धन ओर शांति -
विश्व में यद्यपि धन का अभाव नहीं है, किंतु शांति का अभाव अवश्य है। धनोपार्जन के लिए इतनी अधिक जनशक्ति को दिग्भ्रमित किया जा रहा है कि सामान्य जनता की रुपये कमाने की क्षमता अधिकाधिक
विश्व मे यद्यपि धन का अभाव नहीं है, किंतु शांति का अभाव अवश्य है। धनोपार्जन के लिए इतनी अधिक जनशक्ति को दिग्भ्रमित किया जा रहा है कि सामान्य जनता की रुपये कमाने की क्षमता अधिकाधिक बढ़ गई है, किंतु इसका दीर्घकालीन परिणाम यह हुआ है कि इस अनियंत्रित और अन्यायपूर्ण मुद्रास्फीति से पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था बिगड़ गई है और उसने ऐसे सस्ते धनोपार्जन के फल को ही नष्ट करने के लिए हमें बड़े-बड़े भारी लागत के शस्त्रस्त्र बनाने के लिए उकसाया है। धनोपार्जन करने वाले बड़े देशों के नेता लोग वास्तव में शांति का अनुभव नहीं कर रहे हैं, बल्कि आणविक अस्त्रों के द्वारा आसन्न विनाश से अपनी सुरक्षा की योजनाएं बना रहे हैं। वस्तुत: इन भयंकर अस्त्रों के परीक्षण के रूप में विपुल धन-राशि समुद्र में फेंकी जा रही है। ऐसे परीक्षण न केवल भारी आर्थिक लागत पर किए जा रहे हैं, बल्कि अनेक प्राणियों के जीवन को संकट में डाल कर भी हो रहे हैं। इस प्रकार विश्व के राष्ट्र कर्मफल के नियमों से बंधते जा रहे हैं। जब लोग इंद्रियतृप्ति की भावना से प्रेरित होते हैं तो जो भी धन कमाया जाता है वह नष्ट हो जाता है, धन-संपदा स्वयं शांति और संपन्नता लाने के बजाय विनाश का कारण बन जाएगी। इसलिए धन के इस्तेमाल के प्रति हमें अपने विवेक का परिचय देना चाहिए और यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि जो भी धन है उसका मानव कल्याण के लिए सदुपयोग हो। अगर धन के इस्तेमाल के प्रति हमारे मन के भीतर भोग की भावना होगी तो उस धन का अपव्यय ही होगा और हमारा अपना आंतरिक नुकसान भी होगा। धन का सदुपयोग ही हमारे भीतर शांति और वास्तविक सुख लाता है।---- उत्तम जैन विद्रोही
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