सकता एक मनुष्य दुसरे मनुष्य अथवा किसी अन्य प्राणी की तरफ आकर्षित होता है ! उसे भावनात्मक रूप से अपना समझता है बिना किसी रक्त सम्बन्ध के अपने दुःख व् सुख उससे बांटता है! सदेव उसकी मदद करता है या मदद की अपेक्षा करता है में उसे ही मित्रता या दोस्ती का सम्बन्ध मानता हु ! लेकिन इसके पीछे की भावना हर जगह एक ही है- "दोस्ती का सम्मान"। मन चाहे खुश हो या दुखी कुछ कहता ज़रूर है.दुःख बाँटने से कम होता है और सुख बाँटने से बढ़ता है तो क्यों ना मन की बात आपसे बांटू ......किसी अज्ञात कवि की ये पंक्तिया .....
''तुम्हारे दर पर आने तक बहुत कमजोर होता हूँ.
मगर दहलीज छू लेते ही मैं कुछ और होता हूँ.''
ये पंक्तियाँ कितनी अक्षरशः खरी उतरती हैं दोस्ती जैसे पवित्र शब्द और भावना पर .दोस्ती वह भावना है जिसके बगैर यदि मैं कहूं कि एक इन्सान की जिंदगी सिवा तन्हाई के कुछ नहीं है तो शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी.ये सत्य है कि एक व्यक्ति जो भावनाएं एक दोस्त के साथ बाँट सकता है वह किसी के साथ नहीं बाँट सकता.दोस्त से वह अपने सुख दुःख बाँट सकता है ,मनोविनोद कर सकता है.सही परामर्श ले सकता है.लगभग सभी कुछ कर सकता है.मित्र की रक्षा ,उन्नति,उत्थान सभी कुछ एक सन्मित्र पर आधारित होते हैं
''कराविव शरीरस्य नेत्र्योरिव पक्ष्मनी.
अविचार्य प्रियं कुर्यात तन्मित्रं मित्रमुच्यते..''
अर्थार्त जिस प्रकार मनुष्य के दोनों हाथ शरीर की अनवरत रक्षा करते हैं उन्हें कहने की आवश्यकता नहीं होती और न कभी शरीर ही कहता है कि जब मैं पृथ्वी पर गिरूँ तब तुम आगे आ जाना और बचा लेना ;परन्तु वे एक सच्चे मित्र की भांति सदैव शरीर की रक्षा में संलग्न रहते हैं इसी प्रकार आप पलकों को भी देखिये ,नेत्रों में एक भी धूलि का कण चला जाये पलकें तुरंत बंद हो जाती हैं हर विपत्ति से अपने नेत्रों को बचाती हैं इसी प्रकार एक सच्चा मित्र भी बिना कुछ कहे सुने मित्र का सदैव हित चिंतन किया करता है दोस्त कहें या मित्र बहुत महत्वपूर्ण कर्त्तव्य निभाते हैं ये एक व्यक्ति के जीवन में .एक सच्चा मित्र सदैव अपने मित्र को उचित अनुचित की समझ देता है वह नहीं देख सकता कि उसके सामने उसके मित्र का घर बर्बाद होता रहे या उसका साथी कुवासना और दुर्व्यसनो का शिकार बनता रहे .तुलसीदास जी ने मित्र की जहाँ और पहचान बताई है ---
'' कुपंथ निवारी सुपंथ चलावा , गुण प्रगट ही अवगुन ही बुरावा .''
तात्पर्य यह है कि यदि हम झूठ बोलते हैं ,चोरी करते हैं,धोखा देते हैं या हममे इसी प्रकार की बुरी आदतें हैं तो एक श्रेष्ठ मित्र का कर्त्तव्य है कि वह हमें सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे.हमें अपने दोषों के प्रति जागरूक कर दे .तथा उनके दूर करने का निरंतर प्रयास करता रहे .विपत्ति का समय ऐसा होता है कि न चाहकर भी व्यक्ति सहारे की तलाश में लग जाता है.निराशा के अंधकार में सच्चा मित्र ही आशा की किरण होता है !.वह अपना सर्वस्व अर्पण कर भी अपने मित्र की सहायता करता है !मित्रता के लिए तो कहा ही ये गया है कि ये तो मीन और नीर जैसी होनी चाहिए ;सरोवर में जब तक जल रहा तब तक मछलियाँ क्रीडा और मनोविनोद करती रही परन्तु जैसे जैसे तालाब पर विपत्ति आनी आरम्भ हुई मछलियाँ उदास रहने लगी और पानी ख़त्म होते होते उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए ये होती है मित्रता जो मित्र पर आई विपत्ति में उससे अलग नहीं हो जाता बल्कि उसका साथ देता है ! दोस्ती वह रिश्ता है जो आप खुद तय करते हैं, जबकि बाकी सारे रिश्ते आपको बने-बनाये मिलते हैं। जरा सोचिए कि एक दिन अगर आप अपने दोस्तों से नहीं मिलते हैं, तो कितने बेचैन हो जाते हैं और मौका मिलते ही उसकी खैरियत जानने की कोशिश करते हैं। आप समझ सकते हैं कि यह रिश्ता कितना ख़ास है। आज जिस तकनीकी युग में हम जी रहे हैं, उसने लोगों को एक- दूसरे से काफ़ी क़रीब ला दिया है। लेकिन साथ ही साथ इसी तकनीक ने हमसे सुकून का वह समय छीन लिया है जो हम आपस में बांट सकें। आज हमने पूरी दुनिया को तो मुट्ठी में कैद कर लिया है, लेकिन इसके साथ ही हम खुद में इतने मशगूल हो गये हैं कि एक तरह से सारी दुनिया से कट से गये हैं। मगर हमे इस पर विचार करना चाहिए की एक वास्तविक दोस्त का स्वभाव, चरित्र-व्यवहार, मनोवृत्ति या मनोभाव कैसा होना चाहिएं ?जहाँ तक मेरा मानना हैं कि एक अच्छें और सच्चें दोस्त में ये सारे गुण़ स्वभाव, चरित्र-व्यवहार, मनोवृत्ति या मनोभाव आदि आदि निहीत होंगें। एक सच्चें दोस्त का व्यवहार निष्कपट होंगा हमेशा हमारे साथ मगर आज इन गुणों की तरफ ध्यान न देकर हम स्वार्थ को देखते हुए मित्र को अपनी मित्रता की सूचि में सम्मिलित करते है ! सच्चे मित्र के तीन लक्षण होते हैं अहित को रोकना, हित की रक्षा करना और विपत्ति में साथ नहीं छोड़ना। जो तुम्हें बुराई से बचाता है, नेक राह पर चलाता है और जो मुसीबत के समय तुम्हारा साथ देता है, बस वही मित्र है। मित्र वह है जो आप के अतीत को समझता हो और आप जैसे हैं वैसे ही आप को स्वीकार करता हो।मगर एक कटु सत्य है आज सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है। मित्र का कर्त्तव्य है कि वह अपने मित्र के गुणों को प्रकाशित करे जिससे कि उसके गुणों का प्रकाश देश समाज में फैले न कि उसके अवगुणों को उभरे जिससे उसे समाज में अपयश का सामना करना पड़े.वह मित्र के गुणों का नगाड़े की चोट पर गुणगान करता है और उन अवगुणों को दूर करने का प्रयास करता है जो उसे समाज में अपमान व् अपयश देगा ! तो अब आप सभी मित्र निश्चय करे मित्र कोन हो केसा हो और हम मित्रता का फर्ज केसे अदा करे ! कहने को तो बहुत कुछ हैं मेरे दिल में लेकिन कम शब्दों में विराम लगाता हूँ।
लेखक --- उत्तम जैन (विद्रोही )
प्रधान संपादक , विद्रोही आवाज

लोभ व् क्रोध है नर्क के द्वार

                              लोभ व् क्रोध है नर्क के द्वार
क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है, प्रीति को नष्ट कर देता है। क्रोध जब व्यक्ति को आता है तो वह बेभान हो जाता है, उसे करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं रहता, वह प्रीति को समाप्त कर देता है। प्रेम को नष्ट कर देता है। क्रोधी व्यक्ति में विवेक नहीं रहता तो विनय भी नहीं रहता। मान, विनय को नष्ट कर देता है। अभिमान में व्यक्ति को यह ध्यान नहीं रहता कि मेरे सामने कौन खडा है? उनका विनय किस प्रकार किया जाए? वह तो स्वयं को सर्वेसर्वा मानता है। अभिमानी व्यक्ति को जरा-सी प्रतिकूलता मिली नहीं कि वह क्रोध से आगबबूला हो उठता है।माया, मैत्री भाव को नष्ट कर देती है। माया-छल-कपट जब व्यक्ति के भीतर जाग जाता है तो फिर वह मित्र को भी मित्र नहीं मानता। उससे भी छलावा करने लगता है। मायावी व्यक्ति में अहंकार भी होता है और क्रोध भी।और लोभ, लोभ जब व्यक्ति के भीतर जाग जाता है, तो वह सर्वनाश कर देता है। सब कुछ नष्ट कर देता है। लोभ तो सारी इज्जत को मिट्टी में मिला देता है। सारी प्रतिष्ठा को धूल में मिला देता है। सारी कीर्ति नष्ट कर देता है। इतना ही नहीं, लोभ के आ जाने पर सारा जीवन ही नष्ट हो जाता है। लोभ हमारे भीतर जाग जाता है, तो हम पर पदार्थों के साथ मैत्री कर लेते हैं। पर पदार्थों के साथ जब मैत्री होने लगती है तो वहीं सारी विषम स्थितियां पैदा हो जाती है। लोभी व्यक्ति में माया भी होती है और अहंकार व क्रोध भी।क्रोध, मान, माया और लोभ ये आत्मा के स्वभाव नहीं, आत्मा के गुण नहीं, ये विभाव हैं, ये सभी बाहरी, पर संयोगों का परिणाम हैं। ये चारों किसी न किसी रूप में अन्योन्याश्रित भी हैं और साथ-साथ भी चलते हैं। क्रोध, मान का कारण भी है। मान, माया का कारण भी है। माया, लोभ का कारण भी है।क्रोध, मान, माया और लोभ राग-द्वेष के परिणामरूप हैं। राग और द्वेष भी न्योन्याश्रित हैं और दोनों साथ-साथ भी चलते हैं। द्वेष, राग का कारण है। तो निष्कर्ष रूप में यह भी कहा जा सकता है कि राग सब बुराइयों की जड है। राग, पर से, दूसरे से, पर पदार्थों से। इसे छोडे बिना मुक्ति नहीं।हम आत्म-मैत्री करना सीखें। अपनी आत्मा से मित्रता स्थापित करें। यह आत्म-मैत्री कब स्थापित हो सकती है? जब हम पर-पदार्थों से अलग हटें। पर-पदार्थों के प्रति हमारी आसक्ति नहीं रहेगी तो हमारी मित्रता आत्मा से स्थापित हो सकेगी। शरीर से भी हमें अपना राग-भाव हटाना होता है।ी चिंतन करिए, आप उसमें कोई फर्क न करवा पाएंगे। फर्क कुछ भी हो सकता है, तो इसमें हो सकता है जिसे क्रोध हुआ है। तो जब क्रोध पकड़े, लोभ पकड़े, कामवासना पकड़े-जब कुछ भी पकड़े-तो तत्काल आब्जेक्ट को छोड़ दें। क्रोध भीतर आ रहा है, तो चिल्लाएं, कूदें, फांदें, बकें, जो करना है, कमरा बंद कर लें। अपने पूरे पागलपन को पूरा अपने सामने करके देख लें। और आपको पता तब चलता है, जब यह सब घटना जा चुकी होती है, नाटक समाप्त हो गया होता है। अगर क्रोध को पूरा देखना हो, तो अकेले में करके ही पूरा देखा जा सकता है। तब कोई सीमा नहीं होती। यह वृत्ति से कोई फर्क नहीं पड़ता, प्रक्रिया एक ही होगी। बीमारी एक ही है, उसके नाम भर अलग हैं।.... क्रोध विवेक को नष्ट कर देता है, प्रीति को नष्ट कर देता है। क्रोध जब व्यक्ति को आता है तो वह बेभान हो जाता है, उसे करणीय-अकरणीय का विवेक नहीं रहता, वह प्रीति को समाप्त कर देता है। प्रेम को नष्ट कर देता है। क्रोधी व्यक्ति में विवेक नहीं रहता तो विनय भी नहीं रहता। मान, विनय को नष्ट कर देता है। अभिमान में व्यक्ति को यह ध्यान नहीं रहता कि मेरे सामने कौन खडा है? उनका विनय किस प्रकार किया जाए? वह तो स्वयं को सर्वेसर्वा मानता है। अभिमानी व्यक्ति को जरा-सी प्रतिकूलता मिली नहीं कि वह क्रोध से आगबबूला हो उठता है।माया, मैत्री भाव को नष्ट कर देती है। माया-छल-कपट जब व्यक्ति के भीतर जाग जाता है तो फिर वह मित्र को भी मित्र नहीं मानता। उससे भी छलावा करने लगता है। मायावी व्यक्ति में अहंकार भी होता है और क्रोध भी।और लोभ, लोभ जब व्यक्ति के भीतर जाग जाता है, तो वह सर्वनाश कर देता है। सब कुछ नष्ट कर देता है। लोभ तो सारी इज्जत को मिट्टी में मिला देता है। सारी प्रतिष्ठा को धूल में मिला देता है। सारी कीर्ति नष्ट कर देता है। इतना ही नहीं, लोभ के आ जाने पर सारा जीवन ही नष्ट हो जाता है। लोभ हमारे भीतर जाग जाता है, तो हम पर पदार्थों के साथ मैत्री कर लेते हैं। पर पदार्थों के साथ जब मैत्री होने लगती है तो वहीं सारी विषम स्थितियां पैदा हो जाती है। लोभी व्यक्ति में माया भी होती है और अहंकार व क्रोध भी।क्रोध, मान, माया और लोभ ये आत्मा के स्वभाव नहीं, आत्मा के गुण नहीं, ये विभाव हैं, ये सभी बाहरी, पर संयोगों का परिणाम हैं। ये चारों किसी न किसी रूप में अन्योन्याश्रित भी हैं और साथ-साथ भी चलते हैं। क्रोध, मान का कारण भी है। मान, माया का कारण भी है। माया, लोभ का कारण भी है।क्रोध, मान, माया और लोभ राग-द्वेष के परिणामरूप हैं। राग और द्वेष भी न्योन्याश्रित हैं और दोनों साथ-साथ भी चलते हैं। द्वेष, राग का कारण है। तो निष्कर्ष रूप में यह भी कहा जा सकता है कि राग सब बुराइयों की जड है। राग, पर से, दूसरे से, पर पदार्थों से। इसे छोडे बिना मुक्ति नहीं।हम आत्म-मैत्री करना सीखें। अपनी आत्मा से मित्रता स्थापित करें। यह आत्म-मैत्री कब स्थापित हो सकती है? जब हम पर-पदार्थों से अलग हटें। पर-पदार्थों के प्रति हमारी आसक्ति नहीं रहेगी तो हमारी मित्रता आत्मा से स्थापित हो सकेगी। शरीर से भी हमें अपना राग-भाव हटाना होता है। इसी तरह यदि हम होश ,प्रेम और ध्यान को सीखते है , तो धीरे धीरे यह स्वाभाविक हो जाता है और उर्जा ध्यान और प्रेम में ही लग जाती है! अब काम, क्रोध वगेरा स्वत ही कमजोर बन जाते और प्रेम मजबूत हो जाता है ! अब कहा काम क्रोध की राजनितिक रहती है क्यों इस पर चिल्लना है ? उर्जा वहा बहती है जहा बहने का मार्ग है तो काम क्रोध तो सभाविक मार्ग है और प्रेम और ध्यान प्रयत्न का ,कर्म का मार्ग है ,यही तो तप है
उत्तम जैन (विद्रोही )