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समाज की परिभाषा -
व्यावहारिक रुप से समाज शब्द का प्रयोग मानव समूह के लिए किया जाता है । किन्तु वास्तविक रुप से समाज मानव समूह के अन्तर्गत व्यक्तियों के सम्बंधों की व्यवस्था का नाम है । समाज स्वयं एक संघ है संगठन है, औपचारिक सम्बंधों का योग है । समाज के प्रमुख स्तम्भ स्त्री और पुरुष हैं । स्त्री और पुरुष का प्रथम सम्बंध पति और पत्नी का है, इनके आपसी संसर्ग से सन्तानोत्पत्ति होती है और परिवार बनता है । परिवार में सदस्यों की वृद्धि होती जाती है और आपसी सम्बंधों का एक लम्बा सिलसिला जारी होता है । मानव बुद्धिजीवी है इसलिए इसे सामाजिक प्राणी कहा गया है । मानव के अतिरिक्त किसी भी प्राणी मे सम्बंधों के मर्यादा के निर्वाह की वैसी बुद्धि नहीं है जैसी मानव में होती है । परिवार सामाजिक जीवन की सबसे छोटी और महत्वपूर्ण इकाई है । आदिकाल से ही हमारा समाज पितृ-प्रधान रहा है । यही कारण है कि पैतृक सम्पत्ति के संरक्षण, वंश विस्तार तथा पिता के मरणोपरान्त उसे ऋण से उऋण होने हेतु पुत्र का होना आवश्यक समझा जाने लगा तथा सन्तान का होना भी अत्यावश्यक समझा जाने लगा । यह सामाजिक व्यवस्था एवं मनोवृत्ति आज भी भारतीय जनमानस में विद्यमान है । हॉं वर्तमान में यह अवश्य हुआ है कि बढ़ती हुई जनसंख्या के नियंत्रण हेतु सरकारी कानूनों एवं प्रोजेक्ट के परिणास्वरुप नियोजित परिवार की धारणा बनी है, किन्तु पुत्रहीन होना आज भी किसी को पसंद नहीं है ।
भारतीय संस्कृति में नारी का परम्परागत आदर्श है “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”। भारतीय संस्कृति इसके जननी, भगिनी, पत्नी तथा पुत्री के पवित्र रुपों को अंगीकार करती है । जिसमें ममता, करुणा, क्षमा, दया, कुलमर्यादा का आचरण तथा परिवार एवं स्वजनों के निमित्त बलिदान की भावना हो, वह भारतीय नारी का आदर्श रुप है । नारी का मातृरुप महत्वपूर्ण आदर्श है- जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी । किन्तु भारतीय संस्कृति की विचारधारा में नारी पतिव्रत-धर्म मातृ रुप से भी अधिक महत्वपूर्ण माना गया है ।
प्रकृति ने नर और नारी में भिन्नता प्रदान की है और यही कारण है कि उनके कर्म भी अलग-अलग हैं । किन्तु ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । मनुष्य कठोर परिश्रम करके जीवन-संग्राम में प्रकृति पर यथाशक्ति अधिकारी करके एक शासन चाहता है, जो उसके जीवन का परम लक्ष्य है और कठोर परिश्रम के पश्चात् विश्राम की आवश्यकता होती है तो शीतल विश्राम है स्नेह, सेवा और करुणा की मूर्ति रुपी नारी । नारी के अनेक रुपों में पर का पत्नी रुप से अति निकट का सम्बन्ध है । नर-नारी सम्बन्धों का सुन्दर रुप दाम्पत्य जीवन है । क्योंकि पति-पत्नी एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने पर ही प्रजा का सृजन कर सकते हैं और परिवार को सुचारु रुप से चला सकते हैं । आधुनिक युग में भी शिक्षित, जागरुक, चरित्रवान आदर्श सुपत्नी ही आदर्श भारतीय नारी है । ओर नर व नारी से हुई उत्त्पती द्वारा एक परिवार बनता है ! ओर परिवार से समाज इसलिए कहते संघम शरणम गछामी....... जहा हमे एक परिवार एक समाज मिलेगा ओर अच्छे संस्कार ............
उत्तम जैन विद्रोही
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