मंगलवार, 16 अगस्त 2016

रक्षाबंधन का त्यौहार


मित्रो ,बहनों , भाइयो भारत त्योहारों का देश है । यहाँ विभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं । हर त्योहार अपना विशेष महत्त्व रखता है ।अब दो दिन बाद रक्षाबंधन का त्यौहार है ! मेरे फेसबुक , व्हट्स अप पर काफी बहने है उन्हें मेरी अग्रिम शुभकामना और एक भाई का सन्देश ----
रक्षाबंधन भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक त्योहार है । यह भारत की गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक त्योहार भी है । यह दान के महत्त्व को प्रतिष्ठित करने वाला पावन त्योहार है ।रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है । श्रावण मास में ऋषिगण आश्रम में रहकर अध्ययन और यज्ञ करते थे । श्रावण-पूर्णिमा को मासिक यज्ञ की पूर्णाहुति होती थी । यज्ञ की समाप्ति पर यजमानों और शिष्यों को रक्षा-सूत्र बाँधने की प्रथा थी । इसलिए इसका नाम रक्षा-बंधन प्रचलित हुआ । इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए ब्राह्मण आज भी अपने यजमानों को रक्षा-सूत्र बाँधते हैं । बाद में इसी रक्षा-सूत्र को राखी कहा जाने लगा । कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधते हुए ब्राह्मण निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं-
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबल: ।
तेन त्वां प्रति बच्चामि, रक्षे! मा चल, मा चल ।।
आगे पढ़े http://www.vidrohiawaz.com/%e0%a4%b0%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be%e0%a4%ac%e0%a4%82%e0%a4%a7%e0%a4%a8-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a5%8c%e0%a4%b9%e0%a4%be%e0%a4%b0/

आज मिडिया को गुलामी से दूर होने की अपेक्षा

पिछले 2 दशको में संचार माध्यमो में तेजी से वृद्धि हुई। दूरदर्शन पर दिन में एक घंटे आने वाले समाचार अब सैंकड़ो चैनल्स पर 24 घंटे आते है। मीडिया को भले लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया हो, लेकिन आज भारत में निष्पक्ष मीडिया विलुप्ति की और है।
Read More



































































re

रविवार, 14 अगस्त 2016

आज मिडिया को गुलामी से दूर होने की अपेक्षा

आज मिडिया को गुलामी से दूर होने की अपेक्षा
पिछले 2 दशको में संचार माध्यमो में तेजी से वृद्धि हुई। दूरदर्शन पर दिन में एक घंटे आने वाले समाचार अब सैंकड़ो चैनल्स पर 24 घंटे आते है। मीडिया को भले लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया हो, लेकिन आज भारत में निष्पक्ष मीडिया विलुप्ति की और है। अधिकतर मीडिया चैनल के मालिक या तो कोई नेता होता है, या उद्योगपति। कई चैनल्स में विदेशो का पैसा भी लगा होता है। न्यूज़ चैनल पर न्यूज़ कम होती है, और व्यूज (उनके विचार) अधिक। कौनसी खबर को दिखाना है और कौनसी खबर दबानी है, यह चैनल तय करता है। किस बहस का शीर्षक क्या है, उसमे कौन हिस्सा ले रहे है, यह भी बहोत मायने रखता है। वो चाहे तो गंभीर समस्या को लेकर धरने पर बैठे हज़ारो लोगो की खबर को दबा दे, उसे ड्रामा घोषित कर दे, या उसे एक आंदोलन में बदल दें। आजादी की 70 सालगिरह पर आप सभी को बहोत बहोत बधाई। खास कर युवा मित्रो से मेरा यही आग्रह है की अपनी सोच को आजाद बनाए। संभव है की कई विषयो पर हमारी सोच गलत हो, संभव है समय के साथ हमारे विचार बदलते रहे। किन्तु वो जैसे भी आपके विचार होंगे, एक आजाद सोच होगी। हर विषय पर अपनी राय, अपने विचार बनाने का प्रयास करे। किसी भी राजनितिक दल के अंधभक्त न बने, गुलाम न बने। नेताओ के भक्ति भी हमारे देश मे सामान्य है। मिडिया नेताओ आराधना करना बंद करे ! कई महत्वाकांक्षी लोग इस गुलामी को अपनी व्यक्तिगत उन्नति के लिए चुनते है। लेकिन अधिकतर भोले भाले लोग सिर्फ श्रद्धा के मारे गुलामी में जकड़े रहते है। अपनी अपनी राजनैतिक पसंद होना गलत नहीं है, लेकिन इस हद तक गुलामी की उस नेता के गलत कार्यो को सही साबित करने की जिम्मेदारी भी हम ले ले? और उसके प्रतिद्वंद्वियों को ऐन केन प्रकारेण गलत साबित करने का प्रयास करे? यह तो उचित नही न !हमारा नेता हमारे द्वारा चुना हुआ जन प्रतिनिधि होता है। हम सब की सम्मिलित सोच के अनुसार नीतिया बनाना उसकी जिम्मेदारी है। जिस दिन हर मुद्दे पर अपनी व्यक्तिगत राय बनाना बंद कर दे, हम गुलामी की और बढ़ने लगते है। इस तरह की मानसिक गुलामी का शिकार जब एक बड़ा मिडिया वर्ग बन जाताहै तो वो अनजाने में उस नेता को तानाशाह बना देता है। इसमे उसका दोष नहीं। दोष मिडिया का है ! दोष आपकी कलम का है आलोचकों का अभाव और हर बात में हामी भरने वालो की भीड़ उस नेता को ये विश्वास दिलाती है, की मेरी हर सोच, मेरा हर बयान, मेरा हर निर्णय सही है, लोकतान्त्रिक है क्योंकि एक बड़ा वर्ग इसका समर्थन कर रहा है। आवश्यकता .आविष्कार की जननी है..आज मिडिया की जरुरत स्वतंत्र सोच...आप प्रेस की आजादी जरुरी है यह हमे मिलेगी नही हमे आजादी निडरता से लेनी होगी ! संकल्प बद्ध होकर कर्तव्य का निर्वहन करना होगा ! मीडिया का काम बड़ा ही चुनौती पूर्ण है. जैसे सिपाही देश की रक्षा की खातिर लड़ते हैं, उसी तरह लोकतंत्र की रक्षा के लिए मीडियावाले लड़ते हैं. भले ही लोगों को मीडिया का काम आसान लगता है, लेकिन इसमें बड़ी ही संवेदनशीलता के साथ-साथ चुनौती का भी सामना करना पड़ता है....मगर मिडिया को पूर्ण ईमानदारी के साथ अपना फर्ज निभाना होगा !
उत्तम जैन (विद्रोही )

क्या में आजाद हु ?

क्या में आजाद हु ?

में आजाद हु....फिर भी रोटी को मोहताज़ हूँ , वैसे मैं आज़ाद हूँ, मेरा हिस्सा लूट के खा गये क्या सत्ता और क्या विपक्ष मैं दोनों से नाराज हूँ वैसे मैं आज़ाद हूँ, मेरा भविष्य कहाँ सो गया बचपन मेरा कहाँ खो गया देखा है सरकारी दामाद को घर बैठे अरबों का हो गया, और यहाँ एक मैं हूँ जो कदम कदम प़र बर्बाद हूँ, वैसे मैं आज़ाद हूँ,..!!!!!!यह सिर्फ मेरी व् आपकी नही हिंदुस्तान के 60 प्रतिशत लोगो की सही स्थिति है ! इस लेख को पढने से पहले कुछ समय के लिए अपने मष्तिष्क को आजाद करे उन बेडियो से जो हमें आत्मचिंतन करने से रोकती है। एक तो यह खुशफहमी की हम सही है, सर्वज्ञानी है, और दूसरी यह कमजोरी की अब हम बदल नहीं सकते। इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं है की मैं सर्वज्ञानी हु..मेरे विचार है मुझे तो लगता में आजाद होने के बाद भी गुलामी की जंजीरों में केद हु ! मित्रो ! मेरा भारत महान कहने और सुनने में कितना अच्छा लगता है, और साथ ही हमें आंतरिक गौरव की अनुभूति होती है ! मंगल पाण्डेय , भगत सिंह , सुखदेव, और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि कई महान लोग स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे ! हमें आजादी इन्ही लोगो की कुर्बानी से मिली हालाँकि गांधीजी अहिंसा के पुजारी थे, उनकी अनुपम कोशिस और अगाध प्रयासों से भारत आजाद हुआ और हमें स्वत्रंत रूप से जीने का वरदान मिला लेकिन किसी ने सही ही लिखा है कि मै बचाता रहा दीमक से घर अपना और चंद कुर्सी के कीड़े पूरा मुल्क खा गए ! यह कटु सत्य है, और सब जानते भी है वर्षो लग चुके है लेकिन इस दीमक के कीड़े की मौत नहीं होती या कह ले कि इसका वंशज बहुत मजबूत है एक असाध्य बीमारी जो अपनी इस खूबी को बढ़ा रहा है ! जमीरो को बेच बैठे नेता, व्यापारी भारत में हर व्यक्ति को इसकी महक लग गयी है ! आप शायद सोचे मै तो ऐसा नहीं लेकिन जनाब जरा अपने अंदर की आत्मा को टटोलिये और खुद से सवाल करिये की क्या आप सच में आजादी की गोद में बैठे हुए है ? आप सच में आजाद है ? क्या आप जागरूक है ? केवल देश को आजादी मिली है लेकिन क्या हमने अपने आप को आजाद किया है, अपने अंदर समायी हुई तमाम बुराइयो से ? यदि आप ईमानदारी से जवाब ढूंढेंगे तो पाएंगे नहीं ! हमारी और आपकी स्थिति में कोई अंतर नहीं है बस हम तो सरकार पर आरोप, नेता पर व्यंग कर सकते है लेकिन क्या हमने कभी जागरूक होकर समाज में व्याप्त बुराइयो को दूर करने का प्रयास किया??? मेरे गुरुदेव ने एक नारा दिया था "सुधरे व्यक्ति सुधरे समाज से "आपने कभी कोशिश की ही नही क्यों बिलकुल कोशिश नहीं की और कभी आपने की भी होगी तो में जानता हु चंद समाज के ठेकेदारों ने आपकी आवाज दबा दी होगी ! क्योंकि हम भारतीय बड़े सभ्य होते है न जी ! तो हम किसी के पचड़े में नहीं पड़ते लेकिन हम भूल जाते है की भारत तो हमारा है न भारत माता के सपूत तो हम भी है या कह ले की हम कपूत है तो शायद गलत न होगा माफ़ करियेगा लेकिन ये हमारी विवशता है कि आज भी हमारा भारत कई बुराइयो से ग्रस्त है परेशानियों से त्रस्त है महान लोग अपना कार्य कर गए लेकिन हम केवल उनका गुण - गान करते है, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते है ! उनके रस्ते पर नहीं चलते या उनका आचरण धारण नहीं करते इस तरह के कई प्रश्न मेरे जहन में धधकते हुए आंग के गोले की तरह उठते है और फिर शांत हो जाते है यह सोचकर की पूरी व्यवस्था ही अस्त - व्यस्त हो गयी है ! तो इसे क्या मै अकेले बदल सकता हु ? नहीं लेकिन हम सब मिलकर प्रयास करे तो शायद शम्भव हो ! आजादी के इतने वर्षो के बाद भी क्या सच में हमें आजादी मिल पायी है क्या हम सच में स्वंतंत्र है ? यही प्रश्न मेरे मन मष्तिष्क पर हावी हो जाता है कई बार मन बेचैनी से भारी हो उठता है आज के भारत की तश्वीर आँखों के समक्ष खुले हुए गगन की तरह स्पष्ट है ! इन्ही उथल पुथल के साथ मेरा मन करुणा से भरा हुआ रहता है , मैं एक अदभुत सपना देखता हु कभी कभी क्या सपना कभी वो सच होगा ? में सपने में देखता हु सूरज की किरणो की तरह, चमचमाता हुआ भारत ! भाईचारा और प्रेम, नव युवको की आँखों में उमंग और उत्साह की लालिमा ! भारत बना फिर विश्व गुरु , न कोई भूखा है न कोई नंगा, न कोई बेघर है , न कोई बेरोजगार ! प्रदुषण से मुक्त भारत , ,हर जगह पर्यावरण के प्रति जागरूक लोग है नन्ही आँखों में खुशियो का मेला नन्हे हाथो में प्यारा तिरंगा, न कोई आतंक है ,न कोई नक्सलवाद , एक प्यारा संवाद वन्दे मातरम का हार कोई गा रहा है ! हरियाली चारो और , भारत बुलंदी की ओर ! भारत माता की जय हो हवाओ में यही गूँज फैली हुई है , ! हर बेटा श्रवण कुमार ,ढूढने से न मिले वृधाश्रम, हर बेटी लक्ष्मी का रूप, हर घर में एक राम , ओर हर घर में बसा प्यार, हर बेटी सुरक्षित , बहु को मिलता प्यार ! हर नारी ममता की मूरत , हर पुरुष की लक्ष्मण सी सीरत ! मेरा भारत प्यारा भारत खुशियो से भरा भारत ! उस सपने में मैं खोया जब हकीकत देखूंगा तब मानूंगा में आजाद हु ! लेकिन फिर भी एक आशा के साथ मन में एक विश्वास है, कि होगा आजाद मेरा भारत मेरा इन बुराइयो से आज नहीं तो कल होगा आखिर कब तक बुराई ? अंतिम जीत सच की होगी और वो दिन दूर नहीं मेरे द्वारा देखा गया सपना सच और साकार होगा !.इस लेख में युवाओ की व्यक्तिगत आजादी के एक खास पहलू पर बात करनी है, इसलिए इस जटिल विषय पर अधिक नहीं लिखूंगा। लेकिन हमारे देश में आज भी समानता नहीं है, चाहे वह अवसरों की बात हो, सामाजिक सम्मान की या अधिकारों की। हम वास्तव में आजाद तब होंगे जब इस देश का हर नागरिक आजादी को महसूस कर सकेगा – जिन्दा रहने की आजादी, बोलने की आजादी, लिखने की आजादी, पढ़ने की आजादी, अपना जीवन अपनी मनमर्जी से जीने की आजादी। जब इस देश में आदमी और औरत में फर्क नहीं किया जायेगा, हिन्दू – मुसलमान में फर्क नहीं होगा, ब्राह्मण व् दलित में फर्क नहीं होगा तब हम आजाद समझेंगे .... मित्रो जन- गण- मन राष्ट्रीय गान गाते समय करोडो भारतीयों का स्वर एक सा होता है, ताल एक सी होती है, मधुरमय वातावरण होता है, उस समय किसी संगीत को सीखने की आवश्यकता नहीं पड़ती संगीत तो स्वयं बजता है, सबकी रूह से, आत्मा से, विश्वास से, और अपने भारत माता से जुड़े हुए प्यार और लगाव से ! माँ भारती के साथ माँ सरस्वती वीणा की तान छेड़ती है, और मधुर भारत के सुर को अपनी ताल से जोड़ती है तब कितना अच्छा लगता है न भाइयो फिर कदम बढाओ सच्ची आजादी की और नही चाहिए हमे वैचारिक आजादी दृढ सकल्प करो हम सच्ची आजादी के लिए लड़ेंगे .... आजादी पाकर रहेंगे !
वन्दे मातरम, जय हिन्द, भारत माता की जय हो !
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
प्रधान संपादक - विद्रोही आवाज
मित्रो इस मेरे लेख पर अपनी प्रतिक्रिया जरुर दे चाहे सकारात्मक हो या नकारात्मक सभी प्रतिक्रिया का स्वागत है

शनिवार, 13 अगस्त 2016

विश्वास की डगर ..

विश्वास की डगर ..
क़ाबिल लोग न तो किसी को दबाते हैं और न ही किसी से दबते हैं।सच्चा चाहने वाला आपसे प्रत्येक तरह की बात करेगा. आपसे हर मसले पर बात करेगा. लेकिन धोखा देने वाला सिर्फ प्यार भरी बात करेगा।
तुमने मेरा ट्रस्ट(विश्वास, भरोसा ) तोड़ दिया, उसने मेरा ट्रस्ट तोड़ दिया, मैं अब तुम पर कभी ट्रस्ट नहीं कर सकता/सकती. इस दुनिया में तो किसी पर ट्रस्ट करना ही बेकार है. आये दिन ट्रस्ट के बारे में हमे अपने दोस्तों और अपने आस-पास के लोगो से ऐंसे न जाने क्या-क्या सुनने को मिलता है मगर वास्तव में भरोसा है क्या? भरोसा ही तो सबकुछ है जिसके जुड़ने पर हम किसी को अपनी ज़िन्दगी में शामिल करते हैं और जिसके टूटने पर हम खुद टूटकर उस भरोसा तोड़ने वाले को ही अपनी ज़िन्दगी से बाहर निकाल फेंकते हैं या सोचते है यह हमारे काबिल नही वेसे भरोसा तोड़ने वाला आपके लिए काबिल मित्र हो भी नही सकता ! वह होगा तो स्वार्थ परस्त व् स्वयम हित के लिए आपकी भावनाओ के साथ खिलवाड़ करने वाला क्यों की कुछ लोग होते ही ऐसे
भगवत गीता में लिखा है कि “भरोसा (विश्वास ) इन्सान का सबसे अच्छा मित्र है तो भरोसा ही इंसान का सबसे बुरा शत्रु भी है”. एकदम सही तो लिखा है भगवत गीता में, भरोसा अगर सही इन्सान पर हो जाये तो आपकी ज़िन्दगी सुकून से बीत जाती है और भरोसा अगर गलत इन्सान पर हो जाये तो आपकी बनी-बुनी ज़िन्दगी का सुकून भी जड़ से उखड जाता है.भरोसा सबसे अच्छा मित्र भी है तो भरोसा सबसे बुरा शत्रु भी है. भरोसा आपकी ज़िन्दगी संवार सकता है तो ट्रस्ट ही आपकी संवर चुकी ज़िन्दगी उजाड़ सकता है.! आजकल की दुनिया में किसी पर भी हद से ज्यादा भरोसा करना बहुत ही मुश्किल होता है क्यूंकि आजकल हमारा भरोसा तोडना और हमारे भरोसा(विश्वास ) से खेलना लोगो के लिए आम बात हो गई है. हम जिस पर हद से ज्यादा भरोसा कर देते हैं, वही हमारे हद से ज्यादा भरोसा को हमारी बेवकूफी समझता है और आये दिन अपने स्वार्थ के लिए हमारे भरोसा का फायदा हमसे ही उठाता है. अब एक तरफ जहाँ आजकल किसी पर भी भरोसा करना मुश्किल से होता है तो वहीँ दूसरी तरफ भरोसा के बिना जीना भी हमारे लिए नामुमकिन सा होता है क्यूंकि भरोसा एक तरफ जहाँ हमारी कमजोरी है तो वहीँ दूसरी तरफ हमारी ताकत भी है. भरोसा हमारी कमजोरी भी है और ताकत भी और ऐंसे में अगर हमारा किसी पर भरोसा करना बहुत जरुरी है तो मैं ये नहीं कहता कि उस पर भरोसा मत करो. मैं तो ये कहता हूँ कि उस पर भरोसा करो मगर अपने को तब तक सिर्फ एक उम्मीद बनाकर रखो कि जब तक वो आपकी उस उम्मीद पर खरा न उतर जाये. जब वो आपकी उम्मीद पर खरा उतर जाता है तो तब वो आपके ट्रस्ट करने के लायक हो जाता है मगर उसके बाद भी उस पर इतना भरोसा मत करो कि बाद में उसके आपके भरोसा को तोड़ने के बाद आप बुरी तरह से टूट ही जाओ या आप किसि की नजर से गिर जाओ . जब वो आपकी उम्मीद पर खरा उतर जायेगा तो तब आप एक या दो बार उसे किसी न किसी तरह से परखो और जब वो आपकी परख में भी खरा उतर जाये तो तभी उस पर ऐंसा भरोसा करो कि वो कभी किसी भी मज़बूरी में भी आपका भरोसा तोड़ ही न पाये.अगर कोई इन्सान आप पर हद से ज्यादा भरोसा करता है तो आप उस इंसान के लिये उसकी कामयाबी और नाकामयाबी की वजह बन जाते हो, ये तो कुछ नहीं बल्कि आप उस इन्सान के लिए उसके जीने और मरने की वजह भी बन सकते हो. इसलिए आप किसी भी बड़ी से बड़ी मज़बूरी में भी भले ही उस इन्सान का दिल तोड़ दो मगर उसका आप पर किया भरोसा कभी भूल से भी मत तोडना. अब यहाँ पर दिल टूटने और विश्वास के टूटने में फर्क क्या है जो कि मैंने कहा कि भले ही आप उस इंसान का दिल तोड़ दो मगर उसका विश्वास कभी मत तोडना. दिल तोड़ने का मतलब है कि उस इन्सान को तोड़ने के बाद भी उसे ज़िन्दगी में आगे जीने के लिए एक वजह देना ताकि वो अपनी ज़िन्दगी उस वजह के साथ नए सिरे से शुरू कर सके और भरोशा तोड़ने का मतलब है कि उस इंसान को तोड़ने के बाद उस इन्सान से उसकी ज़िन्दगी नए सिरे से शुरू करने की और जीने की सारी वजह ही ख़तम कर देना. खैर दिल तोड़ने और ट्रस्ट तोड़ने के बीच के फर्क को आप में किसी का भी समझ पाना संभव नहीं है और मेरा यहाँ लिखकर समझाना भी संभव नहीं है इसलिए जितना हो सके आप ये कोशिश करो कि आप कभी भूल से भी किसी के दिल और ट्रस्ट टूटने की वजह न बन जाओ.ट्रस्ट..! एक ट्रस्ट ही तो है जो न दिखाई देने वाले उस भगवान के होने का अहसास कराता है. अगर ट्रस्ट ही न हो तो दिखाई न देने वाला भगवान भी अगर हमारे सामने आ जाये तो हमे उसका अहसास तक न हो पाए. इसलिए आप बहुत ही भाग्यवान हो कि अगर कोई आप पर हद से ज्यादा ट्रस्ट करता है और वेंसे भी आप इसलिए भी बहुत भाग्यवान हो क्यूंकि इन्सान हद से ज्यादा ट्रस्ट सिर्फ अपने माँ-बाप और भगवान पर ही कर सकता है. जरा सोचो कि अगर उसका ऐंसा ट्रस्ट आपको मिला है तो आप उसके लिए क्या कुछ नहीं हो.लोग कहते हैं कि अगर ट्रस्ट एक बार टूट जाये तो फिर कभी जुड़ता नहीं है मगर हकीकत में देखा जाये तो ऐंसा बिलकुल भी नहीं है. आप अगर किसी इन्सान का एक बार ट्रस्ट तोड़ोगे और उसे तोड़ते ही या कुछ दिनों बाद आपको अगर अपनी भूल का अहसास हो जाये तो आप उस इंसान को आप पर फिर से ट्रस्ट करने के लिए बड़े ही आराम से मना सकते हो क्यूंकि उस इंसान ने आप पर ट्रस्ट किया है और इसी वजह से वो आपके एक-दो बार मनाने पर आपसे फिर से ट्रस्ट करने के लिए आसानी से मान जाता है मगर अगर आप बार-बार आप पर ट्रस्ट करने वाले इन्सान का ट्रस्ट बार-बार तोड़ोगे और बार-बार उससे ये उम्मीद रखोगे कि वो मान जाये तो ऐंसे में एक दिन ऐंसा आ जायेगा कि वो इंसान मर जाना पसंद करेगा मगर आप पर भूल से भी विश्वास करना नहीं करेगा !किसी का ट्रस्ट पाना आपकी एक उपलब्धि है और किसी का ट्रस्ट खोना आपका उसकी नज़र में आपका और खुद अपना ही वजूद तक खोने जैंसा है.आप कितने भी ज्ञानी हो मगर उसकी नजर में आप अज्ञानी व् स्वार्थ परस्त ही रहोगे बाकि हकीकत में देखा जाये तो आज की दुनिया में ट्रस्ट बहुत ही कम देखने को मिलता है और जो ट्रस्ट के नाम पर देखने को मिलता है वो सिर्फ उम्मीद होती है. इसलिए मेरा मानना है कि अगर ट्रस्ट करो तो खुद पर करो और किसी दुसरे पर करो तो ऐंसा करो कि वो दूसरा भूल से भी आपका ट्रस्ट तोड़ने तक के बारे में सोच तक सके.“आप किसी पर ट्रस्ट करते हो और वो आपका ट्रस्ट तोड़ दे तो आपकी खुशहाल ज़िन्दगी बर्बाद हो सकती है और अगर वो आपका ट्रस्ट न तोड़े तो आपके ट्रस्ट ही आपकी बर्बाद ज़िन्दगी भी आबाद हो सकती है इसलिए भगवत गीता एक श्लोक में कहा गया है कि विश्वाश ही आपका सबसे अच्छा मित्र है और विश्वाश ही आपका सबसे बड़ा शत्रु.”

उत्तम जैन (विद्रोही )

स्वतंत्रता दिवस

मित्रो 70 वा स्वतंत्रता दिवस नाने को उत्सुक है ! हमे जो स्वतंत्रता विरासत में मिली है ! उस स्वतंत्रता के लिए हमारे पुरखो ने पूर्वजो ने बलिदान किया है आज वह एक इतिहास बन गया है ! अंग्रेजो के शासन से मुक्ति दिलाने में कितने वीर शहीद हुए हमने शायद पुस्तको में ही पढ़ा ! मगर पुस्तको में कुछ चंद शहीदों के नाम ही अंकित हुए ! हजारो हजारो स्वतंत्रता सेनानी ने जन्मभूमि भारत माँ के लिए कुर्बानी दी ! तब जाकर हमें आंशिक ( आंशिक क्यों इसका जबाव आगे की पक्तियों में करूँगा ) स्वतंत्रता प्राप्त हुई ! स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले महान सेनानियों के प्रति शुभकामना प्रेषित करना और हर्ष व् उल्लास है साथ हमे इसे मना लेना ही हमारे कर्तव्य की इति श्री समझ लेना काफी नही है ! किसी अज्ञात कवि की पंक्तिया -
लोकतंत्र है आ गया , अब छोड़ो निराशा के विचार को !
बस अधिकार की बात न सोचो , समझो कर्तव्य के भार को !!
भुला न पायेगा काल , प्रचंड एकता की आग को !
शान से फहराकर तिरंगा , बढ़ाएंगे देश की शान को !!
बित जायेगा वक्त भले , पर मिटा न पायेगा देश के मान को !
ऐसी उडान भरेंगे , दुश्मन भी होगा मजबूर , ताली बजाने को !!
एकता ही संबल है , तोड़े झूठे अभिमान को !
कंधे से कन्धा मिलाकर , मजबूत करे आधार को !!
इंसानियत ही धर्म है बस ,याद रखे भारत माता के त्याग को !
चंद पाखंडी को छोड़कर , प्रेम करे हर इन्सान को !!
देश है हम सब का , बस समझे कर्तव्य के भार को !
नव युग आ गया है , अब छोड़ो निराशा के विचार को !!

15 अगस्त को भारत 70वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने जा रहा है। इस साल, स्वतंत्रता दिवस समारोह अलग भी होगा और बहुत खास भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आयोजित अपनी पार्टी की संसदीय दल की बैठक में अपने पार्टी सहयोगियों से स्वतंत्रता दिवस समारोह को खास बनाने की इच्छा बताई यह हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री जी की जागरूकता है उनकी जागरूकता को में नमन करता हु ! पूरा देश इस दिन देश प्रेम में डूब जाएगा। जगह-जगह अपना तिरंगा झंडा लहराता हुआ नज़र आएगा। लोगों के कपड़ों, घरों, सामानों, गाड़ियों आदि सब जगह अपना तिरंगा झंडा छाया रहेगा। स्वतंत्रता दिवस का यह दिन हर साल लोगों में एक अलग और नया उत्साह लेकर आता है। बच्चों की उत्सुकता तो देखती ही बनती है। इस बार का 15 अगस्त भी हर तरह की तरह अलग और खास होगा और इस बार के 15 अगस्त की अलग बात यह है कि यह वीकेंड की छुट्टी के बाद ही मतलब इस बार के वीकेंड की छुट्टियाँ ज़्यादा हैं। है ना यह खुशी की बात! तो इस स्वतंत्रता दिवस अपने परिवार के साथ तैयार हो जाइए इन खास जगहों की यात्रा के लिए, जहाँ पहुँच आप देशभक्ति के रंग में सराबोर हो जाएँगे। आख़िर देशप्रेम होता ही ऐसा है जो हर एक इंसान के चेहरे पर अलग ही झलकता है। आज़ादी की वह खुशी लोगों के चेहरे पर साफ दिखाई पड़ती है। मगर ये स्वतंत्रता मेरी समझ में कुछ कम आ रही है क्यों की समाचार पत्रों व् शोशल मिडिया पर जगह जगह सुन रहा हु देख रहा हु पढ़ रहा हु ... स्‍वतंत्रता दिवस पर वाघा बॉर्डर पर हमले कर सकता है ..हमारे pm पर हमले हो सकते है ...वहा यहाँ कही भी हमले हो सकते है .... एक दशहत के साथ हम स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे यह भी कटु सत्य है इस लिए मेने पहले आंशिक स्वतंत्रता का उलेख किया ! भारत का स्वतंत्रता दिवस ऐतिहासिक महत्व रखता है क्योंकि इस दिन हम राजनीतिक तौर पर आजाद हुए और हमने लोगों के दिल और दिमाग में राष्ट्रीयता का विचार पैदा करना शुरु किया। अगर ऐसा न होता तो लोग अपनी जाति, समुदाय व धर्म आदि के आधार पर ही सोचते रह जाते। हालांकि भारतीय होने का यह गौरव केवल एक भौगोलिक सीमा के ऊपर खड़ा था। भारत का असली व पूरा गौरव, इसकी सीमाओं में नहीं बल्कि इसकी संस्कृति, आध्यात्मिक मूल्यों तथा सार्वभौमिकता में समाया है। भारत दुनिया की आध्यात्मिक राजधानी है। तीन ओर से सागर तथा एक ओर से हिमालय पर्वत श्रृंखला से घिरा भारत, स्थिर जीवन का केन्द्र बन कर सामने आया है। यहां के निवासी एक हजारों सालों से बिना किसी बड़े संघर्ष के रहते आ रहे हैं, जबकि बाकी संसार में ऐसा नहीं रहा। जब आप संघर्ष की सी स्थिति में जीते हैं तो आपके लिए प्राणों की रक्षा ही जीवन का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य बना रहता है। जब लोग स्थिर समाज में जीते हैं, तो जीवन-रक्षा से परे जाने की इच्छा पैदा होती है। इस तरह भारत ही ऐसा स्थान है, जहां लंबे अरसे से, स्थिर समाजों का उदय हुआ और नतीजन आध्यात्मिक प्रक्रियाएं विकसित हुईं। आज आप अमेरिका में लोगों के बीच आध्यात्मिकता को जानने की तड़प को देख रहे हैं, उसका कारण यह है कि उनकी आर्थिक दशा पिछली तीन-चार पीढ़ियों से काफी स्थिर रही है। उसके बाद उनके भीतर कुछ और अधिक जानने की इच्छा बलवती हो रही है। इंसान बुनियादी रूप से क्या है, इस मुद्दे पर इस धरती के किसी भी दूसरी संस्कृति ने उतनी गहराई से विचार नहीं किया जैसा हमारे देश में किया गया। यही इस देश का मुख्य आकर्षण है कि हमे पता है कि मानव-तंत्र कैसे काम करता है, हम जानते हैं कि इसके साथ हम क्या कर सकते हैं या इसे इसकी चरम संभावना तक कैसे ले जा सकते हैं। हमें इसका इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि महान मनुष्यों के निर्माण से ही तो महान देश और महान विश्व की रचना हो सकती है।परंतु अब, लोगों को भौगोलिक सीमाओं में ही गौरव का अनुभव होने लगा है। अंग्रेज़ों के आने से पूर्व, यह सारी धरती अनेक राज्यों में बंटी थी। फिर हमने इसे एक देश बनाया, लेकिन कुछ दुर्भाग्यपूर्ण कारणों से यह तीन टुकड़ों में विभाजित हो गया है। संसार में कुछ ताकतें हमेशा विभाजन के लिए काम करती रहती हैं क्योंकि इसी में उनका लाभ छिपा होता है। परंतु यदि मानवता परिपक्व हो जाएगी तो सीमाओं के बावजूद उनका इतना अधिक प्रभाव नहीं होगा। सच्ची स्वतंत्रता तभी मिल सकेगी जब हम किसी देश से अपनी पहचान जोड़ने की जरुरत से भी स्वतंत्र हो जाएंगे। अगर कुछ सौ सालों में, हम एक ऐसा दिन मना सकें कि संसार सारी सीमाओं और भेदों से स्वतंत्र हो जाए, तो वह सही मायनों में एक भव्य स्वतंत्रता होगी। अन्यथा, अगर कोई एक देश स्वतंत्र होता है और दूसरा देश गुलाम, तो यह सच्ची स्वतंत्रता नहीं है। जब आप किसी को नीचे दबाते हैं तो आप उसके साथ-साथ अपनी स्वतंत्रता भी गंवा देते हैं। जैसे कोई पुलिस वाला हथकड़ी के एक हिस्से को अपने हाथ में और दूसरे हिस्से को मुजरिम के हाथों मे पहना दे। दोनों ही तो बंधन में बंधे हैं, बस अंतर इतना है कि पुलिसवाले के हाथ में हथकड़ी की चाबी है। परंतु जीवन के साथ ऐसा नहीं है। चाबी तो बहुत पहले कहीं खो गई है। अगर आप किसी को बांधते हैं, तो आप स्वयं भी बंधते हैं और इसे खोलने के लिए कोई चाबी नहीं है। स्वतंत्रता दिवस की असली चाबी सीमाओं को तोड़ने में है, ये सीमाएं केवल राजनीतिक ही नहीं हैं, हमें उन बाधाओं को भी तोड़ना है, जो हमने अपने भीतर बना रखी हैं। जब तक हम अपने गुस्से, भेदभाव, जलन या ऐसी दूसरी सीमाओं से मुक्त नहीं होते, तब तक हमारे लिए स्वतंत्रता कोई मायने नहीं रखती। इस देश की सांस्कृतिक विरासत में, इन बंधनों को तोड़ने की आंतरिक विधियां और तकनीकें हमेशा से मौजूद रही हैं। अब समय आ गया है कि स्वतंत्रता के इन साधनों को संसार के सामने पेश किया जाए।सच्ची स्वतंत्रता तभी मिल सकेगी जब हम किसी देश से अपनी पहचान जोड़ने की जरुरत से भी स्वतंत्र हो जाएंगे। अगर कुछ सौ सालों में, हम एक ऐसा दिन मना सकें कि संसार सारी सीमाओं और भेदों से स्वतंत्र हो जाए, तो वह सही मायनों में एक भव्य स्वतंत्रता होगी अंत में सभी शहीदों को मेरा नमन ... श्रदांजली, पुष्पांजली
उत्तम जैन (विद्रोही )

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

सफलता की और कदम

                                                              सफलता की और कदम



चलते रहे चलते रहे ...
ग़मों के कांटे चुभते रहे,
फिर भी हम चलते रहे|
मिलते रहा सभी से मगर,
अपने दायरों में सिमटता रहा
फिर भी में चलता रहा !
गिरना तो फितरत ही थी,
गिर गिर के संभालता रहा |
फिर भी में चलता रहा …
क्या है तेरा वजूद ‘विद्रोही ’,
मौसम से तुम बदलते रहे |
फिर भी हम चलते रहे …
मित्रो ये पंक्तिया मेरे जीवन में बहुत बड़ा सन्देश देती है क्यों की सफलता और असफलता का मेरे जीवन चोली दामन का साथ रहा है --- समय के साथ खुद ही ढलते गये हम । चलते रहे बहुत सम्भलकर फिर भी फिसल ही गये हम ।किसी ने विश्वास तोड़ा , किसी ने दिल। किसी ने हाथ छोड़ा तो किसी ने मुह मोड़ा । फिर भी लोगों ने यही कहा बदल गये हम ! सँभलकर कर चलते रहे उम्र भर अनजानी राहों पर पैर लड़खड़ाए वहीं जहाँ राहें जानी पहचानी थी ! एक अनचाहा सा खाली पन , जब भी कुछ लम्हे ज़िन्दगी के सुकून से बिताने को मन करता है जो कुछ पाने कुछ खोने ,किसी को अपना बनाने ,किसी के होने का मन करता है बस एक साथी है जो मेरा हर समय मेरे सुख मेरे दुःख में रंग भरने का काम करता है वो है मेरी डायरी और उस का प्रेमी 'कलम " जब दोनों एक दुसरे से मिल जाते है तो बिछड़ने का नाम ही नहीं लेते है ! बचपन से शोख कहू या सपना जब कोई समाचार पत्र पढता था ! हमेशा सोचता था में भी एक ऐसा समाचार पत्र का प्रकाशन करूँगा ! एक बार कोशिस भी मगर सफल नही हो पाया ! मात्र 2 अंक के बाद कुछ कारण से प्रकाशन बंद हो गया ! मगर होंसला था जज्बा बुलंद था की एक दिन प्रकाशन फिर से करूँगा और फिर शुरू हुआ .... हुआ तो बढ़ता ही गया बढ़ता ही गया और बढ़ता ही जा रहा है ... महापुरुषों की , लेखको की लिखित साहित्य पढने का शोख ने कुछ लिखने को प्रेरित किया अब कुछ वर्षो से लिखने भी लगा हु ! अच्छा लिखू या नही में नही जानता मगर जो लिखता हु आप सभी मित्रो से जरुर साझा करता हु आप सबकी प्रतिक्रिया मुझे हमेशा नया लिखने का साहस प्रदान करती है ! अब कुछ विषय के मुख्य बिंदु की और मित्रो जब हम किसी सफल व्यक्ति को देखते हैं तो केवल उसकी सफलता को देखते हैं। इस सफलता को पाने की कोशिश में वह कितनी बार असफल हुआ है, यह कोई जानना नहीं चाहता। जबकि असफलता का सामना करे बिना शायद ही कोई सफल होता है। असफलता, सफलता के साथ-साथ चलती है। आप इसे किस तरह से लेते हैं, यह आप पर निर्भर करता है, क्योंकि हर असफलता आपको कुछ सिखाती है। असफलता में राह में मिलने वाली सीख को समझकर जो आगे बढ़ता जाता है वह सफलता को पा लेता है। सफलता के लिए जितना जरूरी लक्ष्य और योजना है, उतना ही जरूरी असफलता का सामना करने की ताकत भी।
जिस दिन आप तय करते हैं कि आपको सफलता पाना है, उसी दिन से अपने आपको असफलता का सामना करने के लिए तैयार कर लेना चाहिए, क्योंकि असफलता वह कसौटी है जिस पर आपको परखा जाता है कि आप सफलता के योग्य हैं या नहीं। यदि आप में दृढ़ इच्छाशक्ति है और आप हर असफलता की चुनौती का सामना कर आगे बढ़ने में सक्षम हैं तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। तो हो जाइए तैयार सफलता की राह में आने वाली मुश्किलों का सामना करने के लिए, क्योंकि हर सफल व्यक्ति के पीछे उसकी असफलताओं की भी कहानी होती है।
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में ।
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले ।।
अंग्रेज़ी की एक प्रेरक कहावत है- 'स्ट्रगल एंड शाइन।' यह वाक्य हमें बड़ी शक्ति देता है, जिंदगी में आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। जीवन में कठिनाईयां तो आती ही हैं और कभी-कभी तो इतने अप्रत्याशित कि संभलने का भी पूरा समय नहीं मिलता। यही तो जीवन की ठोकरें हैं जिन्हें खाकर ही हम संभलना सीख सकते हैं। उनसे बचने की कोशिश तो करना है, पर ठोकर कहते ही उसे हैं जो सावधानी के बाद भी लगती है और आखिर एक नई सीख भी दे जाती है। रसायन शास्त्र का एक नियम है, जो जिंदगी पर भी लागू होता है। जब कोई अणु टूटकर पुन: अपनी पूर्व अवस्था में आता है तो वह पहले से अधिक मज़बूत होता है। इसी तरह हम जब किसी परेशानी का सामना करने के बाद पहले से अधिक मज़बूत हो जाते हैं और जीवन में और भी तरक्की करते हैं।
मंजिल मिल ही जायेगी भटकते ही सही,
गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं........
लेखक - उत्तम जैन ( विद्रोही )
नोट - इन विचारो को तोेड मरोडकर या नाम हटाकर ..कही पोस्ट न करे


जीवन का नफा नुकसान

          
जीवन का नफा नुकसान
चार लाइन आज याद आ गयी ....उसी पर मेरे विचार
नुकसान देखले या अपना नफा देखले .
दिलसे तू मुहब्बत का फलसफा देखले .
बड़े बड़े धनकुबेर पल में कंगाल हो गए ,
मुस्कुराके जिसको तू एक दफा देखले .......
मित्रो! अध्यात्म जीवन जीने की प्रणाली है, जीवन जीने की प्रक्रिया है। मरने के बाद स्वर्ग मिलता है कि नहीं, यह मैं नहीं जानता,और में स्वर्ग नर्क में विश्वास भी नही करता लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आध्यात्मिकता के सिद्धांतों को यदि हम जीवन में समाविष्ट कर सकते हों, तब हमारे चारों ओर स्वर्ग बिखरा हुआ दिखाई पड़ेगा। तस्वीर खींचने का यदि हमको सही ढंग मालूम हो, तो हम इस दुनिया की बेहतरीन तस्वीरें खींच सकते हैं और अपने आप की भी। हमारी भी तस्वीर बेहतरीन है, लेकिन यदि हमने दुनिया की खराब वाली तस्वीर देखना शुरू किया, अपना कैमरा कहीं गलत जगह पर फोकस कर दिया, तब हमको क्या चीजें मिलने वाली हैं? तब सबसे ऊपर की शक्ल या सिर आएगा या फिर पैर आएगा और यदि उसी आदमी को बैठाकर फोटो खींचेंगे, तो मालूम पड़ेगा कि कोई लम्बा-लम्बा भूत खड़ा हुआ है। कैमरे का लेन्स वही है, जिससे आपने व्यक्ति को सामने खड़ा करके फोटो लिया था। कैमरे का लेन्स वही है, जो आपने पीठ पीछे से लिया है, खड़ा करके। आपको दुनिया का नहीं, अपने अंतरंग जीवन का फोटो लेना है और उसके आधार पर अपनी शांति, सुख, समृद्धि का मूल्यांकन करना है। अध्यात्म को अपने जीवन का अंग बनाना है। साथियो! आध्यात्मिकता एक फिलॉसफी है- एक दर्शन है, सोचने- समझने की प्रणाली है, जीवन जीने की कला है। हमें अपनी समस्याओं के बारे में, कुटुम्ब के बारे में, अपनी महत्त्वाकाँक्षा के बारे में, अपने पुरुषार्थ के बारे में सोचना है। यदि हमारा विचार करने का क्रम ठीक हो, तो हम आपको आशीर्वाद दे सकते हैं कि आपका जीवन सुखों से भरा हुआ हो, आप प्रसन्न रहें, उन्नति करें। आपका जीवन उल्लास से भरा हुआ हो सकता है, यदि आपको सही ढंग से देखना आता हो तब। मान लीजिये किसी के कुटुम्बी की मौत होने वाली है। ठीक है आपको अपना भाई-भतीजा चाचा-ताऊ दादा-दादी प्यारे थे, लेकिन दूसरों को भी आवश्यकता हैं- अपने भाई-भतीजों को गोद में खिलाने की। यदि हम उनको चिपकाकर रखेंगे, तो किसी के घर ढोलक कैसे बजेगी? मिठाई कैसे बाँटी जाएगी? कोई माता अपने लाल को कैसे निहारेगी? अपने लाल को पाकर कैसे धन्य होगी? एक का आनंद-दूसरे का शोक, एक का नफा-दूसरे का नुकसान-यही दुनिया का क्रम है। भाइयों कई बार बड़े-बड़ों से गलती हो जाती है। लोग नफे को नुकसान समझ लेते हैं नुकसान को नफा समझ लेते हैं। बीज बोया जाता है जमीन में तो यह मालूम पड़ता है कि नुकसान हो गया। बीज चला गया। बीज कितने दाम का आता है महँगा आता है आजकल लेकिन बीज नुकसान हो गया लेकिन जब उसकी फसल तैयार होकर आती है कोठे और कुठीले भर जाते हैं तब मालूम पड़ता है कि नहीं गलती नहीं हुई थी यह ठीक सलाह दी गई थी हमको। हमको बीज बोने की सलाह देकर हमारा बीज छीना नहीं गया था नुकसान की तरफ ढकेल नहीं दिया गया था। इसी तरह जीवन में सुख से जीने के लिए कष्ट व् दुःख व् समर्पंण रूपी बीज आपको समाज , परिवार , मित्रो , व्यापार , गुरु भक्ति के लिए बोने होंगे फिर देखिये कुछ दिनों बाद ख़ुशी व् सफलता रूपी फसल लहलहाने को तेयार हो जाएगी ! जीवन में खुशिया ही खुशिया प्राप्त होगी !
उत्तम जैन (विद्रोही )

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

एक नारी की पीड़ा - मेरी जुबानी

           



        
           एक नारी की पीड़ा - मेरी जुबानी


मित्रो में आज एक ऐसे विषय पर अपने विचार प्रेषित कर रहा हु जो आज की सबसे बड़ी समस्या है कुछ दिनों पूर्व मेरे एक पत्रकार मित्र के साथ बेठा था उसने उसे प्राप्त एक किशोरी के खत की चर्चा की मेरे मानस पटल पर यही बात बात बार बार आ रही थी ... मेने सोचा अपने विचारो को ब्लॉग, फेसबुक , व्हट्स अप के सभी पाठको को अपने विचार संप्रेषित करू उसने मेरे पत्रकार मित्र को लिखा था, 'मेरे साथ जबर्दस्ती हुई थी। तब से लेकर आज तक मैं हर पल तनाव में रहती हूँ। मैं बहुत हीन भावना महसूस करती हूँ क्योंकि मैं किसी से आँख मिलाने के लायक नहीं रही...।"पता नहीं मनोचिकित्सक महोदय को बताउंगी तो क्या उत्तर देंगे। शायद कोई समझाइश या दिलासा दें । इस किस्म की कि तुम्हारी इसमें कोई गलती नहीं, भूल जाओ वगैरह। मगर क्या स्त्री के लिए 'घोर यौन शुचिता' का सामाजिक आग्रह उसे यह भूलने देगा? समाज शिकारी को नहीं, शिकार को घूरे पर फेंकेगा। ताज्य मानेगा। मान लो कि लड़की ने किसी से यह बात शेयर न की हो, तब भी समाज तो मानसिक रूप से उसके पीछे लगा ही है। स्त्रियों के दिमाग में कूट-कूटकर यह बात भरी हुई है कि जबर्दस्ती वाले यौन समागम से भी वे अपवित्र हो जाती हैं। दूषित हो जाती हैं! शायद इसी मानसिकता के चलते बलात्कार के पर्यायवाची शब्दों में इज्जत, अस्मत जैसे शब्द आते हैं। बलात्कार होने पर इज्जत लुट गई, अस्मत लुट गई, सब कुछ चला गया, किसी को मुँह दिखाने काबिल नहीं रही, आँख मिलाने लायक नहीं रही, मुँह पर कालिख पुत गई वगैरह वगेरह । समझ नहीं आता कि जिसने कुछ गलत नहीं किया उसकी 'इज्जत' क्यों गई? उसे शर्म क्यों आई? ठीक है, एक हादसा था। जैसे दुनिया में अन्य हादसे होते हैं और समय के साथ चोट भरती है वैसी ही यह बात होनी चाहिए। मगर नहीं होती। सिर्फ और सिर्फ औरत के लिए ही यौन शुचिता के आग्रह के चलते हम घटना को कलंक बनाकर शिकार के माथे पर सदा-सर्वदा के लिए थोप देते हैं। स्त्री को जिन्दगी भर के लिए कलंकित कर घुटने को मजबूर कर देते है जब उसकी कोई गलती नही होती ! हार समाज उसे घृणा की द्रष्टि से देखने लगता है ! लोग अगुली बता कर कर उसे इंगित करते है ! स्त्री का तथाकथित दंभ तोड़ने के लिए भी बलात्कार किया जाता है। प्रताड़ना करने हेतु आज भी गाँवों में स्त्री को निर्वस्त्र करके घुमाया जाता है। क्षेत्रीय अखबारों में इस तरह की आँचलिक खबरें अक्सर आती हैं। क्योंकि कहीं न कहीं हम स्त्री के अस्तित्व को देह के इर्द-गिर्द ही देखते हैं। गाँवों में महिला सरपंचों तक के साथ ऐसी घटनाएँ हुई हैं, जहाँ पुरुषों की अकड़ के आगे स्त्री को पदावनत करने का और कोई उपाय नजर नहीं आया तो यह किया।इसी तरह सती की अवधारणा है। जिसका ताल्लुक स्त्री की यौनिक पवित्रता से है। एक पुरुष के सिवा किसी की न होना तो उसकी एक अभिव्यक्ति भर है। यह ठीक है कि इस अभिव्यक्ति के लिए अब स्त्रियाँ पति की चिता के साथ नहीं जलाई जातीं (कभी-कभी जला भी दी जाती हैं) परंतु भारतीय समाज में सती की अवधारणा अब भी बेहद महिमा मंडित है। सदियों से भारतीय समाज में नारी की अक्षत पर बहुत अत्याचार होते आए हैं. इसे चरित्र से जोड़ना किसी भी रूप में उचित नहीं है. इसके विपरीत पुरुष समाज में सिर उठा कर चलता है जबकि नारी द्वारा किए गए नही उसके साथ किया गयाजबरन छोटे से अपराध के लिए भी उस से उस का जीने का अधिकार तक छीन लिया जाता है! .नारी जीवन में बहुत से समझौते सामाजिक, धार्मिक आर्थिक परिस्थितियों के कारण भी कर लेती है, जिस का खमियाजा उसे ताउम्र आंसू बहाते हुए करना पड़ता है.सारी नैतिकता की जिम्मेदारी केवल नारी की ही तो नहीं, पुरुष का भी दायित्व बनता है कि वह नारी को तन मन और धन से संतुष्ट रखे. केवल नारी से ही सतीसावित्री होने की आशा रखना उचित नहीं है. लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि जितना दुरुपयोग नारी का धर्म के कारण होता है उतना किसी और कारण से नहीं....
उत्तम जैन (विद्रोही )

 

बुधवार, 10 अगस्त 2016

बेटी है तो कल है


बेटी है तो कल है ...
बोये जाते हैं बेटे ,पर उग जाती हैं बेटियाँ,
खाद पानी बेटों को ,पर लहराती हैं बेटियां,
स्कूल जाते हैं बेटे ,पर पढ़ जाती हैं बेटियां,
मेहनत करते हैं बेटे ,पर अव्वल आती हैं बेटियां,
                                                     रुलाते हैं जब खूब बेटे, तब हंसाती हैं बेटियां,
                                                    नाम करें न करें बेटे ,पर नाम कमाती हैं बेटियां,.
क्यों की में अपने बेटो को प्यार करता हु मगर उससे ज्यादा बेटियों को अगर बेटे मेरी जान है तो बेटिया मेरा धड्कता ह्रदय ...यह मेरा ही नही आपका भी होगा कोई संदेह नही ..... बेटे बाप की जमीन बाँटते है और बेटिया हमेशा बाप का दु:ख क्यों करता है भारतीय समाज बेटियों की इतनी परवाह…कहानी के माध्यम से आज में अपने विचार आप तक प्रेषित कर रहा हु ---जिस समस्या से मुख्यतया हर परिवार की पीड़ित बेटी की शिकायत हमेशा अपने माँ व् पिता से रहती है !-----एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई।चेहरे पर झलकता आक्रोश…संत ने पूछा – बोलो बेटी क्या बात है? बालिका ने कहा- महाराज हमारे समाज में लड़कों को हर प्रकार की आजादी होती है।वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोका टाकी नहीं होती। इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है।यह मत करो, यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ आदि।संत मुस्कुराए और कहा…बेटी तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं?ये गार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहते हैं।इसके बावजूद इनका कुछ नहीं बिगड़ता और इनकी कीमत पर भी कोई अन्तर नहीं पड़ता। लड़कों के लिए कुछ इसी प्रकार की सोच है समाज में।अब तुम चलो एक ज्वेलरी शॉप में।एक बड़ी तिजोरी, उसमें एक छोटी तिजोरी।उसमें रखी छोटी सुन्दर सी डिब्बी में रेशम पर नज़ाकत से रखा चमचमाता हीरा।क्योंकि जौहरी जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तो उसकी कोई कीमत नहीं रहेगी।समाज में बेटियों की अहमियत भी कुछ इसी प्रकार की है।पूरे घर को रोशन करती झिलमिलाते हीरे की तरह। जरा सी खरोंच से उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं बचता।बस यही अन्तर है लड़कियों और लड़कों में।पूरी सभा में चुप्पी छा गई।उस बेटी के साथ पूरी सभा की आँखों में छाई नमी साफ-साफ बता रही थी लोहे और हीरे में फर्क। बालिका स्तब्ध थी खुद को सबसे कमजोर समझने वाली बालिका गर्व से फूली नही समां रही थी क्यों की जिसके दिल में माँ व् पिता के लिए एक शंका जेहन में बसी हुई थी आज शंका का पूर्ण समाधान प्राप्त हो गया ! बेटी उछलती कूदती मुस्कान बिखेरती संत के चरणों में नतमस्तक हो गयी ! पास में खड़ा पिता के मुह से ये शब्द निकले ......
बेटी! तेरी इस मुस्कान ने मेरी सारी पीड़ा हर ली
देखता हु तुझे मैं अब तक कल्पनाओं में
हँसती-इठलाती नन्हें कदमों से चलती, गिर जाती
किन्तु आज तूने पाया है आकार, मेरी कल्पनायें हुयी साकार
बेटी! तेरी इस मुस्कान ने मेरी सारी पीड़ा हर ली
दिया मुझे नया जीवन मेरी दुनिया रोशन कर दी
आ छुपा लूँ तुझे अपनी बाँहों में चलना सिखलाऊँ जीवन की राहों में !
मित्रो अब में आपको एक बेटी के नाम सन्देश देना चाहुगा हर माँ बाप की तरह.... हमारी भी यही ख्वाहिश रही है कि तुम लोग अच्छे से अच्छा करो.....कभी गलत रास्तों पर मत चलो...कभी ऐसा कार्य मत करना की माँ व् पिता को सर झुके और माँ पिता जन्म देने से पहले विदा (कन्या भ्रूण हत्या ) कर दे ! .माँ व् पिता के सपने को साकार करो ! और साथ में माँ पिता से एक अनुरोध करूँगा ... कभी कन्या भ्रूण हत्या न करे ! में जानता हु आज दहेज रुपी कुप्रथा वैसे तों समाज के सभी तबकों में अपना पैर पसार चुकी है ! एक कुरीति के लिए आप अपने अनमोल हीरे को गर्भ में म़त मारिये ! बेटी को वरदान समझे ना की अभिशाप ! वही बेटी तुम्हारे बुढ़ापे का सहारा बनेगी ! आज से प्रण ले हम कन्या भ्रूण हत्या नही करेंगे मेरा लेखन सार्थक हो जायेगा !हाथ जोडकर निवेदन हैं कि ये मैसेज अपनी बेटी-बहन को अवश्य पढायें और दोस्तों में , रिश्तेदारों के साथ, सभी शेयर करें में आपका ऋणी रहूँगा
उत्तम जैन (विद्रोही )